आदमी अपना स्वभाव नहीं छोड़ता

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वैसे तो कहावत है कि बुरे इंसान के साथ भी अच्छा करो तो धीरे- धीरे उसका स्वभाव बदलता जाता है। लेकिन, कुछ मामलों में ये कहावत गलत सिद्ध भी होती है। दुष्ट इंसान के लिए आप कितना भी अच्छा आचरण कर लें या उसकी कितनी ही मदद कर लें, आप उसका स्वभाव नहीं बदल सकते। ऐसा इंसान तभी तक अच्छा रह सकता है, जब तक वो किसी अच्छे इंसान की संगत में हो, बुरे लोगों के संपर्क में आकर वो फिर से अपने पुराने स्वभाव में लौट जाता है। इस संदर्भ में महाभारत की एक कहानी बहुत ही सटिक है।

जुए में हारने के बाद वनवास के दौरान पांडव कम्यक वन में रह रहे थे। जब यह बात दुर्योधन को पता चली तो शिकार करने के बहाने उसने भी वहीं अपना शिविर बनवा लिया ताकि अपने ठाट- बाट दिखाकर पांडवों को जला सके। यहां किसी बात पर दुर्योधन का गंधर्वों से विवाद हो गया। गंधर्वों ने दुर्योधन को बंदी बना लिया। जब ये बात युधिष्ठिर को पता चली तो उसने अपने भाई दुर्योधन को बचाने के लिए और गंधर्वों की कैद से छुड़ाने के लिए अर्जुन और भीम से कहा। पांचों भाई दुर्योधन के कारण ही अपना राजपाठ हार कर वन में रह रहे थे, लेकिन उन्होंने अपने भाई को बंदी बनता देख उसकी मदद के लिए प्रण क या।

पांडवों ने गंधर्वों को हराकर दुर्योधन को छुड़ा लिया। इस घटना से दुर्योधन स्वयं को बहुत अपमानित महसूस करने लगा। उसके मन में आत्महत्या का विचार आता है और वह अन्न- जल त्याग कर उपवास के नियमों का पालन करने लगता है। यह बात जब पातालवासी दैत्यों को पता चलती है तो वे दुर्योधन को बताते हैं कि तुम्हारी सहायता के लिए अनेक दानव पृथ्वी पर आ चुके हैं। दैत्यों की बात मान कर दुर्योधन आत्महत्या करने का विचार छोड़ देता है और प्रतिज्ञा करता है कि अज्ञातवास समाप्त होते ही वह पांडवों का विनाश कर देगा।

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