अभी और एहतियास जरूरी

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कोरोना से लड़ाई लम्बी है, सबके वजूद का सवाल है। रास्ता फिलहाल चेहरे पर मास्क, सेनिटाइजर और शारीरिक दूरी के उचित सतत सचेत रहना ही है। नई परिस्थितियों में पूरी मानव जाति के सामने अनुकूलता का मार्ग तलाशने की बड़ी चुनौती है। सरकारी कोशिशें भी तभी परवान चढ़ती हैं जब सबका सहयोग हो। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी शनिवार को अपने मन की बात में उम्मीद जताई है कि एक-दो महीने के भीतर बाहर की सांस लेने जैसी स्थिति आ सकती है लेकिन इसके लिए आखिरी लहे तक शुरुआती दौर की तरह सावधानी बरतने की जरूरत है। यह अनुकूल यथार्थ है कि जाते समय रोग के भयावह होने की संभावना तब प्रबल हो जाती है जब असावधानी होती है। यह उक्ति सही है कि सावधानी हटी, दुर्घटना घटी। कोरोना के मामले में भी यह देखा गया है कि सामान्य होती स्थितियों के बीच जरा सी असावधानी के चलते उसका पहले जैसा उभार देखा जा रहा है, जो निश्चित तौर पर पहले से भी ज्यादा खतरनाक हो सकता है। चीन के वुहान में इसे खासतौर पर देखा गया जहां कोरोना से मुक्ति के बाद चमगादड़ों और कुत्तों का मीट बाजार खोल दिया गया था।

स्थिति यह हुई कि फिर मरीजों के मिलने का सिलसिला शुरू हो गया और आखिकार शी जिपनिंग सरकार को मीट की दुकानों को बंद करने का फैसला करना पड़ा। वैसे भी चीन में यह वायरस वुहान में ही काबू कर लिया गया, इसलिए शेष चीन की स्थिति ठीक है लेकिन भारत की स्थिति ठीक इसके विपरीत है। लगभग पूरा देश इसकी गिरफ्त में है। जरा सी लापरवाही ब्राजील के हालात पैदा कर सकती है। कोरोना को वहां के शीर्ष नेतृत्व ने हल्के में लिया, नतीजतन औ़द्योगिक गतिविधियां जारी रहीं। परिणाम वर्तमान में यह है कि इबाइतगाह कब्रिस्तानों में बदल गये हैं। अस्पतालों में शवों के रखने की गुंजाइश नहीं है। कब्रिस्तानों में स्थानाभाव के चलते सामूहिक रूप से लाशें दफन हो रही हैं। इसलिए कोरोना से लड़ाई के इस दूसरे चरण के आखिरी हफ्ते में उद्योग जगत की तरफ से जो लॉकडाउन खोलने को लेकर दबाव की रणनीति अपनाई जा रही है, वह किसी के हित में नहीं है। सवाल है कि औद्योगिक गतिविधियां पूरी तरह से चालू होने पर यदि कयुनिटी ट्रांसमिसन की स्थिति पैदा हो गयी, तब क्या होगा?

आखिरकार फिर से गतिविधियां पूरी तरह ठप करनी पड़ेंगी और कोरोना को लेकर नया संकट बदले में उपस्थित होगा, इससे बचे जाने की जरूरत है। अभी प्राथमिकता एहतियात बरते जाने की है। आने वाले दिन महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं। सब कुछ ठीक रहा तो छूट का दायरा सशर्त बढ़ाया जा सकता है। जहां तक आर्थिक पैकेज की बात है कि नये सिरे से उद्योग जगत को पटरी पर लाने के लिए 14 लाख करोड़ रुपये के पैकेज की जरूरत होगी। इसके लिए सरकार को अपने खजाने और राजकोषीय घाटे की चिंता को फिलहाल एक किनारे रख देना चाहिए। यह आग्रह कमोवेश वाजिब है। इसमें जो सूक्ष्म और लघु मध्यम उद्योग हैं, उसे एक नई ताकत देने के लिए सरकार को आगे आने की जरूरत है। इसमें देश की बड़ी आबादी को रोजगार मिलता है। इन सब आग्रहों और उमीदों के बीच इसे भी समझने की जरूरत है। नये उभरते परिदृश्य में उसी तरह की सोच के साथ आगे बढऩा समय की आवश्यकता है, इसलिए इसके लिए भी अभी से तैयार रहने की जरूरत है।

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