ऐतिहासिक फैसले की गवाह ये तारीख

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जिसको साहिल पे समझते हो वो मझधार में है, अब भी ये नाव हवाओं के इख्तियार में है। जो कभी आया नहीं और ना कभी आएगा, ये सदी अब भी उसी कल के इंतजार में है। 15 अगस्त आने में अभी कुछ दिन शेष हैं और इस आजादी की संदली खुशबू को महसूस करने के पहले ही जम्मू – कश्मीर की आवाम को एक नई प्रकार की आजादी उपहार स्वरूप मिलने का ऐतिहासिक फैसले का गवाह 5 अगस्त की तिथि बन चुकी है। इसे देश में स्वतंत्रता की एक नई लहर भी कहा जा रहा है। एक देश, एक संविधान, एक ध्वज और एक निशान की भावना से जुडक़र यह महान निर्णय लिया गया है। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 370, 35ए और जम्मू- कश्मीर का राजनीतिक भविष्य ऐसे ही सवाल थे। जिसको लेकर भारत की आम जनता यही सोचती थी कि शायद इस समस्या का कभी समाधान नहीं हो पाएगा। जनता सोचती थी कि भारत के किसी भी सत्ताधारी दल के पास कब वह मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति आएगी। जब जम्मू-कश्मीर का नया मुकद्दर लिखा जाएगा। देश के प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने एक मजबूत योजना बनाकर 5 अगस्त को जम्मू- कश्मीर पर पांच बड़े फैसले पर ऐतिहासिक घोषणा की है। सरकार ने जम्मू-कश्मीर का दो भागों में विभाजन करने का निर्णय लिया है।

साथ ही अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35ए को समाप्त करने का निर्णय लिया गया है। लद्दाख अब बिना विधानसभा के केंद्र शासित प्रदेश बनेगा। जबकि जम्म-कश्मीर को विधानसभा सहित एक केंद्रशासित प्रदेश बनाए जाने का ऐतिहासिक निर्णय हुआ है। यह निर्णय कुछ उसी प्रकार का है। जैसे देश का सर्वोच्च कानून संविधान होने के बावजूद, पर्सनल लॉ को भी वजूद मिले रहने के बाद मुस्लिम महिलाओं के साथ अन्याय होता देख किसी ने ट्रिपल तलाक रूपी अनुच्छेद 370 और 35ए को खत्म कर दिया हो। इन निर्णयों से क्या हासिल होगा यह बिल्कुल साफ है। अखंड भारत से अपने को अलग समझने वाले जम्मू- कश्मीर के दलों और हुर्रियत जैसे अलगाववादियों ने जो मानसिक विभाजन की लकीर खींच रखी थी, पत्थरबाजों सैय्यद बाबर कादरी, यासीन मलिक, शबीर शाह और गिलानी जैसे लोगों ने भारत की अखंडता को छिन्न-भिन्न करने की कोशिश की। ऐसी हर कोशिश के सफाए की कोशिश सरकार द्वारा की जा रही है। देश में एक ध्वज, एक निशान और एक संविधान के लक्ष्य के साथ यह कदम उठाया गया है।

सोचिए कि कितने गौरव का दिन होगा, इस साल का 15 अगस्त जब पूरे देश के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर में भी भारत का तिरंगा झंडा फहराया जाएगा। यह कदम नहीं उठाया गया होता तो अलगाववादियों और उनके समर्थकों आसिया अंद्राबी, बाबर कादरी, शबनम लोन जैसे लोगों के खुले और फुल कुतर्क के साथ भारत विरोध और पाकिस्तान समर्थन का सिलसिला जारी रहता। आप लोगों को रिपब्लिक टीवी पर बाबर कादरी का भारत के लिए बयान याद है। उसने भारत मुर्दाबाद के नारे लाइव शो में लगाए थे और पाकिस्तान का समर्थन किया था। शबनम लोन ने पाकिस्तानी आतंकियों की जम्मू-कश्मीर में जान जाने पर उसे शहादत का दर्जा दिया। ऐसे ना जाने कितने उदाहरण और कितने एजेंट हैं जिन्होंने पाकिस्तान के मंसूबों को मजबूत धार दी और पाकिस्तान ने धड़ल्ले से एलओसी क्रॉस किया और सीजफायर का खुलकर उल्लंघन करता रहा। पाकिस्तान के साथ चीन का गठजोड़ पीओके में भारत की संप्रभुता और अखंडता के लिए खतरा रहा है। भारत ने आज पीओके को सही तरीके से रेग्युलेट करने की ठानी है, तो इससे बेहतर बात क्या हो सकती है। पाक चीन के साथ मिलकर बलूचिस्तान के ग्वादर बंदरगाह से होते हुए पाक अधिकृत कश्मीर के गिलगित बाल्टिस्तान से गुजरने वाला चीन-पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर भी बना रहा है।

इसी के साथ ही कश्मीर में आतंक और दहशत फैलाने वाले लोगों के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र संघ में उठाए गए प्रस्तावों पर वीटो लगाने में चीन माहिर रहा है। अभी जुलाई माह में ही चीन लद्दाख के अंदर घुस आया था। वह दलाई लामा के जन्म दिन ना मनाने के संबंध में निर्देश जारी करता है। इस परिप्रेक्ष्य में 5 अगस्त का निर्णय एक दूरगामी परिणाम देने वाला साबित होगा। इससे कश्मीर के पार्टियों, अलगाववादियों, पाक और चीन को एक साथ प्रभावी संदेश जाएगा कि जम्मू-कश्मीर के मुद्दे पर अब भारत की एक सुस्पष्ट नीति है। जब 1947 में जम्मू- कश्मीर पर पाकिस्तान ने हमला किया था। इसके बाद के वर्षों में जिस व्यक्ति ने कश्मीर के विवाद के समाधान के लिए संयुक्त राष्ट्र के अंदर आठ घंटे का लगातार भाषण दिया था वो थे वी के कृष्णमेनन जो प्रधानमंत्री नेहरू के बाद दूसरे सबसे शक्ति शाली डिप्लोमैट थे। खैर यह प्रॉब्लेम उस समय तो सॉल्व नहीं हो पाई थी, लेकिन आज बहुत से लोग गृहमंत्री अमित शाह को हीरो ऑफ कश्मीर का दर्जा दे रहे हैं। जो 1960 के दशक में वी के कृष्णमेनन को कहा गया था।

अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35 ए जैसे प्रावधान के चलते जम्मू-कश्मीर की सरकारों ने भारतीय संघ के साथ सौदेबाजी की। कश्मीर के नागरिकों को मानसिक स्तर पर भारत के नागरिकों से अलग समझा गया। दोनों के मौलिक अधिकारों में अंतर बताया गया। भारत के नागरिकों को पर्यटन से लेकर भूमि संबंधी अधिकारों से वंचित किया गया। विवाह संबंध के आधार नागरिकों को अधिकारों से वंचित करने जैसे प्रावधानों ने एक देश दो व्यवस्था जैसे बात को वैधता दे रखी थी। अलग संविधान, अलग ध्वज, अलग व्यवस्था जम्मू-कश्मीर को देने की बहुत बड़ी कीमत भारत को चुकानी पड़ेगी, ऐसा भारत ने कभी नहीं सोचा था। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 के प्रावधानों जो कि संक्रमणकालीन और अस्थाई उपबंध है, को गलत तरीके से इंटरप्रेट कर जम्मू- कश्मीर सरकार और अलगाववादियों ने वहां अपनी स्वायता, आत्म निर्धारण के अधिकार,अपनी खुद की डिफाइंड जम्हूरियत यानि लोक तंत्र, कानून निर्माण के पक्ष में लोगों को गुमराह किया। यहां यह जानना जरूरी है कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 370 भारतीय संसद को जम्मू-कश्मीर के बारे में रक्षा, विदेश मामले और संचार के विषय में कानून बनाने का अधिकार देने का प्रावधान करता था, लेकिन किसी अन्य विषय से सम्बन्धित कानून को लागू करवाने के लिए केंद्र को राज्य सरकार के अनुमोदन को प्राप्त करने का प्रावधान किया गया था।

विवेक ओझा
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं ।)

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