कोरोना काल में संसद : सारी परंपराएं खत्म

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कोरोना वायरस की महामारी शुरू होने के बाद संसद चौथा सत्र शुरू होने वाला है। पिछले साल बजट सत्र के समय महामारी शुरू हुई थी और उसकी वजह से सत्र को समय से पहले खत्म कर दिया गया। उसके बाद जैसे तैसे पिछले साल मॉनसून सत्र का आयोजन हुआ और शीतकालीन सत्र टाल दिया गया। इस साल बजट सत्र का आयोजन हुआ लेकिन वह सत्र बहुत छोटा रहा। उसे भी केसेज बढ़ने की वजह से बीच में ही रोक दिया गया। अब फिर मॉनसून सत्र होने जा रहा है लेकिन ऐसा लग नहीं रहा है कि यह सत्र भी सामान्य रूप से चल पाएगा। क्योंकि इसका आयोजन भी कोरोना काल के ऐसे प्रोटोकॉल के तहत हो रहा है, जिससे संसदीय कार्यवाही न तो पूरी तरह से वर्चुअल बन पाती है और न पूरी तरह से ऑफलाइन हो पाती है।

सबसे हैरान करने वाली बात है कि देश में 16 जनवरी से टीकाकरण का अभियान चल रहा है। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी 60 साल से ऊपर के लोगों के लिए टीकाकरण शुरू होने के बाद एक मार्च को टीके की पहली डोज लगवा ली थी। एक अप्रैल से 45 साल से ऊपर का और एक मई से 18 साल से ऊपर का हर नागरिक टीका लगवाने के योग्य हो गया। इसके बावजूद लोकसभा के 545 में से करीब दो सौ सांसदों को टीका नहीं लगा है। इसमें पक्ष और विपक्ष दोनों के सांसद होंगे। इससे जाहिर होता है कि सरकार और विपक्ष दोनों तरफ संसद की कार्यवाही को लेकर किसी तरह की गंभीरता नहीं है।

अगर सरकार गंभीर होती तो वह अपने पाले के करीब साढ़े तीन सौ सांसदों को अब तक टीके की दोनों डोज लगवा कर संसद की कार्यवाही में शामिल होने के तैयार करती और अगर विपक्ष के सांसद भी सत्र को गंभीरता से ले रहे होते तो टीका लगवा चुके होते। अभी तक साढ़े तीन सौ कुछ ज्यादा लोकसभा सांसदों के टीके लगवाने की खबर है। सवाल है कि इतने लोगों को भी एक साथ बैठा कर सामान्य रूप से संसद की कार्यवाही क्यों नहीं चलाई जा रही है? संसद के सेंट्रल हॉल में दोनों सदनों की साझा बैठक होती है यानी आठ सौ के करीब सांसद बैठ सकते हैं। क्या वहां पूरी तरह से वैक्सीनेटेड साढ़े तीन सौ लोकसभा सांसदों को बैठा कर सामान्य तरीके से कार्यवाही नहीं चलाई जा सकती है? इसी तरह राज्यसभा के पूरी तरह से वैक्सीनेटेड सांसदों को लोकसभा में बैठा कर कार्यवाही चलाई जा सकती है। जिन सांसदों को वैक्सीन नहीं लगी है वे वर्चुअल तरीके से कार्यवाही से जुड़ सकते हैं।

कोरोना के नाम पर पिछले तीन सत्रों में विधायी कामकाज लगभग बिना किसी बहस के हुए हैं। बजट पास कराने का काम भी बिना चर्चा के हुआ है। संसदीय समितियों की बैठक अब जाकर शुरू हुई है। कई महीने तक कोरोना की महामारी के चलते संसदीय समितियों की बैठक नहीं हुई। कोरोना के नाम पर मीडिया को संसदीय कार्यवाही कवर करने से लगभग रोक दिया गया है। तभी कई पत्रकार संगठनों ने मीडिया को पहले की तरह बेरोकटोक संसद की कार्यवाही कवर करने देने की अपील की है। एडिटर्स गिल्ड, प्रेस एसोसिएशन, दिल्ली जर्नलिस्ट एसोसिएशन, प्रेस क्लब आदि ने साझा चिट्ठी लिखी है और कहा है कि जागरूक नागरिक किसी भी लोकतंत्र की बुनियाद होते हैं इसलिए नागरिकों तक हर सूचना पहुंचाने के मीडिया के अधिकार को बाधित नहीं किया जा सकता है।

सरकार विधायी कामकाज भी अध्यादेश के जरिए कर रही है। जब संसद की बैठक नहीं हो रही होती है तो अध्यादेश जारी किया जाता है और सत्र में उसे कानून बना दिया जाता है। कानूनों के मसौदे पर संसद की स्थायी समितियों के विचार करने की परंपरा लगभग खत्म हो गई है। कितना भी विवाद हो उसे प्रवर समिति के सामने भेजने का रिवाज भी खत्म हो गया है। सरकार अपने भारी बहुमत के दम पर अपना काम कर रही है।

हरिशंकर व्यास
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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