सन 2019 के संसदीय चुनाव का यह चौथा दौर बहुत महत्वपूर्ण है। इस दौर में आज नौ राज्यों की 71 सीटों पर मतदान हो रहा है। इन 72 सीटों पर भाजपा ने 2014 में 56 सीटें जीत ली थीं याने 80 प्रतिशत सीटें उसे मिली थीं। प. बंगाल और ओडिशा की सीटें निकाल दें तो भाजपा ने 2014 में इन राज्यों की सीटों पर विपक्ष का लगभग सफाया कर दिया था लेकिन अब सवाल यह है कि क्या अब राजस्थान, मप्र, उप्र, बिहार, झारखंड और महाराष्ट्र आदि में भाजपा का जलवा पहले-जैसा ही रहेगा?
2014 में तो भाजपा विपक्ष में थी। अब वह सत्ता में है तो क्या उसे इन राज्यों में 5-10 प्रतिशत वोट ज्यादा मिलेंगे? इस वक्त उसके पास पैसा है, प्रचार है, कार्यकर्ता हैं और प्रखर नेता है। क्या वह विपक्ष को इस बार रौंद पाएगा? जरा मुश्किल है। क्योंकि राजस्थान और मप्र में कांग्रेस की सरकारें हैं। वे पूरा जोर लगाएंगी कि इस बार वे ज्यादा से ज्यादा सीटें ले जाएं। बिहार में भी उसे जातिवादी चुनौती है।
महाराष्ट्र में राज ठाकरे ने सबके होश उड़ा रखे हैं। उप्र में सपा और बसपा गठबंधन ने थोक वोटों पर कब्जे का दावा कर रखा है। बंगाल और ओडिशा में भाजपा को थोड़ी बढ़त मिल सकती है लेकिन अब जबकि मोदी की हवा नदारद है, इस चौथे दौर के मतदान में भाजपा की सीटें काफी कम हो सकती है। जो तीन मतदान हुए हैं, उनमें मतदाताओं ने कोई जोश नहीं दिखाया। 2014 के मुकाबले सिर्फ डेढ़-पौने-दो प्रतिशत मतदाता इस बार बढ़े जबकि 1977, 1984 और 2014 में मतदाताओं की संख्या पिछले चुनावों के मुकाबले 5 प्रतिशत से 8 प्रतिशत तक बढ़ती रही।
इस चुनाव में न तो किसी नेता का जलवा दिखाई पड़ रहा है और न ही कोई बड़ा मुद्दा उछल रहा है, जैसा कि कभी गरीबी हटाओ या आपातकालल बड़े मुद्दे बनकर उभरे थे। सत्तापक्ष बालाकोट को भुनाने की कोशिश कर रहा है और विपक्ष के पास रफाल-सौदे के अलावा कुछ खास दिखाई नहीं पड़ रहा है। इस बार क्षेत्रीय दलों का महत्व बढ़ा है और हो सकता है कि चुनाव के बाद वे ही तय करें कि भारत का प्रधानमंत्री कौन बनेगा ?
डॉ. वेदप्रताप वैदिक
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और ये उनके निजी विचार हैं)