कश्मीर में अब आगे क्या होगा?

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जम्मू कश्मीर में एक झटके में सरकार ने सब कुछ बदल दिया है। इसका भूगोल बदल गया। लद्दाख इससे अलग हो गया। जम्मू कश्मीर पूर्ण राज्य की बजाय केंद्र शासित प्रदेश बन गया। उसका विशेष राज्य का दर्जा खत्म हो गया। स्थायी नागरिकता का प्रावधान खत्म हो गया। तभी सवाल है कि इतने सारे बदलावों के बाद अब कश्मीर में आगे क्या होगा?

क्या लोग इन बदलावों को सहज रूप से स्वीकार कर लेंगे और इसे अपनी नियति मान रोजमर्रा के कामकाज में लग जाएंगे? या इन बदलावों को भारत का हमला बता कर अलगाववादी नेता आम लोगों को भड़काएंगे और हालात पहले की तरह अस्थिर और तनाव वाले ही रहेंगे? हिरासत में लिए गए नेता क्या करेंगे इससे भी बहुत कुछ तय होगा।

उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती गिरफ्तारी से छूटने के बाद राज्य के लोगों को बदली हुई स्थितियों को स्वीकार करने के लिए तैयार करेंगे और खुद चुनावी राजनीति में शामिल होंगे या इससे उलट कोई स्टैड लेंगे? ये तीनों स्थितियां इस बात पर निर्भर करेंगी कि केंद्र सरकार इस मामले में कैसे आगे बढ़ती है। केंद्र सरकार राजनीतिक दलों, अलगाववादी समूहों और आम लोगों को भरोसे में लेने के लिए क्या कदम उठाती है इससे तय होगा कि जम्मू कश्मीर में हालात कैसे रहेंगे।

ध्यान रहे पिछले कुछ समय से केंद्र सरकार स्थानीय निकायों को मजबूत करने के लिए काम कर रही है और पंचायतों को ढेर सारा धन भेजा जा रहा है। दूसरी ओर अलगाववादियों की नकेल कसी जा रही है। इन दोनों बातों का मिला जुला असर यह हो सकता है कि अलगाववादी आम लोगों को उकसाने में कामयाब नहीं हों। अगर ऐसा होता है तो राज्य में स्थायी शांति बहाली की उम्मीद की जा सकती है।

केंद्र सरकार के फैसले के बाद सबसे पहले यह समझने की जरूरत है कि जम्मू कश्मीर में क्या क्या बदल रहा है और आम लोगों के लिए इसका क्या मतलब है। जम्मू कश्मीर के लोगों और उनके अलावा देश के बाकी हिस्से के लोगों के लिए इसका मतलब अलग अलग है। कश्मीर के लोगों को जो विशेषाधिकार मिले हुए थे वे लगभग सारे खत्म हो जाएंगे। पहले राज्य की सारी सरकारी नौकरियां उनके लिए आरक्षित थीं। अब ऐसा नहीं होगा। अब देश का कोई भी नागरिक राज्य में नौकरी हासिल कर सकता है।

इसी तरह कश्मीर के स्थानीय लोग अब अपनी जमीन बाहरी लोगों को भी बेच सकते हैं, जो पहले नहीं कर सकते थे। बाहरी लोग जमीन खरीदने और नौकरी करने के लायक हो जाएंगे तो इसके साथ ही वे वोट देने में भी सक्षम हो जाएंगे। यानी अब कोई बाहरी व्यक्ति राज्य में मतदाता बन सकता है। बाहरी लोगों को जमीन खरीदने का अधिकार मिलने से संभव है कि स्थानीय लोगों को अपनी जमीन की ज्यादा कीमत मिले।

एक बड़ा बदलाव यह होगा कि देश के दूसरे हिस्से के लोग अब कश्मीर में कारोबार कर सकेंगे। इससे स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे। सोचें अगर देश की तमाम बड़ी कंपनियां खास कर पर्यटन से जुड़ी कंपनियां कश्मीर में बिजनेस शुरू करती हैं तो स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के कितने अवसर पैदा होंगे। राज्य में चार पीढ़ियों से परमिट पर काम कर रहे हजारों सफाई कर्मचारियों को नागरिकता मिलेगी और वे दूसरी नौकरी करने में भी सक्षम होंगे। एक बड़ा बदलाव यह होगा कि राज्य से बाहर के लोगों से शादी करने वाली महिलाओं को भी अब पूरे अधिकार मिलेंगे।

जम्मू कश्मीर का दर्जा अब दिल्ली की तरह केंद्र शासित प्रदेश का होगा, जहां विधानसभा तो होगी पर ज्यादा अधिकार उप राज्यपाल के पास होंगे। सुरक्षा व्यवस्था उप राज्यपाल के हवाले होगी और जमीन का मामला भी उप राज्यपाल ही देखेंगे। एक बड़ा बदलाव यह होगा कि राज्य में सूचना का अधिकार कानून लागू हो जाएगा। अभी यह कानून राज्य में लागू नहीं है, जिसकी वजह से राज्य में भ्रष्टाचार का बोल बाला रहा।

सरकारी कर्मचारियों की मिलीभगत से नेता और अलगाववादी केंद्र से जाने वाले फंड में हेराफेरी करते रहे। आरटीआई लागू होने से भ्रष्टाचार रूकने और आम लोगों को उनका हक मिलने की उम्मीद बढ़ेगी। एक बदलाव यह भी होगा कि अब राज्य में तिरंगे का अपमान अपराध माना जाएगा। सुप्रीम कोर्ट के आदेश भी अब पूरी तरह से जम्मू कश्मीर पर लागू होंगे। संसद से पास होने वाले कानून सीधे राज्य पर लागू होंगे। दोहरी नागरिकता जैसी कोई चीज नहीं होगी और पाकिस्तान के नागरिकों को अब कश्मीर में नागरिकता नहीं मिलेगी। अल्पसंख्यकों को आरक्षण मिलेगा और शिक्षा का अधिकार कानून भी लागू हो जाएगा।

जम्मू कश्मीर का दर्जा बदले जाने के बाद जितने किस्म के बदलाव होने वाले हैं उनसे स्थानीय लोगों का फायदा बहुत कम है। ज्यादा फायदा बाहर के लोगों को होगा, जिनके लिए नए दरवाजे खुल रहे हैं। तभी यह सवाल है कि आम लोग इस बदलाव को कैसे लेंगे? वे किस अंदाज में अपने दरवाजे बाहरी लोगों के लिए खोलते हैं? य़ह भी सवाल है कि कौन से बाहरी लोग वहां कारोबार करने और बसने जाते हैं? हो सकता है कि वहां से निर्वासित कश्मीरी पंडित वापस बसने जाएं पर दूसरे लोग वहां बड़ी संख्या में जाएंगे इसमें संदेह है। यह हो सकता है कि बड़े कारोबारी वहां जमीन लेने और कारोबार शुरू करने पहुंचें। बहरहाल, इस बदलाव को राज्य की बेहतरी में बदलने के लिए सबसे पहले स्थानीय लोगों का भरोसा जीतना होगा। उनको समझना होगा कि इससे उनके हितों को चोट नहीं पहुंचेगी।

अजीत द्विवेदी
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं

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