फोर्ड के संस्थापक हेनरी फोर्ड अपने कर्मचारी का व्यवहार परखने के लिए किसी को उसके घर भेजते थे। अच्छे कर्मचारी अत्यधिक मदिरापन से बचेंगे, घर साफ रखेंगे और ‘अमेरिकन तरीके’ से चीजें करेंगे। ये एक सदी पहले 5 डॉलर मजदूरी देने की उनकी शर्तें थीं! आपको फोर्ड की यह परिपाटी अति लग सकती है, पर आश्चर्य की बात नहीं कि नियोक्ता आज भी विश्वासपात्र कर्मचारी रखना चाहते हैं।
दशकों से नियोक्ता ‘ज्यादा जोखिम’ भरे उम्मीदवारों से बचने के लिए उनकी नैतिकता परखते आ रहे हैं। नैतिकता परीक्षण के दो प्रारूप हैं: प्रत्यक्ष और गुप्त। प्रत्यक्ष नैतिकता परीक्षण सीधे बेईमानी और प्रतिकूल व्यवहार जैसे चोरी, निजी प्रयोग के लिए इंटरनेट इस्तेमाल, काम से अनुपस्थिति आदि परखने के लिए होते हैं।
वे नैतिकता का आकलन कर्तव्यनिष्ठा जैसी प्रतिनिधि चीज़ों से करते हैं। सरकारी नियोक्ता भी कोई अपवाद नहीं हैं। लेकिन असल सवाल है कि क्या ये नियोक्ता कार्यक्षेत्र पर भी वही सिद्धात अपनाते हैंं? अधिकांश मामलों में जवाब ना है। यहां दो उदाहरण हैं। पहला उदाहरण: इस साल 4 दिसंबर को पुणे के पिंपरी चिंचवड नगर निगम द्वारा संचालित अस्पताल ने ना सिर्फ अपनी वेबसाइट, बल्कि समाचार पत्र में भी भर्ती प्रक्रिया का विज्ञापन प्रकाशित किया। ऐसे समय में जब बेरोजगारी पीक पर है, इस जैसी कोई भी भर्ती प्रक्रिया आशा की किरण दिखाती है, पर इसके चलते नियोक्ताओं के लिए आवेदनों की बाढ़-सी आ जाती है।
वास्तव में यह अच्छा है क्योंकि इससे नियोक्ता के पास ढेर सारे विकल्प होते हैं। वह स्टाफ नर्स, लैब टेक्नीशियन, योग्य सामाजिक कार्यकर्ता, डायलिसिस टेक्नीशियन, ब्लड बैंक काउंसलर, फिजियोथैरेपिस्ट, डाटा एंट्री कर्मचारी और दूसरी अन्य भूमिकाओं को मिलाकर कुल 143 पदों पर भर्ती कर रहे थे।
हालांकि विज्ञापन में लिखित परीक्षा की तारीख नहीं दी थी और यह भी नहीं था कि तारीख कहां देखते रहें। अचानक 17 दिसंबर की शाम योग्य उम्मीदवारों की सूची और परीक्षा कार्यक्रम चुपके से निगम की वेबसाइट पर डाल दिया गया। इस शनिवार 19 दिसंबर को परीक्षा हो गई।
सिर्फ वेबसाइट पर चतुराई भरी घोषणा और आवेदकों को एसएमएस या मेल करने की जहमत ना उठाने का असर यह हुआ कि 60% से ज्यादा आवेदकों को पता ही नहीं चला और वे परीक्षा में शामिल नहीं हो सके। अब कई लोगों में असंतोष है और भविष्य में वे सही कदम उठाने के बारे में सोच रहे हैं। दूसरा उदाहरण: उसी शहर पुणे में, वो भी उसी सप्ताह दूसरी घटना प्रकाश में आई। पुणे महानगर परिवहन महामंडल लि. की बसों में महिला यात्रियों के लिए सीटें आरक्षित होती हैं। लेकिन विडंबना है कि यातायात विभाग कथित तौर पर अपनी ही महिला कर्मचारियों के बारे में ज्यादा नहीं सोचता।
महिला कर्मचारियों के आश्रित परिजनों को स्वास्थ्य बीमा पर मिलने वाला कवरेज, पुरुष कर्मचारियों के मुकाबले सीमित है। इस पक्षपात का भारी विरोध हो रहा है। इसकी पॉलिसी के तहत पुरुष कर्मचारियों का पूरा परिवार आश्रितों के रूप में कवर किया गया है, वहीं महिलाओं के लिए योजना सिर्फ खुद कर्मचारी और उनके बच्चों तक ही सीमित है। संस्थान में 10 हजार लोगों में एक हजार महिला कर्मचारी हैं। जिनका दावा है कि महिला-पुरुष कर्मचारियों की मासिक तनख्वाह से एक-सी राशि कटती है। फंडा यह है कि यदि आप चाहते हैं कि आपके कर्मचारी ईमानदार और भरोसेमंद रहें, तो सुनिश्चित करें कि उनकी भर्ती प्रक्रिया से लेकर उन्हें सारी सुविधाएं देने में निष्पक्षता बनाए रखें।
काम का तरीका बदलेगा: वे दिन गए जब बच्चे ट्यूशन टीचर की मदद लेते थे। वे अब अपने ट्यूशन टीचर को ‘प्रोडक्टिविटी फ्रेंड्स’ (उत्पादकता मित्र) कहेंगे। इसे यह समझकर नकार मत दीजिएगा कि यह एक सजावटी नाम वाला बदलाव है। पूरा खेल, मेरा मतलब इन नए पदनाम वाले पेशेवरों का काम करने का तरीका बदल जाएगा। यह नया पदनाम इसलिए है क्योंकि वे सिर्फ शिक्षक नहीं हैं, वे न सिर्फ स्कूल पाठ्यक्रम पूरा करने और बोर्ड परीक्षाओं की तैयारी में मदद करेंगे, बल्कि छात्रों के साथ संगीत सुनेंगे, डीजे बनेंगे और उनकी पसंद के हर खेल के बारे में बात करेंगे। एक प्रोडक्टिविटी फ्रेंड किसी बच्चे से बॉस्केटबॉल की, तो किसी बच्चे से फुटबॉल या क्रिकेट के बारे में बात करने में भी निपुण होगा।
ये नए पदनाम वाले ट्यूशन टीचर सोशल मीडिया से भी वाकिफ हैं और बच्चे के साथ पीएस-4 कम्प्यूटर गेम खेलने को भी तैयार रहेंगे। कुलमिलाकर ये प्रोडक्टिविटी फ्रेंड बच्चों की पसंद की बातें करेंगे, उनके साथ घनिष्ठता बढ़ाएंगे और इन सबसे उनकी पढ़ाई मजेदार बनाकर धीरे-धीरे बच्चों को उनकी सर्वोच्च उत्पादकता तक पहुंचाएंगे। ज्यादातर छात्र जानते हैं कि क्या सीखना है, लेकिन कैसे पढऩा है, यह समझने में भटक जाते हैं। इन नए ट्यूशन टीचर्स को प्रोडक्टिविटी फ्रेंड्स कहें या स्टडी बडीज़, वे आपके बच्चे की पढ़ाई का स्मार्ट, तेज और प्रभावशाली तरीका तलाशने में मदद के लिए कड़ी मेहनत करते हैं। और यही जीवनभर का सबक है। इसीलिए कंपनियां अब युवा और तकनीक में निपुण ग्रेजुएट्स को नौकरी दे रही हैं, जो छात्रों की न सिर्फ पढ़ाई और होमवर्क खत्म करने में, बल्कि असली जिंदगी की कई परीक्षाएं पास करने में भी मदद करें, जो स्कूल के बाहर होती हैं। ऐसा ही म्यूजिक आर्टिस्ट के साथ है। उनमें से कुछ सिर्फ संगीतकार नहीं हैं, बल्कि बहुत अच्छे म्यूजिक थैरेपिस्ट भी हैं।
देशभर के गंभीर कोविड मरीजों का इलाज कर रहा चेन्नई का एमजीएम हेल्थकेयर 25 व 26 दिसंबर को अपने खुले प्रांगण में लाइव म्यूजिक सेशन आयोजित करेगा। चूंकि पांचों इंद्रियों में सुनने की क्षमता सर्वश्रेष्ठ है, इसलिए हॉस्पिटल अधिकारियों को लगता है कि संगीत कई मरीजों के लिए कारगर रहा है, जिनसे उन्हें सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली है। यूके के नौकरी गवां चुके शिक्षकों, कोच, कॉलेज छात्रों और डे-केयर वर्कर्स का उदाहरण भी देखें। चूंकि कोविड का फैलाव नियंत्रण से बाहर हो गया है, लंदन लॉकडाउन में है और बेल्जियम, ऑस्ट्रिया, इटली और नीदरलैंड ने अपनी लाइट्स रोक दी हैं, ऐसे में कई माता-पिता चाहते हैं कि जब वे घर के काम कर रहे हों तो बच्चों को आया संभालें।
चूंकि कोई आवागमन नहीं कर सकता, कई लोगों ने ‘वर्चुअल बेबीसिटर्स’ नाम की नई नौकरी शुरू की है। वे बच्चों के पीछे भागने वाले, गंदगी साफ करने वाले या बनावटी खेल खेलने वाले नहीं हैं। बल्कि वे टीवी या लैपटॉप के सामने एक घंटे का सेशन देते हैं, जिसमें एक छोटा हैलो, चैट, कुछ कहानियां, कविताएं सुनाने के समय के अलावा काउंटिंग, खेल, संगीत आदि शामिल होते हैं। पूरा घंटे बच्चा सक्रिय रहता है और हर दिन वर्चुअल आया अपना सेशन किसी मशहूर गाने पर नाचते हुए खत्म करता है। जब बच्चे एक कमरे में व्यस्त रहते हैं, पैरेंट्स को अधूरे काम करने का मौका मिल जाता है, फिर वह रोजमर्रा के काम हों या बॉस के साथ जरूरी मीटिंग। फंडा यह है कि अगर आप तकनीक में निपुण हैं और नई भूमिकाएं जोडऩे को तैयार हैं, तो 2021 में आपको नए पदनाम मिल सकते हैं।
एन . रघुरामन
(लेखक मैनेजमेंट गुरु हैं ये उनके निजी विचार हैं)