अतीत से सच से गुरेज

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जो सत्ता में होता है, वह अपने ढंग से इतिहास को ढालता है। लेकिन ऐसा करते वक्त तथ्यों से छेड़छाड़ होने लगे तो यह समस्याग्रस्त बात हो जाती है। इसलिए तथ्यों से परिचित होना सबके अपने हित में होता है। मगर हाल में यही हो रहा है कि अतीत के सच को ढका जा रहा है। ताजा सूचना यह है कि एनसीईआरटी ने नौंवी कक्षा की इतिहास की पाठ्य पुस्तक से तीन अध्याय हटा दिए गए हैं।

इतिहास लेखन या पुनर्लेखन बेशक राजनीतिक विचारधारा से प्रभावित होता है। जो सत्ता में होता है, वह अपने ढंग से इतिहास को ढालता है। लेकिन ऐसा करते वक्त तथ्यों से छेड़छाड़ होने लगे तो यह समस्याग्रस्त बात हो जाती है। इसलिए तथ्यों से परिचित होना सबके अपने हित में होता है। मगर हाल में यही हो रहा है कि अतीत के सच को ढका जा रहा है। ताजा सूचना यह है कि एनसीईआरटी ने नौंवी कक्षा की इतिहास की पाठ्य पुस्तक से तीन अध्याय हटा दिए गए हैं। इनमें से एक अध्याय में त्रावणकोर की तथाकथित पिछड़ी जाति की नाडर की महिलाओं के संघर्ष को दिखाया गया है, जिन्हें अपने शरीर के ऊपरी हिस्से को खुला रखने के लिए मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर द्वारा शुरू किए गए पाठ्यक्रम को बेहतर बनाने की पहल का हिस्सा है।

गौरतलब है कि यह मौजूदा सरकार के तहत की गई दूसरी पाठ्यपुस्तक की समीक्षा है। यह संशोधित पुस्तकें नया शैक्षिक सत्र शुरु होने से पहले इसी महीने आएंगी। 2017 में एनसीईआरटी ने 182 पाठ्यपुस्तकों 1,334 बदलाव किए थे। अब कक्षा नौ की पाठ्यमुस्तकों के जिन तीन अध्याओें को हटाया गया है, उसमें एक परिधानों (परिधान, एक सामाजिक इतिहास) से जुड़ा है। दूसरा अध्याय इतिहास एवं खेल क्रिकेट की कहानी भारत में क्रिकेट के इतिहास और जातिए धर्म तथा समुदाय की राजनीति से संबंधित है। तीसरा अध्याय खेतिहर और किसान, पूंजीवाद के विकास पर केन्द्रित है।

नाडार जाति को पहले शनार के नाम से जाना जाता था। उन्हें अधीनस्थ जाति समझा जाता था। इसलिए इस जाति की महिलाओं और पुरुषों को छतरियों का इस्तेमाल नहीं करते, जूते या सोने के आभूषण नहीं पहनने और ऊपरी जाति के लोगों के सामने अपने शरीर के ऊपरी हिस्सों को नहीं ढकने के स्थानीय रीति-रिवाजों का पालन करना होता था। ईसाई मिशनरियों के प्रभाव के बाद शनार जाति की महिलाओं ने सिले हुए ब्लाउज पहनने शुरू किए। किताब से जिस अध्याय को हटाया गया है, उसमें लिखा था कि मई 1822 में त्रावणकोर ने नायर समाज, तथाकथित ऊंची जाति के लोगों ने नाडर महिलाओं पर हमला किया था। ऐसी घटनाओं को पढ़ने में क्या आपत्ति हो सकती है। लेकिन आज इन्हें भारतीय भावना के खिलाफ समझा जा रहा है। ये साफ है कि भारतीय भावना की परिषाभा किस सोच से हो रही है।।

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