कहा था न शंका ना कर, एक दिन बहुत पछताना पड़ेगा

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कार्टून
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आज तोराराम ने आते ही कहा – चाहे कोई आदमी समाचार लेकर आए या तेरे मोबाइल पर मैसेज आए, बिना कुछ बोले माफ़ी मांग लेना।
हमने कहा- हमने क्या गलती, अपराध, जुर्म या पाप क्या है जो माफ़ी मांग ले?
बोला- गौरव और अस्मिता वाले जिस तरह जोश में भरे हुए होते हैं उसे समझन पाना या उसे झेल पाना किसी के बस का नहीं होता। यदि माफ़ी मांगने पर भी वे छोड़ देते हैं तो गनीमत समझना। हमारे शास्त्रों में ऐसे ही दिनों की कल्पना करके कहा गया है – क्षमा बड़न को चाहिए, छोटन को उत्पात। मतलब छोटों का काम उत्पात मचाना है और बड़ों का काम क्षमा मांगना है।
हमने कहा – लेकिन हमें तो इसका अर्थ पढ़ाया गया था कि यदि छोटे उत्पात करें तो बड़ों को चाहिए कि वे छोटों को क्षमा कर दें।
बोला – क्षमा कोई मांगेगा तब करेगा ना। वे किसी से भी क्षमा नहीं मांगते क्योंकि गर्व और अस्मिता वाले गलती कर ही नहीं सकते तो क्षमा का प्रश्न ही कहां से उठेगा? यदि वे किसी को क्षमा कर दें तो सौभाग्य समझना।
हमने कहा – लेकिन तुझे किसी ‘आस्मिता-आक्रमण’ या ‘मॉब लिंचिंग’ की शंका क्यों हो रही है?
बोला- मझे अपनी शंका की फिक्र नहीं है। मुझे तो उस शंका को लेकर फिक्र हो रही है जो तूने मोदी जी द्वारा नाले की गैस से चाय बनाने पर की थी। किसी श्याम राव शिर्के ने स्टेटमेंट दिया है कि उसने इस प्रकार नाले की गैस से चाय बनाई थी। उसके पेटेंट के लिए आवेदन भी किया था, लेकिन अभी तक कोई संतोषजनक जवाब नहीं आया है। श्यामराव शिर्के राहुल गांधी द्वारा मोदी जी की ‘गैस गाथा’ का मजाक उड़ाने से नाराज और दुखी है। किसे पता, तेरे शंका करने से भी कोई न कोई नाराज हो जाए और तेरा नागरिक अभिनन्दन कर जाए। इसलिए कोई भी कहे तो तत्काल क्षमा मांग लेना और भविष्य में भारतीय विज्ञान के विरोध में कुछ न बोलने की कसम भी ले ले।हमने कहा – ठीक है बन्धु, अब तो हम भी अपने एक इनोवेशन को रजिस्ट्रेशन करवाने वाले है कि जब हमारे यहां गैस ख़त्म हो जाती है तो हम अपनी गाय के मुंह में रेग्युलेटर फिट कर देते है और समस्या हल हो जाती है। गाय की जुगाली से भी तो मीथन गैस बनती है। यदि कोई आदमी गैस्टिक का मरीज हो तो वह भी अपने मुंह में रेग्युलेटर फिट कर इस गैस का ईंधन के रूप में उपयोग कर सकता है। इस प्रकार गैस से होने वाले कष्ट से भी छुटकारा मिलेगा और बचत तो होगी ही। पूरे देश का हिसाब लागाएं तो हिसाब हजारों करोड़ पर जाकर बैठेगा। इससे एक साथ ही भारतीय विज्ञान में हमारी आस्था, गौभक्ति दोनों प्रमाणित हो जाते हैं। बोला अक्ल की तो तुझ में भी कमी नहीं है। हो सके तो ऐसे ही आविष्कारों पर एक किताब तैयार कर ले। क्या पता इंजिनियरिंग कॉलेज के पाठ्यक्रम में ही लग जाए। बुढ़ापे में दो पैसे की कमाई हो जाएगी और इज्जत मिलेगी सो अलग।

लेखक
रमेश जोशी

यह लेखक का निजी विचार है

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