और अतं में येदियुरप्पा!

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तो इस तरह से भ्रष्टाचार के खिलाफ भाजपा की लड़ाई अंत नतीजे तक पहुंच गई। कर्नाटक में एचडी कुमारस्वामी की सरकार गिरते और बीएस येदियुरप्पा को कमान देने का फैसला होते ही एक चक्र पूरा हो गया है। जिन लोगों की सांसें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस घोषणा से अटकी हुई थीं कि ‘न खाऊंगा, न खाने दूंगा’ उनकी जान में जान आ गई होगी। उनका पैसे, तिकड़म, दबाव आदि के पुराने मारक हथियारों पर भरोसा बढ़ गया होगा। अगर एचडी कुमारस्वामी की सरकार नहीं गिरती तो पैसे सहित तमाम उपायों पर से लोगों का भरोसा ही उठ जाता।

वैसे येदियुरप्पा को भ्रष्टाचार का दोषी मानने का फिलहाल कोई कानूनी आधार नहीं है। जमीन का लैंड यूज बदलने से लेकर अवैध खनन आदि के जो आरोप हैं वो सिर्फ आरोप हैं। कुछ मामलों में तो वे आरोप मुक्त भी हो गए हैं। पर यहीं स्थिति तो टूजी से लेकर कोयला और कॉमनवेल्थ तक के घोटाले के आरोपियों की भी है। राहुल गांधी के जमानत पर छूटे होने का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने इतना मुद्दा बनाया फिर येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री बनाने के फैसले का पैमाना क्यों अलग है?

भाजपा के लिए येदिय़ुरप्पा और ए राजा के आकलन का पैमाना अलग है। सोमवार को लोकसभा में सूचना के अधिकार कानून में संशोधन के लिए लाए गए बिल पर चर्चा के दौरान डीएमके की तरफ से जब ए राजा ने इसका विरोध किया और इसे लोकतंत्र के लिए काला दिन बताया तो भाजपा सांसदों ने उनको हूट किया। कहा कि जो दो साल जेल काट कर आए हैं वो भी काले दिन का आरोप लगा रहे हैं। ए राजा जेल भले काट कर आए हैं पर उनके ऊपर जो आरोप लगे थे उनसे वे बरी हुए हैं। सीबीआई की विशेष अदालत ने उन्हें और टूजी के बाकी सभी आरोपियों को बरी किया है। विशेष अदालत से बरी होने के बावजूद ए राजा भ्रष्ट माने जाएंगे और मजाक के पात्र रहेंगे क्योंकि वे भाजपा विरोधी पार्टी में हैं। अगर उनकी पार्टी अभी भाजपा का समर्थन करे तो वे हो सकता है कि दूध के धुले हो जाएं, जैसे राजा की ही तरह जेल काट कर आए जगन मोहन रेड्डी हो गए हैं। उनको तो अभी बरी भी नहीं किया गया है। वे जमानत पर छूटे हैं और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं।

बीएस येदियुरप्पा की स्थिति भी कुछ अलग नहीं है। उनके करीब तीन साल के राज में अनगिनत वित्तीय गड़बड़ियों की खबर आई। उनके ऊपर 18 मुकदमे हैं और दस मुकदमे तो ऐसे हैं, जिनमें उम्र कैद तक की सजा हो सकती है। निचली अदालत ने उनको एक मामले में सजा भी सुनाई थी पर वे हाई कोर्ट से बरी हो गए। वे जेल भी काट आए हैं। फिर भी वे पवित्र हैं और मुख्यमंत्री बनने के योग्य हैं!

उनकी यह योग्यता दो-तीन कारणों से है। पहला कारण तो यहीं है कि वे भाजपा में हैं। दूसरा कारण यह है कि करीब 25 फीसदी लिंगायत वोट पर वे जबरदस्त पकड़ रखते हैं और उनके अलग पार्टी बना लेने से भाजपा को जो नुकसान हुआ था उसकी याद पार्टी नेताओं के जेहन में ताजा है। तीसरा कारण यह है कि मौजूदा विधायकों में उनके समर्थकों की वजह से किसी और का मुख्यमंत्री बनना संभव नहीं था। सो, अगर भाजपा आलाकमान उनको मुख्यमंत्री बनाने को तैयार नहीं होता तो या तो कांग्रेस-जेडीएस की सरकार चलती रहती, येदियुरप्पा किसी और को मुख्यमंत्री नहीं बनने देते या एक बार फिर भाजपा में तोड़फोड़ करते। इसलिए बदनामी वाले तमाम आरोपों के बावजूद उनको कमान देने का फैसला हुआ।

अपनी निजी छवि के अलावा उनकी सरकार बनवाने के लिए वह सब हुआ, जिनके बारे में यह धारणा है कि मोदीजी उसे पसंद नहीं करते। विधायकों की खरीद फरोख्त, उन्हें भगाना, छिपाना, अदालती दखल जैसे तमाम काम हुए, जिनको बदलने का दावा करके नरेंद्र मोदी केंद्र की राजनीति में आए थे। हालांकि उत्तराखंड से लेकर अरुणाचल प्रदेश, गोवा और मणिपुर सहित अनेक राज्यों में सरकार गिराने, बनाने के लिए जिस किस्म की जोड़ तोड़ पिछले पांच साल में भाजपा ने की है उससे हम्माम में सबके नंगे होने की कहावत पहले ही सही साबित हो गई थी। अब कर्नाटक के घटनाक्रम ने उस चक्र को पूरा कर दिया है।

अजित द्विवेदी
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं

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