अथाह गर्त में गिरता मीडिया

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प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया ने सुध ली, लेकिन देर से। वैसे भी प्रेस काउंसिल एक दंतहीन संस्था है। उसकी आलोचना और टिप्पणियों की परवाह आज शायद ही कोई मीडिया संस्थान करता है। मगर मीडिया जिस तरह गर्त में जा रहा है, उससे विवेकशील लोगों की व्यग्रता बढ़ती ही जा रही है। सुशांत सिंह राजपूत मामले में मीडिया कई पायदान और गिरा है। देश में इस वक्त कई गंभीर मामले हैं जिन पर टीवी न्यूज चैनलों पर खबरें दिखाई जानी चाहिए। उन पर बहस होनी चाहिए। लेकिन करीब दो महीनों से एक-दो चैनलों को छोड़ बाकी चैनलों पर सिर्फ बॉलीवुड अभिनेता रहे सुशांत सिंह राजपूत और उनकी पूर्व गर्लफ्रेंड रिया चक्रवर्ती से जुड़ी ही खबरें परोसी जा रही हैं। पिछले हफ्ते रिया ने बड़े न्यूज चैनलों को इंटरव्यू दिया और पहली बार अपना पक्ष रखा। गौरतलब है कि पिछले दो महीनों से टीवी पर रिया के खिलाफ तरह-तरह के इल्जाम लगाए जा रहे थे। भारत में कुछ सालों बाद इतने हाई प्रोफाइल क्राइम केस पर मीडिया में इतना बवाल मचा हुआ है। इससे पहले आरुषि तलवार-हेमराज हत्याकांड, नोएडा का निठारी कांड, निर्भया रेप और बलात्कार मामले, आदि पर ऐसा रुख दिखा था।

लेकिन इस बार बात कहीं ज्यादा आगे बढ़ गई है। शायद इसका कारण यह है कि इस मामले में आत्म हत्या करने वाला व्यक्ति बॉलीवुड का हीरो था, एक हिरोइन उसकी गर्लफ्रेंड थी। इसके साथ रहस्य- रोमांच जोड़ कर न्यूज चैनल विवेकहीनता की पराकाष्ठा पर पहुंच गए हैँ। ये शिकायत तो लंबे समय से गहराती गई है कि मीडिया वह मुद्दा उठाता है, जो केंद्र सरकार को ठीक लगे। यानी मीडिया सरकार के एजेंडे पर चलता है। फिलहाल बिहार में चुनाव होने वाला है और यह केंद्र सरकार के माफिक बैठक है कि महाराष्ट्र में सरकार को हिलाया जाए। तो मीडिया- खासकर टीवी मीडिया में इस मामले में कूद पड़ा। सुशांत सिंह मामले की जांच सीबीआई, ईडी और नार्कोटिक्स विभाग अलग-अलग एंगल से कर रहे हैं। सीबीआई ने रिया और सुशांत के करीबी लोगों से इस केस की पूछताछ की है और मौत की असली वजह जानने की कोशिश कर रही है। सुशांत सिंह राजपूत अपने मुंबई स्थित मकान में 14 जून को मृत पाए गए थे।

बाद में पुलिस ने कहा था कि उन्होंने खुदकुशी कर ली है। हालांकि परिवार का आरोप है कि सुशांत की हत्या हुई। उम्मीद की जानी चाहिए कि सीबीआई की जांच सच सामने आएगा। लेकिन मीडिया को तब तक इंतजार करने का धीरज नहीं है। वह खुद ही अदालत बन गया है और नतीजों को भी सुनाने लगा है, ये बहुत घातक है। आखिर मीडिया अपनी लक्ष्मण रेखा को पार कैसे कर सकता है? अगर सरकार को इससे फायदा हो रहा है और न्याय को नुकसान तो फिर या ऐसे गलत काम का ठेका मीडिया ने ले लिया है? ये तो गिरावट की पराकाष्ठा है। रिया केस में अगर सीबीआई जांच का सार जायदाद के मामले में सुशांत की बहनों व उनके जीजा की तरफ चला गया तो फिर इन चैनलों का या होगा, ये लाख टके का सवाल है। हर समय कपड़े उतारने की होड़ व बेदाग के नाक को भी काटने की लालसा अच्छी सोच नहीं। कम से कम लोकतंत्र और भारतीय मीडिया के लिए। बिना सोचे-समझे जिस तरह खबरों के नाम पर गंदगी परोसी जा रही है उससे मीडिया से विश्वास उठता जा रहा है।

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