नि: संदेह दिलीप कुमार भारत ही नहीं बल्कि दक्षिणी एशिया के फिल्मी प्रेमियों के ट्रेजडी किंग थे। उन्होंने अपनी अदाकारी से भारतीय फिल्म जगत में नए आयाम स्थपित किए। बुधवार को उन्होंने अपने प्रशंसकों को गमगीन कर संसार से विदाई ले ली। अभिनय के बेजोड़ इस कलाकार की मौत ने उनके चाहने वालों गम का माहौल पैदा किया। दिलीप कुमार भले ही पाकिस्तान की धरती पर पैदा हुए हो लेकिन उनको भारत से अभूतपूर्व प्रेम था। इसलिए जब पाकस्तिान सरकार ने सन 1998 में ‘निशान-ए-इत्याज’ एवार्ड से सम्मानित करने का ऐलान किया तो तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल विहारी बाजपेयी के परामर्श के बाद ही उन्होंने इस समान को ग्रहण किया। यही नहीं भारत सरकार से भी दादासाहब फाल्के पुरस्कार के अलावा पदम् भूषण, पदम विभूषण व फिल्मफेयर समान पाने वाले दिलीप कुमार के चाहने वाले केवल हिंदुस्तान में ही नहीं बल्कि पाकिस्तान अफगानिस्तान, बंगाल, नेपाल, श्रीलंका आदि देशों में भी मौजूद हैं। भले ही टे्रजडी किंग का बचपन पाकिस्तान में बीता हो लेकिन दिलीप कुमार ने कभी पाकिस्तान का पक्ष नहीं लिया।
उनके दिल में हमेशा हिंदुस्तान ही बसता था। पाकिस्तान का समान पाने के बावजूद एक बार दिलीप कुमार ने पाक के पूर्व पीएम नवाज शरीफ की भी लास लगा दी थी। अभिनय क्षेत्र में अमिट छाप छोडऩे वाले इस कलाकार के चाहने वाले करोड़ों लोग हैं। यहां तक कि भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी दिलीप कुमार के फैन थे। जब पाकिस्तान ने दिलीप साहब को निशान-ए-इतियाज देने का फैसला किया तो इसका भारत में कुछ लोगों ने विरोध किया था। लोगों ने दिलीप कुमार की भी इसके लिए आलोचना की थी, मगर तब दिलीप कुमार ने पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी से सलाह मांगी थी? इसके जवाब में वाजपेयी ने कहा कि यह समान जरूर लिया जाना चाहिए योंकि दिलीप कुमार एक कलाकार हैं और कलाकार के लिए किसी देश की सीमा और राजनीति कोई मायने नहीं रखती है। भले ही दिलीप कुमार पाकिस्तान के मूल निवासी थे मगर उन्होंने हमेशा हिंदुस्तान का पक्ष लिया। जब करगिल में तत्कालीन पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ ने घुसपैठ कराई थी तो इस पर दिलीप कुमार काफी नाराज हो गए थे। पाक के पूर्व विदेश मंत्री खुर्शीद अहमद कसूरी बताया कि जब घुसपैठ की खबर पर अटल बिहारी वाजपेयी पाक पीएम नवाज शरीफ से बात कर रहे थे।
फोन पर वाजपेयी ने कहा था कि हम तो लाहौर में दोस्ती का पैगाम लेकर आए थे लेकिन आपने उसके बदले में हमें करगिल का युद्ध दे दिया। इसके बाद उन्होंने अचानक फोन दिलीप साहब को पकड़ा दिया। दिलीप कुमार ने उसी समय नवाज शरीफ को फटकार लगाते हुए कहा था कि आपने हमेशा अमन के बड़े समर्थक होने का दावा किया है तो हम आपसे जंग की उमीद नहीं करते। तनाव के हालात में भारत में मुसलमान असुरक्षित हो जाते हैं इसलिए हालात को काबू में करने के लिए बराय मेहरबानी कुछ कीजिए। दिलीप कुमार की आवाज सुनकर पाकिस्तानी पीएम भी उनकी बात को नहीं काट पाए। बुधवार का ऐसा दिन था जब भारत में खुशी-गम की लहर देखी गइ। एक ओर दिलीप कुमार जैसी शख्सियत दूनिया से कूच कर रही थी, जिसके जाने से उनके चाहने वाले गमगीन थे, तो दूसरी ओर मोदी सरकार का विस्तार हो रहा था। विस्तार से देश में खुशी का माहौल था। दिलीप कुमार ऐसी हस्ती थी जो न तो रोज जन्म लेती है, और न ही मरती है। ऐसी स्थिति में या मोदी सरकार को अपने मंत्रीमंडल का विस्तार एक दिन के लिए स्थगित नहीं करना चाहिए था? अब खुशी मनाई जाए या गम?