गृहमंत्री अमित शाह से जम्मू-कश्मीर के लगभग 100 लोगों के प्रतिनिधि मंडल ने कल दिल खोलकर बात की। उनमें पंचायतों के सरपंच, पंच और सेब-उत्पादक किसान आदि भी थे। यह पूछा जा सकता है कि लगभग 4500 पंचायतों के 35 हजार पंचों में से कुछ दर्जन पंचों के मिलने का क्या महत्व है ? जो मिले हैं, वे कितने कश्मीरियों का प्रतिनिधित्व करते हैं ?
यह प्रश्न अपनी जगह सही है लेकिन जो परिस्थितियां अभी कश्मीर में हैं, उन्हें देखते हुए इतने लोगों से भी गृहमंत्री का मिलना अपने आप में महत्वपूर्ण है। कई बार कुछ लोग ही बहुत-से लोगों की इतनी बातें कह देते हैं, जितनी वे बहुत-से लोग सब मिलकर भी नहीं कह पाते। इस भेंट में यही हुआ। पंचों ने जब कहा कि वे डर के मारे घर से बाहर नहीं निकल पाते तो गृहमंत्री ने कहा कि सभी पंचों और ग्रामप्रधानों के लिए सरकार दो-दो लाख का बीमा करेगी।
उन्होंने सभी पंचों और दुकानदारों को भी सुरक्षा देने का आश्वासन दिया। एक दुकानदार की इसीलिए हत्या कर दी गई है कि उसे आतंकवादियों ने दुकान बंद रखने की धमकी दी थी। गृहमंत्री ने अगले 15-20 दिन में संचार के सभी साधनों को खोल देने का भी संकेत दिया। कश्मीर के हर गांव के कम से कम पांच नौजवानों को रोजगार का भी भरोसा दिया गया। राज्यपाल सतपाल मलिक पहले ही 50 हजार रोजगार देने की घोषणा कर चुके हैं।
गृहमंत्री ने 316 खंडों में शीघ्र ही चुनाव करवाने की घोषणा की है। जम्मू में हुई फौज-भर्ती की रैली में हजारों नौजवानों ने भाग लिया है। गृहमंत्री ने यह आश्वासन भी दिया है कि जम्मू-कश्मीर का ज्यों ही वातावरण ठीक-ठाक होगा, उसे राज्य का दर्जा दिए जाने में देर नहीं की जाएगी। अमित शाह ने यह कहकर कश्मीरियों के घाव पर मरहम रख दिया है कि धारा 35 ए के खत्म होने का अर्थ यह नहीं कि कश्मीर की जमीन बाहरी लोग आ कर कब्जा करने लगेंगे।
यह बात मैंने 5 अगस्त को ही लिखी थी। मुझे खुशी है कि सरकार ने कश्मीरियत की रक्षा का भरोसा दिलाया है लेकिन मेरी समझ में नहीं आता कि यही बात नरेंद्र मोदी ज़रा साफ-साफ और जोर से क्यों नहीं कहते ? यदि कश्मीरियों को 5 अगस्त के पूर्ण विलय के फायदे सरकार ठीक से समझा पाएगी तो जिस हुड़दंग की आशंका से वह डरी हुई है, उसे काबू में लाना कठिन नहीं होगा।
डॉ. वेदप्रताप वैदिक
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं