कांग्रेस में उबाल

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अदिल्ली कांग्रेस की नेता शर्मिष्ठा मुखर्जी के ट्वीट ने पार्टी के भीतर की चल रही छटपटाहट को सामने ला दिया है। दरअसल दिल्ली में आम आदमी पार्टी की शानदार हैट्रिक पर कांग्रेस के शीर्षस्थ नेताओं में से एक पी. चिदबरम ने खुशी जताते हुए ट्वीट किया है कि यह विपक्ष का विश्वास बढ़ाने वाला बूस्टर है कि भाजपा को हटाया जा सकता है। इसी तर्ज पर एक अन्य वरिष्ठ दिग्विजय सिंह ने भी राय साझा की थी। जाहिर है जिन युवा नेताओं को इस पार्टी में अपना बनना और आगे बढऩा है उनके लिए दिल्ली में दूसरी बार भी जीत का खाता ना खोल पाना निहायत सालने वाली बात है। शर्मिष्ठा के इस पलटवार पर कि क्या भाजपा को हटाने का जिमा पार्टी ने क्षेत्रीय ताकतों को आउटसोर्स कर दिया है। एक बेहद तल्ख सवाल है इससे पार्टी का शीर्ष नेतृत्व नहीं सूझा तो फिर पूरे देश में स्थिति पिछलग्गू पार्टी की हो जाएगी और धीरे-धीरे स्थिति दिल्ली जैसी हो सकती है। सवाल है, जिस पार्टी पर लोकसभा चुनाव में दिल्ली के वोटरों ने भाजपा के बाद भरोसा जताया, उसे ही राज्य के चुनाव में एक ही सीट के लायक भी नहीं समझा गया, इसका या मतलब, वोटरों की इस मन: स्थिति को समझ ने की जरूरत है।

राज्य दर राज्य इस तरह क्षेत्रीय ताकतों के सामने सरेंडर करने से एक दिन वजूद पर भी सवाल उठने लग सकता है। सिर्फ यह कहने से आत्मसंतोष नहीं किया जा सकता कि भाजपा कमजोर रही है जिस दिल्ली में 15 वर्षों तक लगातार पार्टी का एकछत्र राज रहा हो, आज की स्थिति इतनी दयनीय हो गई है कि पूरे चुनाव में कहीं भी पार्टी संघर्ष में नहीं दिखी। भला कौन भूल सकता है, फ्लाई ओवरों और मेट्रो का जाल बिछाने की शुरूआत करने वाली कांग्रेस को राज्य में उसका वोटर गंभीरता से नहीं लेता। जाहिर है, कहीं ना कहीं नेतृत्व के स्तर पर एक थकी और बुझी हुई नीति के चलते पार्टी का बेड़ा गर्क हो रहा है। विधानसभा चुनाव के प्रति गंभीरता का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि मतदान से ठीक दो दिन पहले पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी ने प्रचार किया था। भाजपा को लेकर यह सोच रखना कि राष्ट्रीय स्तर पर वोटर कांग्रेस में ही विकल्प खोजेंगे महाभूल है। बीते इतिहास के पन्नों को पलटना चाहिए जब तीसरे मोर्चे की सरकार केन्द्र के वजूद में रही थी।

अब फिर वही सपने क्षेत्रीय दलों की आंखों में अंखुवाने लगे हैं तो हतप्रभ होने की कोई बात नहीं।कांग्रेस देश के केन्द्र में कमजोर हो गई है यह कोई बात नहीं। कांग्रेस देश में कमजोर हो गई है, यह बड़ी चिंता का विषय है। एक तरफ भाजपा अपना पुरानी पकड़ दिल्ली की स्थानीय राजनीति में दोबारा कायम करना चाहती है। इसके लिए उसने इस बार कई राज्यों के मुख्यमंत्री, केन्द्रीय मंत्री और खुद प्रधानमंत्री व गृहमंत्री तक जीत के इरादे से उतार दिए थे। यह बात और कि इसके लिए विरोधियों के निशाने पर भी भाजपा रही। पर दिल्ली राज्य की अहमियत भाजपा समझती है लेकिन कांग्रेस नहीं समझ पा रही। इसी वजह से शीला दीक्षित के पराभव के बाद से राज्य इकाई उबार नहीं पाई है। शमिष्ठा जैसे नेताओं की पीड़ा समझ में आने लायक है। अब भी दो नहीं हुई है जो सवाल पार्टी की बेहतरी के लिए उठे हैं, उस पर मंथन किए जाने की जरूरत है ताकि अब से सही कोर्स कोरशन की शुरूआत हो सके। उम्मीद की जानी चाहिए पूर्व राष्ट्रपति की बेटी तल्ख सवाल का जवाब ढूंढा जाएगा।

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