कांग्रेस पार्टी में कमाल की राजनीति!

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कांग्रेस पार्टी में कमाल की राजनीति हो रही है। पता नहीं है कांग्रेस आलाकमान से मामला संभल नहीं रहा है या संभालने की इच्छा नहीं हो रही है या जान बूझकर संकट पैदा किया गया है। पर हकीकत यह है कि देश के 31 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में कांग्रेस के सिर्फ तीन मुख्यमंत्री हैं और इन तीनों मुख्यमंत्रियों के राज्य में सरकार व संगठन का संकट चल रहा है। राजस्थान, छत्तीसगढ़ और पंजाब तीनों राज्यों में कांग्रेस पार्टी की सरकार का संकट सुलझ ही नहीं रहा है। महीनों से संकट चल रहा है। कभी प्रभारी बात करते हैं, कभी कोई कमेटी बात करती है तो कभी खुद सोनिया, राहुल और प्रियंका बात करते हैं फिर भी संकट चलता रहता है। अब छत्तीसगढ़ का विवाद सुलझाने के लिए राहुल गांधी ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, मुयमंत्री बनने के लिए बेकरार राज्य सरकार के मंत्री टीएस सिंहदेव और प्रभारी पीएल पुनिया से बात की है। सिंहदेव कह रहे हैं कि सरकार बनने के समय 2018 में तय हुआ था कि ढाई साल के बाद बघेल पद छोड़ देंगे और उनको मुख्यमंत्री बनाया जाएगा। सो, अब ढाई साल से ज्यादा हो गए तो उन्हें पद छोडऩा चाहिए।

दूसरी ओर बघेल खेमे का कहना है कि ऐसी कोई शर्त नहीं थी। अब पता नहीं शर्त थी या नहीं लेकिन उस शर्त पर झगड़ा चल रहा है। उधर पंजाब में बगावत शुरू हो गई है। भाजपा छोड़ कर चार साल पहले ही कांग्रेस में आए नवजोत सिंह सिद्धू ने यह हालत कर दी है कि कांग्रेस के सबसे मजबूत माने जाने वाले क्षत्रप कैप्टेन अमरिंदर सिंह को अपनी कुर्सी बचाने के लिए भागदौड़ करनी पड़ रही है। उनकी सरकार के चार मंत्री सहित 30 से ज्यादा विधायक उनको हटाने की मांग कर रहे हैं। दूसरी ओर कैप्टेन खेमा सिद्धू को अध्यक्ष पद से हटाने की मांग कर रहा है। छह महीने में चुनाव होने वाले हैं और पंजाब में कांग्रेस नेताओं में जूतमपैजार चल रही है। राजस्थान में खामोशी है लेकिन सबको पता है कि सचिन पायलट ने जो अभियान छेड़ा था वह सिर्फ दबा हुआ है खत्म नहीं हुआ। पता नहीं क्यों कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व इस मसले को सुलझा ही नहीं रहा है।यहां तक कि हरियाणा की प्रदेश अध्यक्ष कुमारी शैलजा को अलग से राजस्थान भेजा गया था। लेकिन इस पूरी कवायद से क्या हासिल हुआ, यह किसी को पता नहीं है।

इन तीनों राज्यों में झगड़ा का राज्य सरकारों पर जो असर हो लेकिन यह जरूर है कि इनकी वजह से भाजपा को कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व की कमजोरी का मुद्दा उठाने का मौका मिलता है। जहां तक पंजाब का सवाल है तो ये काम कोई बहुत अव्वल दर्जे का ‘समझदार’ नेता ही कर सकता था कि उाराखंड और पंजाब दोनों जगह एक साथ चुनाव होने हैं और उत्तराखंड के सबसे बड़े नेता को पंजाब का प्रभारी बना दिया जाए। कांग्रेस ने यह ‘समझदारी’ का काम किया था। हरीश रावत को पंजाब का प्रभारी बनाया था। अब तक वो झगड़ा सुलझा रहे हैं। सोचें, वे खुद अपना चुनाव लड़ेंगे या पंजाब का झगड़ा सुलझाएंगे? उनके पास इतना समय नहीं है कि वे चंडीगढ़ जाकर मुख्यमंत्री कैप्टेन अमरिंदर सिंह के खिलाफ मोर्चा खोलने वाले बागी विधायकों से मिल सकें। सो, उन्होंने बागी विधायकों को उाराखंड बुलाया।

इस तरह से पंजाब कांग्रेस का मामला उत्तराखंड और दिल्ली में सुलझाया जाएगा। रावत ने फैसला सुनाया कैप्टन ही कांग्रेस के पंजाब में कैप्टन रहेंगे। अब आगे क्या होगा? क्या पंजाब में चुनाव की तैयारी, टिकटों का बंटवारा, प्रचार की रणनीति सब उत्तराखंड में बैठ कर हरीश रावत बनाएंगे? कांग्रेस को क्या इतनी सी बात समझ में नहीं आ रही है कि अगर हरीश रावत को उत्तराखंड में मुख्यमंत्री का अघोषित दावेदार बना दिया गया है तो उनको वहां पार्टी को चुनाव लड़ाने दिया जाए और पंजाब में नया प्रभारी नियुक्त हो! पंजाब में छह महीने में चुनाव हैं अभी किसी जानकार नेता को प्रभारी बनाया जाए तो पूरा समय वहां दे सके तो उससे कांग्रेस को ज्यादा फायदा होगा। लेकिन कांग्रेस में फैसले ऐसे नहीं होते। महीनों लटके रहने और नुकसान हो जाने के बाद ही फैसला होता है।

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