कांग्रेस को कांग्रेस ही रहना होगा

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नरेंद्र मोदी पांच साल से सरकार चला रहे हैं, इसलिए जब दूसरी बार उनको भारी भरकम जीत मिली है तो कोई यह नहीं पूछ रहा है कि वे आगे कैसी सरकार चलाएंगे। सबको अंदाजा है कि उनकी सरकार कैसे चलेगी। पर लगातार दूसरी बार बुरी तरह से हारने के बाद कांग्रेस से यह सवाल जरूर पूछा जा रहा है कि अब कांग्रेस क्या करेगी? क्या कांग्रेस की ऐतिहासिक जरूरत पूरी हो गई है या अब सचमुच उसकी जरूरत नहीं है? जैसा कि योगेंद्र यादव ने कहा हैं-कांग्रेस राजनीतिक परिदृश्य से हटेगी तभी भाजपा का जवाब देने के लिए वैकल्पिक राजनीति मजबूत हो पाएगी?

जो लोग कांग्रेस की जरूरत बता रहे हैं उनकी राय भी बंटी हुई है। उसमें एक राय ऐसे लोगों की है, जो यह मान रहे हैं कि गांधी-नेहरू परिवार हटे तो कांग्रेस मजबूत होगी। दूसरी राय ऐसे नेताओं की है, जो यह मानते हैं कि सोनिया गांधी का परिवार हटा तो कांग्रेस नेताओं में जंग छिड़ जाएगी और पार्टी कई टुकड़ों में बंट जाएगी। जाहिर है कांग्रेस के लिए इतने सारे सवालों और सुझावों के बीच आगे का रास्ता निकालना आसान नहीं होगा। हालांकि ऐसा भी नहीं है कि रास्ता नहीं निकलेगा।

कांग्रेस को वापसी का रास्ता बनाने के लिए सबसे पहला और संभवतः सबसे जरूरी उपाय यह करना होगा कि कांग्रेस को कांग्रेस की तरह बन कर ही राजनीति करनी होगी। कांग्रेस पार्टी किसी हाल में भाजपा की तरह बन कर भाजपा को नहीं हरा सकती है और न क्षेत्रीय पार्टियों की तरह बन कर क्षेत्रीय पार्टियों को हरा सकती है। कांग्रेस, कांग्रेस रह कर ही सारी चुनौतियों का मुकाबला कर सकती है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी सहित कांग्रेस के सारे नेता पार्टी के जिन मूल्यों का मुंहजबानी जिक्र करते रहते हैं उसे वास्तविक बनाना होगा। सिर्फ कहने से काम नहीं होगा कि कांग्रेस समावेशी राजनीति करती है या कांग्रेस भारत की संस्कृति, सभ्यता और आम जनमानस के दिल दिमाग में रची बसी पार्टी है या कांग्रेस आजादी की लड़ाई लड़ने वाली पार्टी है या कांग्रेस सामाजिक सुधार करने वाली सबसे प्रगतिशील पार्टी है।

कांग्रेस को बताना होगा कि आजादी के बाद उसने कौन सी लड़ाई लड़ी है। उसे यह भी बताना होगा कि छुआछूत से लेकर सती प्रथा जैसी कुरीतियों को खत्म करने के लिए आजादी से पहले जो लड़ाइयां हुईं वैसी समाज सुधार की कौन सी पहल कांग्रेस ने पिछले 70 साल में की है। और हां, क्या कांग्रेस ने कभी अल्पसंख्यक समाज खास तौर से मुस्लिम समाज के भीतर सुधार का कोई आंदोलन छेड़ा? क्या कभी कांग्रेस ने धर्मांतरण की घटनाओं को लेकर कोई स्टैंड तय किया? जिस तरह आजादी के आंदोलन के समय दलितों के उत्थान के लिए काम हो रहा था और उनके अंदर सामाजिक सुधार की प्रक्रिया चल रही थी, वैसे जरूरत आज आदिवासियों के लिए क्या नहीं है?

कांग्रेस के वैल्यूज या मूल्य क्या हैं? गांधी से लेकर नेहरू तक कांग्रेस जिन मूल्यों पर राजनीति करती रही, उन्हें तो कांग्रेस ने कभी का छोड़ दिया है। कांग्रेस ने हीतो आर्थिक उदारवाद की नींव रखी और उसे आगे बढ़ाया। कभी कांग्रेस के लिए धर्मनिरपेक्षता एक बड़ा मूल्य था। पर 2014 के चुनाव में हार के बाद रास्ता निकाला गया कि कांग्रेस को मुस्लिमपरस्ती के साथ साथ हिंदूपरस्ती भी करनी चाहिए। किसी ने यह नहीं सोचा कि कांग्रेस को वास्तविक धर्मनिरपेक्षता के रास्ते पर चलना चाहिए। दिग्विजय सिंह इस देश में सेकुलर राजनीति का प्रतिनिधि चेहरा थे। उनका मुकाबला जब प्रज्ञा सिंह ठाकुर से हुआ तो अपने सेकुलर, प्रगतिशील, बौद्धिक रूप से मुकाबला करने की बजाय दिग्विजय सिंह यह साबित करने में लग गए कि वे प्रज्ञा सिंह ठाकुर से ज्यादा बड़े हिंदू हैं। वे प्रज्ञा के मुकाबले ज्यादा मंदिरों में गए और ज्यादा साधु संतों को प्रचार में उतारा। अगर वे अपने रूप में लड़ते तो थोड़े बहुत अंतर से हारते पर प्रज्ञा बन कर प्रज्ञा से लड़ने का नतीजा यह हुआ कि वे तीन लाख से ज्यादा वोट से हारे। लोग क्लोन नहीं चुनेंगे, जब उनके सामने वास्तविक आईकॉन होगा।

यही बात कांग्रेस को समझनी होगी। अगर दिग्विजय अपने चुनाव में प्रज्ञा का क्लोन बन कर लड़ने की बजाय उनके एंटी थीसिस के तौर पर लड़ते तो वे अपनी मजबूत जमीन पर खड़े रहते। ऐसे ही कांग्रेस अगर अपने सिद्धांतों, मूल्यों पर लड़ेगी तो उसकी जमीन बची रहेगी। अगर भाजपा बन कर लड़ने जाएगी तो उसके पास कुछ नहीं बचेगा। मोदी का क्लोन बन कर मोदी से नहीं लड़ सकते हैं राहुल। उन्हें मोदी की एंटी थीसिस के तौर पर कांग्रेस को मजबूत करना होगा।

हां, लोगों में भरोसा पैदा करना होगा, तब जाकर लड़ाई होगी, नहीं तो जमीन लगातार खिसकती जाएगी। गांधीवादी या नेहरूवादी समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता, प्रगतिशीलता जैसे मूल्यों को बचा कर ही कांग्रेस बचेगी।

कांग्रेस अगर अपने स्थापित सिद्धांतों, मूल्यों पर अडिग रह कर लड़ेगी तो उसकी जमीन बची रहेगी। अगर भाजपा बन कर भाजपा से लड़ने जाएगी तो उसके पास कुछ नहीं बचेगा। मोदी का क्लोन बन कर मोदी से नहीं लड़ सकते हैं राहुल। उन्हें मोदी की एंटी थीसिस के तौर पर खुद को मजबूत करना होगा।

अजित द्विवेदी
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं

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