लगभग दस साल पहले आईटी कंपनी आईबीएम के सुपरकंप्यूटर वाटसन को आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के क्षेत्र में बहुत आधुनिक और शतिशाली माना जा रहा था। कंपनी का दावा था कि यह समाज को प्रभावित करने वाले तकनीकी क्रांति है। आईबीएम ने विज्ञापन में घोषित कर दिया कि वाटसन हेल्थ केयर, फाइनेंस, कानून और शिक्षा के क्षेत्र में बहुत प्रभावशाली साबित होगा। कहा गया कैंसर के इलाज में वाटसन नया रास्ता बनाएगा। लेकिन, वाटसन के निर्माण में प्रमुख भूमिका निभाने वाले साइंटिस्ट डेविड फेरुसी की चेतावनी थी कि हमें वायदे करने में सावधानी बरतनी चाहिए।
आईबीएम ने अगले कुछ वर्षों में वाटसन को अस्पतालों, खेतों, फैटरियों और दतरों में डिजिटल असिस्टेंट के रूप में आगे बढ़ाने के अभियान में करोड़ों रुपए खर्च कर दिए। वाटसन से आईबीएम को वैसी ही सफलता की उम्मीद थी जैसी उसके पुराने मुख्य कंप्यूटर ने हासिल की थी। लेकिन, ऐसा कुछ नहीं हुआ। कंपनी लाउड कंप्यूटिंग और एआई में अमेजन, माइक्रोसॉट और गूगल से पीछे रह गई। इन तीनों कंपनियों के शेयर कई गुना बढ़ गए पर आईबीएम के शेयर 2011 में वाटसन की सफलता की घोषणा के बाद दस प्रतिशत गिर गए। कंपनी ने वाटसन के संबंध में बड़े दावे किए जिन्हें पूरा करना मुश्किल था।
वाटसन बिजनेस के पूर्व जनरल मैनेजर मनोज ससेना कहते हैं कि समाज के लिए अच्छा काम करने का मूल उद्देश्य प्रशंसनीय तो था पर व्यावहारिक नहीं था। वाटसन के सामने चुनौतियां उम्मीद से अधिक कठिन साबित हुई।आईबीएम ने बिजनेस बढ़ाने के लिए पिछले साल कंप्यूटर साइंटिस्ट अरविंद कृष्णा को जिम्मेदारी सौंपी है। उन्होंने अभी हाल में कंपनी के लाउड और एआई बिजनेस में बदलाव किए हैं। कंपनी का कहना है कि उसके एआई लक्ष्य अब कम महत्वाकांक्षी हैं। इससे 110 साल पुरानी कंपनी कंप्यूटर के बाजार में अपना पुराना गौरव हासिल करने की आशा कर रही है।
स्टीव लोर
(लेखक अमेरिकी पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)