मनमोहन सिंह ने 24 जुलाई 1991 को जो बजट भाषण दिया था, वहीं से भारतीय अर्थव्यवस्था का सुधार शुरू हुआ। 30 साल लंबी इस कहानी को दोहराने से लोग बोर हो सकते हैं। तो बदलाव के लिए मैं बताऊंगा कि अब से 30 साल बाद का भारत कैसा दिखेगा।
मशहूर एमजीएम स्टूडियो के सैम गोल्डविन ने एक बार कहा था कि कभी भी भविष्यवाणी नहीं करनी चाहिए, ख़ासकर आने वाले वक़्त के बारे में। उन्होंने भविष्यवाणियों को कुछ ज़्यादा ही गंभीरता से ले लिया। मेरा मकसद यह नहीं है कि भविष्य की बातें करके बेजान दारूवाला या बाबा रामदेव से बेहतर ज्योतिषीय शक्ति होने का दावा करूं। मेरा मकसद है बस मजे करना और लोगों की कल्पना को ऊंची उड़ान देना।
तो चलिए शुरू करते हैं। मैं भविष्यवाणी करता हूं कि 30 साल बाद भारत में 51 सूबे होंगे। अधिक राज्यों के लिए क्षेत्रीय दबाव बढ़ता रहेगा। कई राजनीतिक दलों को एक नया लोकलुभावन लक्ष्य मिल जाएगा, राज्यों की संख्या के मामले में भारत को दुनिया में नंबर वन बनाना। यहां तक कि अमेरिका की 50 की संख्या को भी पीछे छोड़ देना। इसके चलते क्षेत्रीय पार्टियों का विकास विस्फोटक तरीके से होगा। हम पहले ही पिछले 30 बरस में कई क्षेत्रीय दलों का उदय देख चुके हैं। ऐसे दल जिन्हें 1991 में कोई बमुश्किल ही पहचानता-जानता था। अगले 30 साल इस चीज़ को और आगे ले जाएंगे। भारत की सियासत में दर्जनों रीजनल पार्टियों की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण हो जाएगी।
इसका एक परिणाम यह होगा कि किसी एक दल के वर्चस्व के दिन ख़त्म हो जाएंगे। गठबंधन की राजनीति इतनी मजबूत होगी, जितनी पहले कभी नहीं रही। राष्ट्रीय चुनावों में बड़े दलों का दबदबा ख़त्म होगा। चुनावों में सफलता के लिए ज़रूरत पड़ेगी दर्जनों छोटी पार्टियों से दोस्ती की। वैसे, बीते 30 बरसों में ही हम देख चुके हैं कि गठबंधन की राजनीति किस तरह हावी रही है। 2014 और फिर 2019 में नरेंद्र मोदी की जीत से यह ट्रेंड टूटा ज़रूर, लेकिन इसकी वापसी होगी। और फिर यह भी याद रखें कि पिछले लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी के साथ 20 सहयोगी थे।
हिंदुत्व को झटका लगेगा। बीजेपी का हिंदुत्व के सभी धड़ों को मिलाकर एक हिंदू पार्टी बनाने का प्रयास विफल हो जाएगा। इसकी वजह होगी कि उप-जातियां ख़ुद ही अपने-अपने राज्यों में छोटे-छोटे दल बनाना शुरू कर देंगी। 40 दलों को मिलाकर बनाई गईं राष्ट्रीय सरकारें ख़ुद को ‘टुकड़ा’ गठबंधन कहने में गर्व महसूस करेंगी।
सरकारी नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण की मांग नए क्षेत्रों में फैल जाएगी। केवल हिंदुओं में ही 16 सौ जातियां हैं। मुस्लिमों और ईसाइयों में भी जातियों की तरह कई विभाजन हैं। ये सभी जातियां कोटा सिस्टम का लाभ उठाने की कोशिश करेंगी। अपने मकसद को आगे बढ़ाने के लिए छोटे-छोटे दल बनाएंगी ये जातियां। सरकारी नौकरियों और शिक्षा में 50 फ़ीसदी से अधिक आरक्षण नहीं देने का सुप्रीम कोर्ट का नियम धराशायी कर दिया जाएगा। यह अनुपात बढ़कर हो जाएगा 95 प्रतिशत। जो लोग शिकायत करेंगे कि इससे योग्यता को नुकसान होगा, उन पर उच्च जाति के अभिजात्यवाद का आरोप लगाया जाएगा। जो विश्लेषक इस स्थिति से उदास होंगे, वे अनुमान लगाएंगे कि उच्च जाति के भारतीय बेहतर नौकरी की तलाश में विदेश चले जाएंगे। वहीं, कुछ लोग कहेंगे कि यह कोई समस्या नहीं, बल्कि समाधान है।
विदेशों में बसे भारतीयों की संख्या बढ़कर हो जाएगी 10 करोड़। वे लोग सबसे बेहतर शिक्षित और सबसे अच्छे उद्यमी होंगे। ऐसे में दुनियाभर में राजनीति और व्यापार में शीर्ष पदों पर क़ब्ज़ा होगा उनका। अमेरिका के राष्ट्रपति पंजाबी लहजे में बात करेंगे, जबकि पोप के बात करने में झलक होगी मलयालम की।
भारत की जनसंख्या बढ़कर 160 करोड़ हो जाएगी। आबादी के मामले में चीन को पीछे छोड़ देंगे हम। लेकिन प्रजनन दर घटकर 1.5 रह जाएगी। इससे भारत को अचानक श्रमिकों की घटती संख्या का सामना करना पड़ेगा। दूसरी ओर, इन पर आश्रित रिटायर हो चुके वृद्ध लोगों की संख्या बढ़ेगी। जीवन प्रत्याशा बढ़कर 95 साल हो जाएगी। जनसंख्या को लेकर सोच बदलेगी। पहले की सरकारी योजनाओं का उद्देश्य था जनसंख्या में कमी करना, लेकिन अब लक्ष्य होगा बड़े परिवारों को बढ़ावा देना। पुराने स्लोगन ‘दो या तीन बस’ की जगह ले लेगा एक नया स्लोगन, जो कहेगा, ‘सिर्फ दो या तीन, बस?’
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अब तक का सबसे बड़ा यूटर्न लेगा। संघ इस बात को इंगित करेगा कि प्राचीन भारत में बहुविवाह की प्रथा थी, तो क्या न उस गौरवशाली परंपरा को फिर से जीवित किया जाए? भगवान कृष्ण के कम से कम आठ पत्नियां थीं। कहा जाता है कि नरकासुर को हराने के बाद उन्होंने जिन 16 हज़ार नारियों को आज़ाद कराया, उन सभी से विवाह कर लिया। तो क्यों न मुस्लिमों को हिंदू उनके अपने खेल में हराएं यानी कई शादियां। हिंदुओं के लिए संघ एक नया नारा देगा, ‘हम पांच, हमारे पच्चीस’।
आर्थिक विकास दर मध्यम रहेगी, चार फ़ीसदी प्रति साल। शून्य जनसंख्या वृद्धि और अमीरी के चलते सभी देशों में जीडीपी धीमी होगी। सब्सिडी बढ़कर जीडीपी का 10 प्रतिशत हो जाएगी।
एक परिणाम यह होगा कि प्रति व्यक्ति आय के मामले में भारत से आगे निकल जाएगा बांग्लादेश। इससे घुसपैठियों का इतिहास बदलेगा। बेहतर नौकरी की तलाश में बांग्लादेश में अवैध रूप से घुसे भारतीयों की बाढ़ आ जाएगी। ढाका यह शिकायत करेगा कि बांग्लादेश से अवैध प्रवासियों को भेजने की भारत की पुरानी बात दरअसल एक बकवास थी। यह बस एक तैयारी थी, जिससे बड़ी संख्या में भारतीय बंगालियों को बांग्लादेश में भेजकर गोपनीय तरीके से देश को टेकओवर कर लिया जाए।
अब चलते हैं चीन की ओर। शी जिनपिंग की 2025 में मौत हो जाएगी। अपने कार्यकाल में जिनपिंग कम्युनिस्ट पार्टी के 15 हज़ार भ्रष्ट अफ़सरों को कैद करेंगे या बर्बाद कर देंगे। यही भ्रष्ट अफ़सर बाद में पलटवार करेंगे। सत्ता के लिए लड़ाई चीन को संघर्ष और अराजकता में डुबो देगी। कुछ लोगों को गृहयुद्ध की आशंका सताएगी। चीन के कुछ धड़ों का मानना होगा कि भारत के साथ एक उदार सीमा समझौता कर लिया जाए ताकि बॉर्डर से सेना को हटाकर देश के भीतर लगाया जा सके। डील के तहत, चीन भगवान शिव के घर कैलाश पर्वत को भारत को देने की पेशकश करेगा। बहुत से भारतीयों का मानना होगा कि यह 21वीं सदी की सबसे बड़ी उपलब्धि है।
एसएसए अय्यर
(लेखक अर्थशास्त्री हैं ये उनके निजी विचार हैं)