पिछले हफ्ते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यूरोपियन कमीशन की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयन से वर्चुअल मीटिंग की। भारत और यूरोपियन यूनियन (ईयू) के बीच यह 15वां सम्मेलन था। दोनों के बीच रणनीतिक साझेदारी की शुरुआत साल 2000 में हुई थी, जब अटल बिहारी बाजपेयी पहले सम्मेलन के लिए पुर्तगाल गए थे। 20 साल गुजर चुके हैं और अब भारत यूरोपीय संघ के साथ मजबूत संबंधों के लिए प्रतिबद्ध है। 27 देशों के साथ ईयू दुनिया के सबसे मजबूत लोकतांत्रिक देशों का समूह है। सबकी अपनी-अपनी चुनी सरकारें, राज्य, सेना और राष्ट्रीय ध्वज के साथ संप्रभुता भी है। ईयू को हम भारत की तरह ही देख सकते हैं, जहां की एक सर्वमान्य मुद्रा है और सबका साझा बाजार है। वहां चुनी हुई यूरोपियन संसद है, इमिग्रेशन के लिए भी एक ही जगह है। आज आप पुर्तगाल से फिनलैंड तक एक तरह की मुद्रा लेकर दस देश और नौ सीमाओं को बिना रोकटोक पार कर सकते हैं। जैसा कि भारत में है, यूरोपीय संघ में भी केंद्र और 27 राज्यों के बीच शक्तियों का एक विभाजन है। आज का यूरोप उस यूरोप से बिल्कुल अलग है, जिसके विरुद्ध महात्मा गांधी और दूसरे स्वतंत्रता सेनानी खड़े हुए थे। 1936 में लाहौर में नेहरू ने घोषणा की थी कि ‘यूरोप गतिविधि और रुचि का केंद्र नहीं रहा।’ वह ऐसा समय था जब भारत को तीन अलग-अलग यूरोपियन शक्तियां अपना उपनिवेश बना चुकी थीं। वह ऐसा समय भी था जब यूरोप के केंद्र में हो रहा संघर्ष भारत समेत पूरी दुनिया को घातक युद्ध में खींच रहा था।
वह पुराना यूरोप था जिससे भारत बेहतर दुनिया बनाने के लिए अलग होना चाहता था। आज ईयू ने भारत की वह सीख समझ ली है कि कैसे विभिन्न हिस्सों में समान सहयोग से शांति और एकता बनाई जाती है। ब्रिटेन के यूरोप से निकलने के बाद भी यूरोप आर्थिक महाशक्ति बना रहेगा। हाल ही में फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों और जर्मनी की चांसलर मर्केल ने मिलकर अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए दुनिया के सबसे बड़े आर्थिक पैकेज की घोषणा की है। आज फ्रांस व जर्मनी मिलकर नए ईयू को आगे बढ़ा रहे हैं। ईयू क्यों भारत के लिए तेज़ी से उभरता साझेदार बन रहा है, इसके पांच कारण हैं। ईयू के साथ सहयोग का पहला कारण तो भू-रणनीतिक है, ताकि चीन का असर कम हो सके। आज भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों से संबंध सुधार रहा है। यह कदम चीन को अलग-थलग करने के लिए नहीं हैं, बल्कि इसलिए है ताकि सारे देश साथ आकर चीन पर दबाव बना सकें। यूरोप में 27 अलग-अलग देशों की सरकारों से संबंध बनाने से बेहतर है कि अकेले ईयू से ही समन्वय बनाया जाए। दूसरा कारण आर्थिक है। आज भारत का करीब 10% व्यापार यूरोप से होता है। लेकिन भारत और ईयू 2007 से लंबित पड़े मुक्त व्यापार समझौते पर दस्तखत नहीं कर पाए हैं। हालांकि पिछले हफ्ते हुई बातचीत में व्यापार और निवेश पर नई मंत्री स्तर वार्ता की घोषणा हुई है। महामारी के कारण पैदा हुए आर्थिक संकट के बीच भारत यूरोपियन कंपनियों का फायदा उठा सकता है, जो भारत में अपना विस्तार करना चाहती हैं।
तकनीक हस्तांतरण, नौकरियां बढ़ने से भारत को फायदा होगा। तीसरा कारण भारत में नवाचार व तकनीक को आगे बढ़ाने के लिए यूरोपियन ज्ञान-विज्ञान की महत्ता है। टिकाऊ विकास के लिए स्वच्छ गंगा परियोजना से लेकर स्मार्ट सिटी तक भारत ईयू के साथ काम कर सकता है। अमेरिकन-ब्रिटिश विश्वविद्यालयों के दरवाजे विदेशी छात्रों के लिए बंद होने से रिकॉर्ड स्तर पर भारतीय छात्र ईयू, खासकर फ्रांस, जर्मनी में पढ़ाई का विकल्प चुन रहे हैं। चौथा कारण सुरक्षा और पश्चिम एशिया के साझे इलाकों से है। आतंकवाद रोकने के लिए यूरोपोल और सीबीआई के बीच समझौते पर बातचीत जारी है। हिंद महासागर में सुरक्षा मजबूत करने के लिए सहयोग जारी है। ईयू के पास भले ही टैंक और लड़ाकू विमान नहीं हों, लेकिन इंटरनेट अपराध रोकने के लिए सबसे अच्छा साइबर सुरक्षा संगठन है। ईयू और भारत के बीच मजबूत संबंधों का पांचवां और सबसे महत्वपूर्ण कारण दोनों की साझा राजनीतिक पहचान से जुड़ा है। पिछले हफ्ते प्रधानमंत्री मोदी ने इस बात को रेखांकित किया कि भारत और ईयू सार्वभौमिक मूल्यों जैसे लोकतंत्र, अनेकता, पारदर्शिता और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं को बराबरी से सम्मान देने वालों में से हैं, इसलिए दोनों ‘नैचुरल पार्टनर्स’ हैं। दोनों के बीच साझा मूल्य सिर्फ हमारी नैतिक प्राथमिकताओं के कारण नहीं हैं। इसके व्यावहारिक पहलू भी हैं। उदाहरण के लिए भारत और ईयू फेक न्यूज और इससे होने वाली हिंसा रोकना चाहते हैं। इसका अर्थ लोगों की निजता और अधिकारों का सम्मान करना भी है। लोगों की आजादी और निजता सुरक्षित रखने के लिए डाटा कानूनों पर भी दोनों बात कर रहे हैं। लोकतांत्रिक देश भारत और ईयू वसुधैव कुटुंबकम और अनेकता में एकता जैसे विचारों के साथ आज एक साथ खड़े हैं।
डा. कॉन्सटैनटिनो जेवियर
(लेखक विदेश नीति विशेषज्ञ हैं ये उनके निजी विचार हैं)