उदार न रहने से कांग्रेस की हार

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भाजपा ने आम चुनाव को राष्ट्रपति प्रणाली की शैली का राष्ट्रीय चुनाव बनाना चाहती थी, कांग्रेस व उसके सहयोगियों ने इसे 543 चुनाव बनाने का प्रयास किया। भाजपा कामयाब रही, प्रत्याशी एक ही था- नरेन्द्र मोदी। कांग्रेस ने नरेन्द्र मोदी पर हमला केन्द्रित करने का फैसला किया। कोई विकल्प पेश करने की परवाह नहीं की। चौकीदार चोर है का नारा बेअसर रहा। वोटर को सकारात्मक पेशकश चाहिए। कांग्रेस-राहुल के पास यह पेशकश ‘न्याय’ की थी। डेटा बताता है कि जिन्हें फायदा मिलना था उन्होंने सुना नहीं। जिन्हें इसकी कीमत चुकानी थी, ज्यादातर उन्होंने ही सुना। भाजपा ने गठबंधन में बड़ा दिल दिखाया।

बिहार में नीतीश कुमार को दो रियायत देखिए। तुलना में उत्तर प्रदेश, दिल्ली और हरियाणा में कांग्रेस का हठ देखें। भाजपा ने भविष्य को देखते हुए गठबंधन किया, कांग्रेस अपने गौरवशाली अतीत में फंसी रही। भाजपा ने अपना मीडिया बनाने के लिए राजनीतिक ताकत का शानदार उपयोग किया। पर राहुल के बड़े मीडिया इंटरव्यू भी मतदान के अंतिम चरणों में आए। मोदी के आलोचक कभी उन्हें यह श्रेय नहीं देंगे लेकिन, उनकी सरकार प्रमुख कल्याण कार्यक्रम अमल में लाने में कारगर रही। फिर दो चुनावी किलर एप जैसे थे- अखिल भारतीय सवर्ण वोट बैंक, जो निम्न वर्ग/ अल्पसंख्यक के काम्बिनेशन को बेबस करता है और महंगाई की बहुत नीची दर, जिसने जॉब न होने और व्यक्तिगत आर्थिक परेशानी की बेअसर किया।

पिछले पांच वर्षो में तीन राज्यों में जीत की बजाय 2017 में गुजरात में मोदी को निकट से टक्कर देना कांग्रेस का हाई पॉइंट था। इसमें दो चीजें साफ हुई-एक, ग्रामीण व किसान संकट भाजपा को नुकसान पहुंचा रहे हैं। दो चूंकि मोदी के पास इसका तुरंत कोई हल नहीं है तो वो राष्ट्रवादस, हिन्दुत्व और भ्रष्टाचार विरोध पर कैम्पेन चलाएंगे। जिन जीनियस लोगों ने देशद्रोह कानून हटाने, एफ्स्पा कानून और आधार की अनिवार्यता को लचीला बनाने जैसी बातें कांग्रेस घोषणा-पत्र में जोड़ी वे दूसरे ग्रह पर तो नहीं, दूसरे देश में जरूर रहते हैं। पिछले एक दशक में युवाओं में वंशवादी विशेषधिकारों के प्रति युवाओं में बढ़ता तिरस्कार देखा है।

गुजरात से त्रिपुरा और जम्मू से तिरुवनंतपुरम तक एक ही दृष्टिकोण था। राहुल अच्छे आदमी है पर उन्हें अनुभव नहीं है प्रियंका गांधी राजस्थान, मध्य प्रदेश, कर्नाटक व महाराष्ट्र में बहुत असर डालतीं पर उन्हें पूर्वी उत्तर प्रदेश में सीमति रख मौका बर्बाद कर दिया। मोदी अपनी उपलब्धियों का बखान करते रहे। राहुल उसका प्रतिकार कर सकते थे। मुझे बताए कभी राहुल ने यूपीए-2 की शानदार उपलब्धियां गिनाई हों? परम्परागत बुद्धिमत्ता कहती है कि विजेता की तुलना में पराजित हार से ज्यादा सीखता है। कांग्रेस और भाजपा ने इस तर्क को उलटा दिया।

शेखर गुप्ता
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं

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