अब तो आएगा उम्मीदों का नया दौर

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सहस्त्राब्दी आने के बाद, अधिकांश विशेषज्ञों ने सोचा था कि भविष्य भारत समेत उभरते देशों का होगा। उभरती अर्थव्यवस्थाएं असामान्य तेजी से बढ़ रही थीं। लेकिन इसकी जगह 2010 का दशक उभरते देशों के लिए निराशाजनक साबित हुआ और ये वैश्विक रडार से हट गए। अब वापसी का सही समय है। अर्थव्यवस्थाएं सीधी रेखा पर नहीं, चक्र में चलती हैं। ऐसे कम से कम चार साधन हैं, जो इस दशक में उभरती दुनिया को फिर शुरू कर सकते हैं: कमोडिटी, मैन्यूफैक्चरिंग (विनिर्माण), सुधार और डिजिटल क्रांति।

ज्यादातर उभरती अर्थव्यवस्थाएं तेल व अन्य कमोडिटी के निर्यात से चलती हैं, जो 2010 के दशक में गिरावट के बाद अब वापसी कर रही हैं। हरित अर्थव्यवस्था बनने की दौड़ से लीथियम और एल्यूमिनियम जैसी कच्ची सामग्रियों की मांग बढ़ी है, जो उभरते देशों में ज्यादा उपलब्ध हैं। समस्या यही है कि कमोडिटी की कीमतों में भारी उतार-चढ़ाव आते हैं, जिसका मतलब है इस साधन पर निर्भर अर्थव्यवस्थाएं कीमत कम होने पर कमजोर हो जाएंगी।

विनिर्माण की कहानी विपरीत है। कम ही अर्थव्यवस्थाएं फैक्टरी पॉवरहाउस बनती हैं, लेकिन जब बनती हैं तो यह निर्भर रहने योग्य साधन होता है। हालांकि इसमें कुछ देशों का आधार मजबूत हो रहा है, खासतौर पर कई उत्पादकों के चीन से निकलने के बाद। इसमें दक्षिणपूर्व एशिया में वियतनाम व पूर्वी यूरोप में पोलैंड आगे है।

इसमें वियतनाम उल्लेखनीय है। विश्लेषकों ने सबसे पहले 2000 में वियतनाम को ‘अगला चीन’ बताया था और यह देश अभी भी विनिर्माण मजबूत कर रहा है क्योंकि शायद एक-दलीय, सत्तावादी राज्य ही तेजी से सड़कों और पुलों का निर्माण करते हुए, ‘किसी को पीछे न छोड़ते हुए’ धन साझा कर सकता है। वहीं भारत के लिए परेशानी यह है कि वह न तो मैन्यूफैक्चरिंग पॉवरहाउस है और न ही अमीर कमोडिटी निर्यातक। वह वि‌विधता वाली अर्थव्यवस्था है, जो दर्शाती है कि वह वैश्विक अर्थव्यवस्था से आगे निकल रही है, लेकिन ऐसा करती नहीं है।

उसे आक्रामक सुधार की जरूरत है और आज दबाव बहुत ज्यादा है। महामारी में उन उभरती अर्थव्यवस्थाओं पर दबाव बना, जिनमें अमेरिका और अन्य विकसित अर्थव्यवस्थाओं के बड़े प्रोत्साहन पैकेजों की बराबरी करने के साधन नहीं हैं। ब्राजील से लेकर सऊदी अरब, इंडोनेशिया तक ने कई सुधार लागू किए, जिनमें लालफीताशाही कम करना, बजट अनुशासन लागू करना, महिलाओं को काम की आजादी देना आदि शामिल हैं। आने वाले वर्षों में वृद्धि पर इनका असर दिखेगा। मोदी सरकार ने भी कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाएं हैं, जैसे श्रम और कृषि बाजार को छूट देना।

अगला साधन नया व अलग है। डिजिटल क्रांति शायद वृद्धि में मैन्यूफैक्चरिंग जितनी तेजी न लाए क्योंकि डिजिटल वृद्धि मुख्यत: स्थानीय ऑनलाइन सेवाओं से होती है, जिसमें निर्यात की आय में तेजी का अतिरिक्त लाभ नहीं मिलता। लेकिन फिर भी यह हर उभरती अर्थव्यवस्था में एकसाथ, सतत बदलाव ला सकती है।

उभरती दुनिया में डिजिटल सेवाएं तेजी से बढ़ रही हैं, जहां कई उपभोक्ताओं की दुकानों, बैंकों और थियेटर तक सीमित पहुंच है और इसलिए उन्होंने जल्दी डिजिटल विकल्प अपनाए। चीन में आज जीडीपी में 40% हिस्सेदारी तकनीक की है। लेकिन यह अनोखा नहीं है।

जीडीपी में डिजिटल सेवा राजस्व की हिस्सेदारी के मामले में शीर्ष 30 देशों में भारत समेत 15 देश उभरती दुनिया के हैं। और इन सभी देशों में डिजिटल रेवेन्यू, कुल अर्थव्यवस्था से भी ज्यादा तेजी से बढ़ रहा है और जीडीपी ग्रोथ बढ़ा रहा है। उल्लेखनीय रूप से, भारत सहित कम आय वाले देशों ने उन्नत डिजिटल सेवाओं को लागू कर, महामारी के आर्थिक प्रभाव को उम्मीद से कहीं बेहतर ढंग से संभाला है।

भारत और अन्य उभरते बाजारों को लेकर रही सनसनी की अब भले ही वापसी न हो, लेकिन ऐतिहासिक ‘नॉर्मल’ की वापसी जरूर होगी। और उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिए इसका अर्थ होगा कि कई बेशक संघर्ष करेंगी, लेकिन बढ़ने वाली अर्थव्यवस्थाओं की भी अच्छी संख्या होगी, जिनमें कुछ पुराने तो कुछ आश्चर्यजनक नए रास्तों पर आगे बढ़ेंगी।

रुचिर शर्मा
(लेखक और ग्लोबल इंवेस्टर हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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