दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए बिगुल बज चुका है। आम आदमी पार्टी की तरफ से बीते रविवार घोषणा पत्र से पहले गारंटी कार्ड जारी किया गया। यह कार्ड पांच साल के लिए 200 यूनिट बिजली मुक्त की गारंटी देता है। इसी तरह से हर किसी को 24 घंटे शुद्ध पानी की गारंटी है। इससे पहले महिलाओं-छात्रों को बसों व मेट्रो का मुफ्त सफर की बात आप की तरफ से हो चुकी है। एक तरह से इसे केजरीवाल का मास्टर स्ट्रोक माना जा रहा है। ओपिनियन पोल में भी बस आप ही आप का जलवा है। आप के सारे प्रत्याशी तय हो चुके हैं लेकिन भाजपा अभी 57 नाम ही फाइनल कर पाई है। कांग्रेस की सूची अभी तक तय नहीं है। इसके अलावा भी भाजपा-कांग्रेस की दिक्कत यह है कि उसके पास केजरीवाल के खिलाफ दमदार चेहरा नहीं मिल पा रहा। जिसके ईर्द-गिर्द मजबूती से चुनाव लड़ा जा सके। आपके सामने विपक्ष की पतली हालत है। यही वजह है कि आप सत्ता में दोबारा वापसी के प्रति आशान्वित है।
जिस तरह केजरीवाल ने उम्मीदों का संजाल तैयार किया है, यह बहुत स्वाभाविक है कि दिल्ली राज्य की अधिसंख्या निम्न और मध्यम वर्ग की आबादी आकर्षित होगी। 200 यूनिट बिजली मुक्त भी सुविधा मायने रखती है। ज्यादातर लोग इसी दायरे में उपभोग करते हैं और जो इससे ज्यादा उपभोग के अभ्यस्त होंगे, वे भी छूट का लाभ उठाने के लिए उसी सीमा में उपभोग को प्राथमिकता देंगे। चुनावी दृष्टि से यह गारंटी यदि अमल में आती है तो इससे राज्य सरकार का घाटा कितना बढ़ेगा, इसकी कल्पना की जा सकती है। हां, जहां तक शुद्ध जल की 24 घंटे निर्बाध आपूर्ति की व्यवस्था नागरिक सुविधा की दृष्टि से एक बड़ा महत्वपूर्ण कदम होगा क्योंकि राज्य में जिस तरह शुद्ध जल का बड़े पैमाने पर कारोबार होता है वो किसी से छुपा नहीं है। सरकारी जलापूर्ति इस लायक नहीं होती कि उससे खानाबनाने और पीने का काम किया जा सके।
अभी कुछ महीने पहले दिल्ली में पानी की स्थिति को लेकर एक रिपोर्ट उजागर हुई थी। उसे केन्द्र सरकार के सहयोग से वैज्ञानिक ढंग से तैयार किया गया था। उसका निष्कर्ष यह था कि दिल्ली की 80 फीसदी ऐसी आबादी जो जल निगम के भरोसे रहती है वो उस पानी की खराब गुणवत्ता के चलते बाजार से पानी खरीदती हैए हालांकि उस रिपोर्ट पर सियासी नजरिए से खूब नुक्ताचीनी हुई थी, पर इतना सच तो है कि राजधानी की एक बड़ी आबादी को शुद्ध जल के लिए बाजार पर निर्भर रहना पड़ता है। इस दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है और अगले कार्यकाल के लिए केजरीवाल को चुना जाता है तो उम्मीद की जानी चाहिए कि शुद्ध जल की जरूरत को पूरी करने के संबंध में तत्परता से काम होगा। केन्द्र सरकार ने नल से शुद्ध जलापूर्ति का लक्ष्य तय किया है। आजादी के इन 73 सालों में भी साफ -सुथरे पानी की सहज उपलब्धता के लिए समाज जद्दोजहद है तो यह बहुत अच्छी बात नहीं है। साफ पानी का मतलब लोगों को तमाम संक्रामक बीमारियों से बचाने का ही एक महत्वपूर्ण अभियान है।
पर मुफ्तखोरी की आदत डालने की प्रवृत्ति से सियासतदानों को बचा जाना चाहिए। मसला बिजली का हो या सार्वजनिक यातायात का, इसे मुफ्त किये जाने से पार्टी को तात्कालिक लाभ भले मिले लेकिन उसका असर विकास के और सरोकारों पर पड़ता है। हिम्मत यह है कि सभी पार्टियों के लिए लोक लुभावन घोषणाएं करना चुनाव जीतने के लिए आसान जरिया हो गया है। सत्ता में आने पर जब इनमें से कुछ लुभावने वादों पर अमल होना शुरू होता है तो उसका सरकारी कोष पर कितना विपरीत प्रभाव पड़ता है इसको विकास की धीमी रफ्तार से समझ सकते हैं, साथ ही इसका एक प्रभाव करों में वृद्धि के रूप में सामने आता है जिसका सीधा खामियाजा टैक्स पेयर भुगतता है। महंगाई बढ़ती है वो अलग से। यहां यह रेखांकित किया जाना जरूरी है कि जिन्हें सुविधा मिलती है कि उन्हीं से बड़े करों के रूप में वसूली भी होती है। नेता तो मुफ्तखोरी की आदत डालकर सत्ता तक पहुंचना चाहते है। पर असल विचार तो जनता को करना है क्योंकि वही प्रभावित होती है।