अफवाहों से बचने की आवश्यकता हैं। कुछ लोग संकट की इस घड़ी में अपनी नापाक हरकतों को अंजाम देना चाहते हैं। कोरोना वायरस लॉकडाउन के बीच देश में माहौल बिगाडऩे वाली अफवाहों का बाजार गर्म है। अब भारतीय सेना को भी सफाई देनी पड़ी है। कुछ मेसेज सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे थे कि अप्रैल में देश में आपातकाल लगाकर सेना को सड़कों पर उतारा जाएगा। अब सेना ने इसका खंडन किया है। इससे पहले सरकार ने लॉकडाउन बढ़ाने के वायरल मेसेज का खंडन किया और उसे फेक बताया। पिछले दिनों भारतीय सेना को लेकर हाल ही में एक फर्जी मेसेज और वायरल हुआ था। इसमें कहा गया था कि सेना सामूहिक अंतिम संस्कार करने की ट्रेनिंग ले रही है। भारतीय सेना ने उसे भी फर्जी बताया था। फर्जी संदेश का दावा था कि ऐसी ट्रेनिंग इसलिए दिलवाई जा रही है कि कोरोना से मरनेवालों का अंतिम संस्कार किया जा सके। देश कोरोना जैसी महामारी से जूझ रहा है तब कुछ देश विरोधी ताकतें अपने मंसूबों को कामयाब करना चाहती हैं।
हम सबको इस कठिन परिस्थिति में संभल कर रहना है, ताकि कोई अफरातफरी ना मच सके। एक नागरिक के तौर पर यह हम सभी का कर्तव्य है कि जहां हैं वहीं अपनी भूमिका का निर्वाह करें। यह सही है इस अबूझ बीमारी ने ग्लोबल चेन के उस काले पक्ष को रेखांकित किया है जिसमें कल्चर के साथ बीमारियां भी यात्रा करती और प्रवेश पाती हैं। इस महामारी की भयावहता को समझते हुए यह सोचने का भी उचित अवसर आया है कि इस वैश्विकता से हमे कितना फायदा और नुकसान हुआ है। आर्थिक पैमाने पर यहां के नजरिये से देखें तो देश के रूप में हमें या मिला है इसे इंडिया और भारत के रूप में देखा जा सकता है। हमारा खान-पान प्रभावित हुआ जीवन शैली ने नई जटिलताओं का वरण किया। एक तरह से जीवन को जटिलता की तरफ ले जाने वाली आधुनिकता को अंगीकार किया। अब बीमारी को भी अंगीकार करना पड़ रहा है। वर्ना इस वायरस के लिए यहां अनुकूलता भला कहां थी पर ग्लोबल इकानॉमी के अन्तर्सबन्ध का नतीजा यह है कि इस त्रासदी से जूझते हुए हर गतिविधि को अनिच्छापूर्वक विश्राम देना पड़ रहा है।
चीन से आया यह रोग भारत के लिए बड़ी चुनौती साबित हो रहा है। यहां रोजी -रोटी के लिए देश के कोने -कोने में लोग प्रवास पर परिवार संग रहते आए हैं। ठप हुई अर्थव्यवस्था में अपने मूल स्थान की तरफ लौटने की व्यग्रता ने भी देश की पेशानी पर चिंता की लकीरें खींच दी हैं। यह हालात भी बाहरी मुल्कों से यहां लौटे लोगों की वजह से पैदा हुआ है। लौटने वालों ने जानकारी दी होती और उन्हें तब टेस्ट के बाद संदिग्ध पाए जाने की स्थिति में वारंटाइन कराया जाता तो यह मंजर पेश नहीं होता। तकरीबन 15 लाख विदेश से लोग लौटे हैं जिनको लेकर राज्यों के स्तर पर लापरवाही बरती गई। अब उनकी तलाश हो रही है। मेरठ में जिस तरह एक ही परिवार में 13 लोग कोरोना संक्रमित पाए गए हैं अभी 35 की रिपोर्ट बाकी है तो इस रोग के फैलने की रफ्तार को समझा जा सकता है। ऐसे में नकरात्मक चर्चाएं और अफवाहें लड़ाई को कमजोर करती है। अफवाह फैलाने वालों को भी सोचना चाहिए।