आयुष्मान भारत स्कीम में भी घपला

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देश में आज सरकारी अस्पतालों में जहां चिकित्सा सुविधाओं एवं दक्ष डॉक्टरों का अभाव होता है, वहीं निजी अस्पतालों में आज के भगवान रूपी डॉक्टर एवं अस्पताल मालिक मात्र अपने पेशे के दौरान वसूली व लूटपाट ही जानते हैं। उनके लिये मरीजों की ठीक तरीके से देखभाल कर इलाज करना प्राथमिकता नहीं होती, उन पर धन वसूलने का नशा इस कदर हावी होता है कि वह उन्हें सच्चा सेवक के स्थान पर शैतान बना देता है। केन्द्र सरकार की आयुष्मान भारत योजना आम व्यक्ति को बेहतर तरीके से असाध्य बीमारियों की चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिये प्रारंभ की गयी थी, लेकिन इस बहुउद्देश्यीय योजना को भी पलीता लगाने में कोई असर नहीं छोड़ी गयी है। लेकिन इस योजना में गड़बड़ी एवं धोखाधड़ी करने वालों के खिलाफ जिस सख्ती से कार्रवाई की जा रही है, वह अनूठी एवं कारगर है, सरकार की सक्रियता एवं जागरूकता की परिचायक है। नेशनल हेल्थ अथॉरिटी (एनएचए) की एंटी फ्रॉड यूनिट द्वारा उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और झारखंड सहित क ई राज्यों में आयुष्मान भारत स्कीम के तरह चल री धोखाधड़ी, गड़बड़ी एवं भ्रष्टाचार के हैरत अंगेज मामले पकड़े गए हैं।

इस योजना में हो रही गड़बडिय़ों को दूर करने के लिए कई कदम उठाये जा रहे हैं। धोखाधड़ी कर पैसा बनाने वाले अस्पतालों के नाम ‘नेम एंड शेम’ की श्रेणी में डालकर सार्वजनिक करने का निर्णय लिया गया है। ऐसे अस्पतालों के नाम वेबसाइट पर डाले जाएंगे। ये अस्पताल सिर्फ आयुष्मान भारत स्कीम से ही नहीं हटाए जाएंगे बल्कि बाकी सरकारी योजनाओं और प्राइवेट इंश्योरेंस के पैनलों से भी इन्हें बाहर किया जाएगा। इस योजना में धोखाधड़ी के 1200 मामले अब तक पकड़ में आए हैं और 376 अस्पताल जांच के दायरे में हैं। 97 अस्पतालों को अब तक पैनल से हटा दिया गया है और 6 अस्पतालों के खिलाफ एफ आईआर तक दर्ज हुई हैं। अस्पतालों पर कार्रवाई करना बेहद जरूरी था क्योंकि पिछले कुछ समय से अनेक अस्पतालों ने इस योजना का मखौल बना दिया था।

सरकार की जागरूक ता एवं सख्त कार्रवाई से न के वल आयुष्मान भारत योजना से आम व्यक्ति को चिकित्सा का वास्तविक लाभ मिल सकेगा, बल्कि चिकित्सा क्षेत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार एवं गड़बडियों को दूर किया जा सकेगा, जो शर्मनाक ही नहीं बल्कि डॉक्टरी पेशे के लिए बहुत ही घृणित है। इन अमानवीयता एवं घृणा की बढ़ती स्थितियों पर नियंत्रण एवं आयुष्मान भारत योजना को प्रभावी ढंग से आम जनता के बीच पहुंचाने की अपेक्षा को महसूस करते हुए, इस दिशा में एक सार्थक पहल हुई है और दोषी अस्पतालों पर कठोर कार्रवाई की जा रही है। आयुष्मान योजना की सबसे बड़ी चुनौती यही है कि वास्तविक लाभार्थियों तक इसका लाभ पहुंचे, लेकिन इसकी सबसे बड़ी बाधा भी यही है कि योजना का ढांचा बहुत जटिल एवं पेचीदा है। इससे जुड़ी जानकारियां साधारण आदमी तक पहुंच नहीं पातीं। इसका फायदा उठाते हुए अस्पताल एवं डॉक्टर बड़े पैमाने पर धोखाधड़ी करते हैं। सरकार को चाहिए कि वह आयुष्मान योजना की प्रक्रिया को सहज एवं सरल बनाये। इसकी जटिल प्रक्रिया होने के कारण यह वास्तविक लाभार्थियों से दूर हो जाती है।

अब जैसे इसका लाभ प्राप्त करने के लिए जरूरी है कि लाभार्थी का नाम आयुष्मान भारत योजना की लिस्ट में हो। इस लिस्ट में अपना नाम देखने के दो तरीके हैं। एक तो यह कि इसकी वेबसाइट पर जाकर अपना नाम देखें या फिर एक खास हेल्पलाइन नंबर पर पता करें। यह काम शहरी पढ़ा-लिखा वर्ग तो कर सकता है पर अनपढ़, ग्रामीण और गरीब वर्ग के लिए यह काम आसान नहीं है। जिनके पास इंटरनेट या फोन नहीं है, उनके लिए यह पता करना ही कठिन है कि लिस्ट में उनका नाम है भी है या नहीं। फिर इसमें जो सूची बनी है, उसमें भी कई लोगों के नाम छूटे हुए हैं। उसमें नाम जुड़वाना भी एक गरीब आदमी के लिए आसान नहीं है। उसे यह भी बताने वाला कोई नहीं है कि कहां किस अधिकारी से मिले। अगर कोई संबंधित अधिकारी तक चला भी जाए तो इस बात की गारंटी नहीं है कि उसका काम हो ही जाएगा। इन विसंगतियों एवं जटिलताओं को दूर किया जाना जरूरी है।

यह योजना मुख्यत : समाज के एक दम कमजोर वर्ग के लिए बनाई गई है लेकिन इस बात का ध्यान ही नहीं रखा गया है कि दबा-कुचला, अनपढ़ एवं ग्रामीण वर्ग इसका इस्तेमाल कैसे करे। वैसे इस तरह की तमाम सरकारी योजनाओं की यही विसंगति होती है। इन्हें ग्रामीण एवं अशिक्षित लोगों के दृष्टिकोण से बनाना एवं उनकी प्रक्रिया का सरलीकरण जरूरी है, तभी वे जमीन पर ढंग से उतर पाएंगी अन्यथा उसका फायदा समर्थ तबका उठा लेगा, जैसा कि आयुष्मान में भी हो रहा है। जबकि ‘आयुष्मान भारत’ दुनिया की सबसे बड़ी आम आदमी से जुड़ी चिकित्सा योजना है। 50 करोड़ लोगों को पांच लाख तक का स्वास्थ्य बीमा देने वाली यह दुनिया की अपनी तरह की सबसे बड़ी योजना है।

ललित गर्ग
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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