साबरमती आश्रम हमारी ऐतिहासिक धरोहर है। यह आश्रम देश के इतिहास, संस्कृति और सभ्यता का एक अनमोल पड़ाव है। इसकी दीवारों पर एक गरीब देश के दुर्बल व्यति के मानवीय सम्मान, अधिकार और गरिमा के लिए संघर्ष की जो गाथा बिंधी है, उसको आश्रम के रूपांतरण के बाद कैसे सुना और पढ़ा जा सकेगा! किसी भी देश का इतिहास उसके वर्तमान और भविष्य की नींव होता है। क्या हम इतिहास की विरासत के इन अभिलेखों को हमेशा के लिए मिटा देंगे? क्या वह केवल किस्से-कहानियों में सिमट कर रह जाएगी? गांधी को जानने-समझने-गुनने की आकांक्षा के साथ साबरमती आश्रम आने वाले हर आगंतुक को यहां के स्मारक अपने समय की गाथा सुनाते हैं। वे बताते हैं कि एक गरीब देश के मामूली इंसान की गरिमा स्थापित करने के लिए औपनिवेशिक काल में विपरीत परिस्थितियों के बावजूद कैसे बलिदान और त्याग का कठिन सफर तय किया गया।
यह मुकाम हासिल करने के लिए गांधी ने सत्याग्रह का नया प्रयोग किया और मामूली इंसान को उसका अधिकार दिलाने के लिए विश्व के समक्ष एक विकल्प प्रस्तुत किया। यहां एक तुलना उपयोगी हो सकती है। सुकरात की जिंदगी के अंतिम वर्ष बंदीगृह में बीते। सुकरात जिस जेल में रहे, उसकी दीवारें 2420 वर्ष बाद भी सत्य और तार्किक निष्ठा की उनकी प्रतिबद्धता का आगंतुकों के समक्ष बखान करती हैं। 2500 साल प्राचीन यह इलाका एक्रोपोलिस कहलाता है, जिसका संरक्षण सरकार करती है। आप वहां आज भी सुन सकते हैं सुकरात की प्रश्न और प्रति-प्रश्नों पर ओजस्वी वाणी। जिनको ऐतिहासिक धरोहरों की कही गाथाएं सुनाने की बात कल्पित लगती है, वे बामियान में बुद्ध की प्रतिमाओं के ध्वंस को याद करें, इन प्रतिमाओं से आते दया-करुणा और क्षमा के स्वर जब तालिबान के कानों को सुन्न करने लगे, जब बुद्ध की वाणी ने उनकी हिंसा, रतपिपासा और कुत्सित चिंतन को निरुत्तर कर दिया तो घबराए और बेचैन तालिबान ने उन प्रतिमाओं को विखंडित कर दिया।
जर्मनी के यंत्रणा घर भी अपने समय के अत्याचार और मानवीय त्रासदी की घटनाएं हर आगंतुक को सुनाते हैं। वे बताते हैं कि आज से 9 दशक पहले इंसान को कैसे एक निरंकुश शासक के रूर और अमानवीय अत्याचारों का सामना करना पड़ा। सत्ता के नशे में मदहोश एक निर्मम आदमखोर ने बच्चों तक को नहीं बख्शा। इन यंत्रणा घरों को तब की दशा में जस का तस बनाए रखने का जिम्मा वहां की सरकार स्वयं उठा रही है। ये स्थान मनुष्य की आने वाली पीढिय़ों को सत्तासुरों के खिलाफ आज भी स्पष्ट संदेश दे रहे हैं। सवाल उठता है कि हम मानवता की सरल और सहज तथा निष्कपट भावनाओं की उर्वर विचारभूमि के प्रतीकों को यथावत बनाए रखने के लिए संकल्पबद्ध क्यों नहीं हैं? गांधी और इनकी विचारधारा को जानने-समझने के लिए आश्रम आने वाले अतिथि उस तरह के वातावरण के अभाव में कैसा अनुभव करेंगे और उनके मन पर कैसी छवियां अंकित होंगी?
हम को याद रखना चाहिए कि गांधी ने आडंबर विहीन जीवन अपनाकर इंसान की गरिमा स्थापित करने का उद्यम किया था। गांधी ने इसके लिए स्वयं त्याग और बलिदान का रास्ता चुना था। अहमदाबाद से मिल रहे समाचार बताते हैं कि साबरमती आश्रम को भव्य और अत्याधुनिक रूप प्रदान करने की योजना पर काम चल रहा है। वहां अब सैलानियों को मनोरंजन के समृद्ध साधन उपलब्ध कराए जाएंगे। पूरे परिक्षेत्र को नए आर्किटेक्चर के साथ फिर विकसित किया जा रहा है। हाशिए के आदमी के लिए संघर्ष और त्याग के प्रतीक गांधी आश्रम को मनपसंद घुमकड़ स्थल में बदल देंगे।
क्या यह नया परिदृश्य इस देश की विनम्रता, सादगी, अभावों और सहिष्णुता के चरित्र को प्रतिबिंबित करेगा! गांधी की फकीरी, धार्मिक उदारता और मानवीय समानता के प्रयोगों के संदेश आगंतुकों को देने में समर्थ होगा! या यह श्रेयस्कर न होता कि साबरमती आश्रम में गांधी पर शोध करने वालों के लिए विशेष अवसर देने की योजनाएं बनाई जातीं, वहां सत्य और अहिंसा की वर्तमान समाज में स्थिति पर संगोष्ठियों का आयोजन कराया जाता, गांधी दर्शन पर विचार-विमर्श होता और 21वीं सदी के आधुनिक समाज तक गांधी की दृष्टि से विचार करने और उस पर अनुसंधान की कोशिश की जाती?
हर्षदेव
(लेखक शिक्षाविद हैं ये उनके निजी विचार हैं)