इस्लामी संगठन : सुषमा स्वराज की दुविधा

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इस्लामी सहयोग संगठन (ओआईसी) की पचासवीं वर्षगांठ पर भारत को उसने आमंत्रित किया है, यह अपने आप में बड़ी खबर है। दुनिया के 56 इस्लामी राष्ट्रों का यह सबसे बड़ा संगठन है। इस संगठन ने भारत-जैसे राष्ट्र का सदा बहिष्कार किया है। भारत में दो-तीन मुस्लिम देशों को छोड़कर दुनिया के सबसे ज्यादा मुसलमान रहते हैं लेकिन इस संगठन ने भारत को सदस्यता देना तो दूर, पर्यवेक्षक का दर्जा भी आज तक नहीं दिया है। जबकि पर्यवेक्षक की तौर पर रुस, थाईलैंड और कई छोटे-मोटे अफ्रीकी देशों को हमेशा बुलाया जाता है।

1969 में भारत के कृषि मंत्री फखरुद्दीन अली अहमद को इंदिराजी ने इस संगठन के वार्षिक अधिवेशन में भाग लेने के लिए मोरक्को भेजा था लेकिन पाकिस्तान के फौजी तानाशाह याह्या खान ने ऐसा चक्कर चलाया कि निमंत्रण पाने के बावजूद अहमद को अधिवेशन में भाग नहीं लेने दिया गया। उसके बाद पिछले 50 साल में जब भी इस संगठन का अधिवेशन हुआ, उसमें कश्मीर को लेकर भारत की भर्त्सना हुई। अब माना जा रहा है कि अबू धाबी में एक-दो मार्च को होने वाले इस अधिवेशन में भारत को जो निमंत्रण मिला है, वह सउदी अरब और संयुक्त अरब अमारात की पहल पर मिला है। वैसे पिछले साल बांग्लादेश की शेख हसीना सरकार ने आग्रह किया था कि भारत को कम से कम पर्यवेक्षका दर्जा तो दिया जाए। यह दर्जा उसे अभी तक नहीं दिया गया है। तो फिर हमारी विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को विशिष्ट अतिथि की तरह क्यों बुलाया गया है ? उन्हें मुख्य भाषण देने के लिए क्यों कहा गया ?

भारत सरकार इस निमंत्रण पर अपनी पीठ थपाथपा रही है। इसे अपनी कूटनीति की सफलता बता रही है लेकिन इसके पीछे असलियत क्या हो सकती है? मेरा अंदाज यह है कि दुनिया के इस्लामी देश पुलवामा-हत्याकांड के बाद भारत और पाक में युद्ध की संभावना को रोकना चाहते हैं। वे पाकिस्तान की मदद करना चाहते हैं। इसीलिए पाकिस्तान ने भी इस पहल का विरोध नहीं किया है। हो सकता है कि यह पाकिस्तान के सुझाव पर ही किया गया हो। पाकिस्तान और उसके सभी मित्र देश यह मानते हैं कि पुलवामा-कांड में पाकिस्तान का कोई हाथ नहीं है। कई पाकिस्तानी विश्लेषकों ने यह प्रचार भी शुरु कर दिया है कि पुलवामा कांड स्वयं मोदी ने करवाया है, क्योंकि इसी बहाने से वह अपनी डूबती नय्या को 2019 में बचा सकता है।

सुषमाजी को इस तरह की मूर्खतापूर्ण और निराधार अफवाहों का वहां जोरदार खंडन करना ही होगा लेकिन असली प्रश्न यह है कि क्या अपने भाषण में वे पुलवामा-कांड के लिए पाकिस्तान को नाम लेकर जिम्मेदार ठहराएंगी ? यदि हां तो वहां हड़कंप मच जाएगा। उन्हें अपना भाषण बीच में ही बंद करना होगा। और यदि वे पाकिस्तान का नाम नहीं लेंगी तो वे अपनी सरकार की दाल पतली करवा देंगी। मोदी की मजाक उड़वा देंगी। वहां जाकर पुलवामा पर वैसा ही जबानी जमा-खर्च हो जाएगा, जैसा सउदी शाहजादे की भारत-यात्रा के दौरान हुआ और जैसा सुरक्षा-परिषद की विज्ञप्ति में हुआ।

   डॉ. वेदप्रताप वैदिक
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है।)

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