कांग्रेस पार्टी एक राज्य में अंदरूनी विवाद सुलझाती है कि दूसरे राज्य में विवाद शुरू हो जाता है। कांग्रेस के एक जानकार नेता का कहना है कि राष्ट्रीय स्तर पर अनिश्चितता का असर राज्यों की राजनीति पर पड़ रहा है। राज्यों के प्रभारी मनमाने तरीके से काम कर रहे हैं और दिल्ली से उन पर नजर रखने वाला कोई नहीं है। राहुल गांधी ने अपने करीबी केसी वेणुगोपाल को संगठन महामंत्री बनाया हुआ है पर उनका किसी नेता के ऊपर असर नहीं है। न प्रभारी उनकी बात को गंभीरता से लेते हैं और न प्रदेश के नेता। तभी राज्यों में कांग्रेस में कलह बढ़ रही है। मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया के पाला बदलने और कांग्रेस की सरकार जाने के बाद भी संकट खत्म नहीं हो रहा है। एक निश्चित अंतराल पर धारावाहिक के रूप में कांग्रेस के विधायक इस्तीफा दे रहे हैं। इस बीच पूर्व मुयमंत्री और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ के भगवा रूप को देख कर कांग्रेस के कई नेताओं ने उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। गौरतलब है कि उन्होंने अयोध्या में राममंदिर निर्माण के लिए चांदी की ईंटें भेजी हैं और शिलान्यास के दिन अपने आवास पर हनुमान चालीसा का पाठ कराया। उधर राजस्थान में कांग्रेस का विवाद चरम पर है।
पार्टी के 19 विधायक भाजपा की मेजबानी में हरियाणा के किसी होटल में रुके हैं और राजस्थान पुलिस उनकी तलाश में जुटी है। जब तक विधानसभा का सत्र होकर खत्म नहीं होता है तब तक सरकार की भी सांस अटकी हैं। छाीसगढ़ में पार्टी नेताओं को संतुष्ट करने के लिए दो दर्जन विधायकों को सरकारी पद दिए गए हैं और झारखंड का विवाद भी दिल्ली पहुंचा हुआ है। प्रदेश के नेता प्रदेश अध्यक्ष बदलने की मांग कर रहे हैं। पर राज्य के प्रभारी आरपीएन सिंह और सह प्रभारी उमंग सिंघार में ही तालमेल नहीं बन पा रहा है। दोनों प्रभारियों और प्रदेश के दो बड़े नेताओं, जिनको राज्य सरकार में अहम मंत्रालय भी मिला हुआ है उनके बीच तालमेल नहीं है और पार्टी के विधायक इनके बीच बंटे हुए हैं। इतना ही नहीं पंजाब में पार्टी के अंदर बड़ी खींचतान शुरू हो गई है। पंजाब कांग्रेस के नेता किसी न किसी बहाने प्रदेश से लेकर दिल्ली तक के नेतृत्व पर निशाना साध रहे हैं। खबर है कि पार्टी नेताओं का एक बड़ा गुट मुयमंत्री के खिलाफ एकजुट हो रहा है। पंजाब के मुयमंत्री कैप्टेन अमरिंदर सिंह पार्टी और सरकार दोनों में मनमानी करते हैं। उन्हें रोकने की स्थिति न प्रदेश नेताओं की है और न केंद्रीय नेताओं की। यहीं वजह से है कि सारे फैसले उनकी पसंद-नापसंद से होते हैं।
उनकी नापसंदगी की वजह से नवजोत सिंह सिद्धू जैसे बेहद लोकप्रिय नेता को सरकार से बाहर होना पड़ा। सिद्धू को राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा दोनों का समर्थन है इसके बावजूद उनको इस्तीफा देकर सरकार से बाहर होना पड़ा और वे अभी हाशिए में पड़े अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं। इस बीच कांग्रेस के दो बड़े नेताओं और राज्यसभा सांसदों, प्रताप सिंह बाजवा और शमशेर सिंह दुलों ने मोर्चा खोला है। पिछले दिनों पंजाब में जहरीली शराब की बड़ी त्रासदी हुई। एक सौ से ज्यादा लोग जहरीली शराब पीने से मरे। इसमें शराब माफिया और पुलिस की मिलीभगत की बातें सामने आईं। प्रदेश की मुय विपक्षी पार्टी आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने इस घटना की सीबीआई जांच की मांग की।
उनके साथ साथ बाजवा और दुलो ने भी इस घटना की स्वतंत्र व निष्पक्ष जांच की मांग की है। यह मांग करने के दो दिन बाद ही पंजाब सरकार ने बाजवा को मिली पुलिस सुरक्षा वापस ले ली। कहा गया कि उनको कोई खतरा नहीं है। यह कैप्टेन अमरिंदर सिंह का अपनी ताकत दिखाने का तरीका है। पर इससे कांग्रेस में नाराजगी बढ़ी है। वैसे शमशेर सिंह दुलो ने पार्टी के राज्यसभा सांसदों की बैठक में सोनिया गांधी की मौजूदगी में पार्टी के कामकाज पर सवाल उठाया था। उन्होंने कहा था कि पार्टी में वरिष्ठ नेताओं की अनदेखी हो रही है और चापलूसों को आगे बढ़ाया जा रहा है। यह राहुल गांधी के करीबी नेताओं पर सीधा हमला था। बहरहाल, पंजाब में नाराज नेताओं की संया बढ़ रही है।