अमेरिका-ईरान तनाव

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कुद्स फोर्स के नए जनरल इस्लाम गनी ने कहा है कि अमेरिका से सुलेमानी की हत्या का बदला लेकर रहेंगे। ईरानी राष्ट्रपति हसन रूहानी ने भी अमेरिका से जनरल सुलेमानी की हत्या की बात कही थी। रिश्ते इस कदर बिगड़ चुके हैं कि ईरान की संसद ने अमेरिकी सेना को आतंकी संगठन घोषित करने के प्रस्ताव को मंजूरी दी है। इससे पहले केन्या स्थित अमेरिकी दूतावास पर हमला हो चुका है। हालांकि अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने साफ कर दिया है कि ईरान की तरफ से ऐसा हुआ तो उसे भयंकर नतीजों का सामना करना पड़ेगा। ईरान के ऐसे 51 महत्वपूर्ण स्थानों की पहचान पहले से कर ली गई है। अमेरिका की तरफ से उठाये गये अप्रत्याशित कदम से निश्चित तौर पर खाड़ी क्षेत्र के वे देश जो उसके मित्र हैं बड़े धर्मसंकट में फंस गये हैं। संयुक्त अरब अमीरात ने कहा है कि अमेरिका की तरफ से इस तरह का कदम उठाया जाएगा कि उसे पहले से कोई जानकारी नहीं थी। पर ट्रंप के इस अप्रत्याशित कदम की चर्चा जरूर है।

ट्रंप से पहले के राष्ट्रपति सीनियर जार्ज बुश और ओबामा भी सुलेमानी को निपटाना चाहते थे लेकिन घटना के बाद की स्थितियों-परिस्थितियों का आंकलन कर पीछे हट गए थे। पर ट्रंप ने ऐसा कर दिया इसको लेकर अमेरिका में राष्ट्रवाद उफान पर है। अगले राष्ट्रपति चुनाव में संभावना है ट्रंप का यह साहसिक कदम बड़ी भूमिका निभाएगा। हालांकि चुनाव में अप्रत्याशित कदम के प्रभाव से ट्रंप विरोधी भी इनकार नहीं करते। पर वजह जो भी हो लेकिन इससे पहले ही मंदी से जूझ रही दुनिया के लिए तीसरे युद्ध के बनते हालात किसी के लिए लाभप्रद नहीं है। खाड़ी में युद्ध के बनते हालात की आशंका से शेयर बाजार लडख़ड़ा गया। तकरीबन 30 लाख करोड़ रू. शेयरधारकों के डूब गये। सोना महंगा हो रहा है। डीजल-पेट्रोल की कीमतों में भी उछाल की शुरूआत हो चुकी है। भारत के सन्दर्भ में हाल में उत्पन्न हुई सामरिक स्थिति से आर्थिक मोर्चे पर पहले से मौजूद चुनौतियां और गंभीर हो सकती हैं। महंगाई बढऩे से आम लोगों की मुश्किलों का अंदाजा लगाया जा सकता है।

एक तो पहले से ही आम लोगों की क्रय शक्ति कम हो रही है। बाजार की चाल को देखकर इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। इसके अलावा इस नये घटनाक्रम से अमेरिका की पाकिस्तान से बढ़ती नजदीकी भी किसी चुनौती से कम नहीं है। अमेरिका की तरफ से कह दिया गया है कि उसके सैनिक, पाकिस्तान के साथ सैन्य अभ्यास फिर शुरू करेंगे। वैसे पहले से चली आ रही दूसरी आर्थिक सहायता अभी बंद है। लेकिन अमेरिका अपने हित के लिए किसी भी हद तक जा सकता है, यह जग जाहिर है। आशंका है पाकिस्तान इस नई पहल में अपनी भूमिका की अमेरिका से भरपूर कीमत वसूलने के लिए कश्मीर के मसले पर समर्थन मांग सकता है। आतंकवाद को लेकर अभी जो उसकी अन्तर्राष्ट्रीय मोर्चे पर खिंचाई हो रही है, उसमें कमी आ सकती है। हालांकि पाकिस्तान ने यह साफकर दिया है कि वह अपनी जमीन को युद्ध के लिए इस्तेमाल नहीं करने देगा। पर यह तो वक्त बताएगा क्योंकि पाकिस्तान का इतिहास ही ऐसा है, कहता कुछ है करता कुछ है। खाड़ी संकट के बीच भारत ने ईरान को विश्वास में लिया है। अमेरिकी कार्रवाई पर तटस्थता बरती है। आगे भी बहुत फूंक-फूंक कर कदम उठाने की जरूरत है।

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