आयकर में कटौती से छंटेगा संकट

0
256

आर्थिक सुस्ती को दूर करने के लिए सरकार ने भले ही देर से ही सही लेकिन कई बड़े कदम उठाए हैं। इनमें कारपोरेट टैक्स में कटौती सबसे बड़ा एवं कारगर उपाय साबित हो सकता है। इस दिशा में सरकार के साथ कदमताल करते हुए आरबीआई ने इस साल अपनी नीतिगत दरों में लगातार पांचवीं बार कटौती करके बड़ी राहत दी है। केंद्रीय बैंक की इस पहल से निश्चित तौर पर वित्तीय तरलता बढ़ेगी। जाहिर है आने वाले दिनों में आर्थिक वृद्धि दर में तेजी दिखनी चाहिए। लेकिन सरकार को इस बात को अच्छी तरह से स्वीकार कर लेना चाहिए आर्थिक सुस्ती का संकट अभी छंटा नहीं है। आरबीआई ने वृद्धि दर के अनुमान में कटौती करके इस आशंका पर अपनी मुहर लगा दी है। ऐसे में अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए सरकार को अभी कुछ और बड़े कदम उठाने होंगे।

यदि आंकड़ों पर गौर करें तो अर्थव्यव्यस्था की मजबूती में मध्यम वर्ग इंजन का काम करता है। पिछले कुछ वर्षो में इनकी आय में उम्मीद की अनुरूप वृद्धि नहीं हुई है। फिलहाल इस इंजन को ईधन की जरूरत है। देश की कुल 135 करोड़ की आबादी में से महज 2.7 क रोड़ लोग वेतनभोगी हैं। इनमें से 1.7 करोड़ निजी क्षेत्र में जबकि एक करोड़ सरकारी कर्मचारी हैं। देश में 90 फीसद श्रम बल असंगठित क्षेत्र में कार्यरत है जिन्हें साल में कब और कितने दिन काम मिल पाएगा इस बारे में कुछ भी सुनिश्चित नहीं है। संगठित क्षेत्र के करीब 2.4 करोड़ लोग ही मध्यम वर्ग के दायरे में आते हैं। देश की आर्थिक वृद्धि दर में इसी वर्ग का सबसे ज्यादा योगदान होता है। हकीकत यह है कि आय के हिसाब से जो लोग उच्च वर्ग में आते हैं उन पर महंगे-सस्ते का कोई असर नहीं पड़ता। उनकी जीवनशैली लगभग स्थिर रहती है। इसी तरह गरीबी रेखा से नीचे वाला वर्ग दो जून की रोटी और जरूरत भर कपड़ों का जुगाड़ करने में ही समय गुजारता रहता है। ऐसे में आर्थिक वृद्धि की रफ्तार काफी हद तक मध्यम वर्ग पर ही निर्भर करती है। इस वर्ग की आय बढ़ती है तो यह शिक्षा व स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सेवाओं पर खूब खर्च करता है।

आय स्थिर होने और महंगाई बढऩे पर यह वर्ग अपनी मुट्ठी भींच लेता है। मध्यम वर्ग की शक्ति का ही कमाल है कि जिन देशों में मध्यम वर्ग का दायरा बढ़ा है वह विकसित देशों की श्रेणी में आते गए। अमेरिका, कनाडा और चीन में मध्यम वर्ग देश की ग्रोथ का मुख्य चालक साबित हो रहा है। भारत में 10 फीसद लोगों के पास जीडीपी की 40 फीसद हिस्सेदारी है। बाकी 60 फीसद में 90 फीसद आबादी का हिस्सा है। कुल मिलाकर देश की अर्थव्यवस्था में मुख्य उपभोक्ता 10 फीसद लोग ही हैं जो आर्थिक विकास दर के लिए उत्प्रेरक का काम क रते हैं। जाहिर है जीडीपी में वृद्धि का लाभ भी इन्हीं लोगों के हिस्से में आता है। कहने का आश्य यह है कि देश में जो लोग गरीब हैं वह और ज्यादा गरीब होते जा रहे हैं जबकि अमीरों के पास धन बढ़ता ही जा रहा है। इसी वजह से अमीर और गरीब के बीच की खाई कम नहीं हो पा रही है।

समय की दरकार है कि आर्थिक विकास समामेशी होना चाहिए जिसका लाभ देश के हर व्यक्ति को मिले। मौजूदा व्यवस्था में सिर्फ एक फीसद लोग ही इसका फायदा उठा रहे हैं। आर्थिक विकास के ऐसे माडल पर सवाल उठना स्वाभाविक है। पिछले दिनों सरकार ने आर्थिक सुधारों के रूप में जो कदम उठाए हैं उनमें उद्योग जगत और विदेशी निवेशकों को काफी हद तक राहत दी गई है। अब उसे मध्यम वर्ग को सहारा देने के बारे में सोचना चाहिए। यदि सरकार आयकर की दरों में कटौती करती है तो इससे मध्यम वर्ग की आय में इजाफा हो सकता है जिसका उपभोक्ता मांग में तेजी आना तय है। फिलहाल इस दिशा में सकारात्मक संकेत आने शुरू हो गए हैं। माना जा रहा है कि वित्त मंत्रालय व्यक्तिगत आयकर दरों को तर्क संगत बनाने की योजना पर काम कर रहा है।

प्रत्यक्ष कर सुधार समिति द्वारा अपनी रपट सौंपने के बाद इस तरह संभावना और मजबूत हो गई है। हालांकि समिति की सिफारिशों को अभी तक सार्वजनिक नहीं किया गया है लेकिन माना जा रहा है कि इसमें मध्यम वर्ग को बड़ी राहत देने के सुझाव दिए गए हैं। इन सिफारिशों को अगले वित्त वर्ष से लागू किया जा सकता है लेकिन इस बात की भी संभावना है कि आर्थिक सुस्ती को दूर करने के लिए सरकार इन सिफारिशों को इसी त्योहारी सीजन में लागू कर दें जो अर्थव्यवस्था को गति देने की दिशा में एक और मास्टर स्ट्रोक साबित हो सकता है। हालांकि वित्त मंत्रालय की ओर से इस बारे में अभी तक कोई आधिकारिक घोषणा नहीं की गई है लेकिन इतना तय है कि यदि ऐसा होता है तो यह मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का यह बड़ा कदम साबित होगा।

वैसे इस बारे में कोई भी बड़ा निर्णय लेने से पहले सरकार अपने राजकोषीय घाटे का जरूर आकवन करना चाहेगी। कारपोरेट टैक्स में बड़ी कटौती और जीएसटी में कुछ राहत के बाद सरकार का राजस्व में कमी आ सकती है जिससे चिंताएं बढऩा स्वाभाविक हैं। लेकिन यह भी सचाई है कि उद्योगों को प्रोत्साहन मिलने के बाद खासकर मध्यम वर्ग को आयकर के रूप में राहत मिलने की उम्मीदें बढ़ीं हैं। जाहिर इससे सरकार पर निश्चित तौर पर दबाव बढ़ेगा। यदि व्यक्ति गत आयकर की दरों में कटौती की जाती है तो इससे उपभोग की मांग में जल्द सुधार आएगा क्योंकि मध्यम वर्ग की यह प्रवृत्ति रही है कि जब भी उसकी आमदनी में इजाफा होता है तो वह खर्च करने में कोई कंजूसी नहीं बरतता। यानी वह दिल खोलकर खर्च करता है। इस वर्ग की मांग बढऩे का कुछ ही दिनों में समूची अर्थव्यवस्था में असर देखने को मिलता है।

दूसरी ओर इसका दूसरे अन्य कारकों के साथ भी गहरा संबंध है। यदि मांग बढ़ती है तो इसे पूरा करने के लिए अधिक उत्पादन होगा। जाहिर है इससे रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे। इस तरह यदि सरकार व्यक्तिगत आयकर की दरों में कटौती करती है तो उसे एक साथ कई मोर्चे पर राहत मिल सकती है। बहरहाल, मोदी सरकार अपने पहले कार्यकाल से ही बेरोजगारी के मोर्चे पर विपक्ष और आम जनता की आलोचनाएं झेलती आई है। आयकर की दरें घटाने से उसे आम जनमानस के बीच पकड़ मजबूत बनाने में मदद मिल सकती है। हालांकि इससे राजकोषीय घाटे को लेकर कुछ जोखिम हो सकता है लेकिन यह कदम आर्थिक सुस्ती को दूर करने में उत्प्रेरक का क म कर सक ता है। यदि समय रहते इस दिशा में कदम नहीं उठाया गया तो सरकार पर पूंजीपतियों की समर्थक होने के जो आरोप लग रहे हैं वह और गहरे हो जाएंगे। इसका खामियाजा उसे राज्य विधानसभा चुनावों में भुगतना पड़ सकता है।

राजीव सिंह
लेखक कार्वी स्टाक ब्रोकिंग के सीईओ हैं,ये उनके निजी विचार हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here