एक फरबरी को रथ सप्तमी, जानें सूर्योपासना का मुहूर्त एवं धार्मिक महत्व

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रथ सप्तमी का पर्व 1 फरवरी को मनाया जाएगा। यह एक सूर्योपासना का पर्व है। हिन्दू पंचांग के अनुसार, माघ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को रथ सप्तमी के नाम से जाना जाता है। रथ सप्तमी को अचला सप्तमी भी कहते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दिन भगवान भास्कर यानी सूर्यदेव की साधना-आराधना का अक्षय फल मिलता है। सच्चे मन से की गई साधना से प्रसन्न होकर भगवान भास्कर अपने भक्तों को सुख-समृद्धि एवं अच्छी सेहत का आशीर्वाद प्रदान करते हैं। इस दिन भक्ति भाव से किए गए पूजन से प्रसन्न होकर प्रत्यक्ष देवता सूर्यदेव अपने भक्तों को आरोग्य का आशीर्वाद प्रदान करते हैं, इसीलिए इसे आरोग्य सप्तमी भी कहते हैं।

रथ सप्तमी का मुहूर्त
माघ शुक्ल सप्तमी तिथि प्रारंभ – 31 जनवरी 2020, शनिवार 15: 50 बजे से माघ शुक्ल सप्तमी तिथि का अंत – 01 फरवरी 2020,
रविवार 18:08 बजे तक

रथ सप्तमी की पूजा विधि
रथ सप्तमी के दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान करके उगते हुए सूर्य का दर्शन एवं उन्हें घृणि सूर्याय नम: कहते हुए जल अर्पित करें। सूर्य की किरणों को लाल रोली, लाल फूल मिलाकर जल दें। सूर्य को जल देने के पश्चात् लाल आसन में बैठकर पूर्व दिशा में मुख करके इस मंत्र का 108 बार जप करें

‘एहि सूर्य सहस्त्रांशो तेजोराशे जगत्पते।
अनुकम्पय मां भक्त्या गृहणाध्र्य दिवाकर।।’

ऐसा करने से सूर्य देवता की कृपा मिलेगी और आपको सुख-समृद्धि और अच्छी सेहत का आशीर्वाद प्राप्त होगा। आपको किए गए कार्य का फल शीघ्र मिलने लगेगा और आपके अपयश दूर हो जाएंगे। साथ ही आपके भीतर एक नई ऊर्जा का संचार होगा और आप सफलता के मार्ग पर बढऩे लगेंगे।

रथ सप्तमी का धार्मिक महत्व
माघ मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी के दिन प्रात: सूर्योदय से पूर्व किसी पवित्र नदी अथवा जलाशय में स्नान करके सूर्य को दीप दान करना उत्तम फलदायी माना गया है। प्रात: काल किसी अन्य के जलाशय में स्नान करने से पूर्व स्नान किया जाय तो यह बड़ा ही पुण्यदायी होता है। भविष्य पुराण में इस संदर्भ में एक कथा है कि एक गणिका ने जीवन में कभी कोई दान-पुण्य नहीं किया था। इस दिन किसी अन्य के जल में स्नान करके जल को चल बनाने से पूर्व स्नान किया जाए और सूर्य को दीप दान करें तो महान पुण्य प्राप्त होता है। गणिका ने मुनि के बताए विधि के अनुसार माघी सप्तमी का व्रत किया जिससे शरीर त्याग करने के बाद उसे इन्द्र की अह्रश्वसराओं का प्रधान बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

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