पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की 95वीं जयंती पर बुधवार को मोदी सरकार ने अटल जल योजना की शुरुआत की। इससे बेहतर पूर्व प्रधानमंत्री को याद करने का भला और तरीका क्या हो सकता है। जल प्रबंधन उनके सरोकारों में से एक था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने सेंटर के सपनों को साकार करने की पहल की है, यह स्वागत योग्य योजना है। इस योजना से सात राज्यों के 8350 गांवों को लाभ मिलेगा। यह योजना महाराष्ट्र, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक के 78 जिलों में गांवों के भूजल स्तर को सुधारने में सहयोगी होगी। इसमें दो राय नहीं कि लगातार घटता भूजल स्तर किसानों के साथ ही पूरी मनुष्यता के लिए आसन्न चुनौती है। समय रहते इस पर काम शुरू होना ही चाहिए था। यह सही है कि देश में खेती के लिए सिंचाई का कार्य मुख्य रूप से भूजल और पुरानी तकनीक पर निर्भर है। इससे काफी मात्रा में पानी की बर्बादी होती है। जाहिर है, वक्त की मांग है कि किसान भी वर्षा जल संरक्षण और दूसरी फसलों को अपनाने की तरफ कदम बढ़ायें।
तराई बेल्ट को छोड़ दें तो अन्यत्र कहीं भी गन्ने की फसल तैयार करने में सर्वाधिक जल की बर्बादी होती है। इसी तरह धान की खेती में काफी मात्रा में सिंचाई की जरूरत होती है। हालांकि फसलों की ऐसी प्रजातियां विकसित करने में हमारे कृषि वैज्ञानिक नित नए शोध कर रहे हैं, जिससे कम सिंचाई पर अच्छी पैदावार हो सके और भूजल का कम से कम दोहन को बढ़ावा मिल सके। सूक्ष्म सिंचाई पद्धति इजरायल की लोकप्रिय तकनीक हैए जिसको देश के भीतर कृषि के क्षेत्र में व्यापक रूप से अपनाने की जरूरत है। जीवन के लिए पानी जरूरी है। फसलों के जीवन के लिए उसकी अपरिहार्यता है, इसका कोई विकल्प नहीं हो सकता। सिवाय इसके कि हम जल के सीमित उपयोग की तकनीक को अपनाने की तरफ बढ़े। भूजल स्तर में हो रही गिरावट को थामने के लिए अपनी जिम्मेदारी निभाएं। वर्षा जल संरक्षण की तरफ बढ़ें तो भूजल के दोहन के नियंत्रित किया जा सकता है। इसके अलावा उसके स्तर को बढ़ाया भी जा सकता है।
कुछ संगठन जरूर देश के कुछ हिस्सों में ऐसे अभिनव अभियान चला रहे हैं लेकिन कुछ भर से समस्या का समाधान नहीं होने वाला। इसके लिए जरूरी है कि इसे आंदोलन का रूप दें। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अटल जल योजना इसी तरफ ले जाने वाली पहल है। पानी के अभाव का दर्द, जिन राज्यों को शामिल किया गया है, अरसे से महसूस किया जाता रहा है। अतिजल वृद्धि और अति सूखा-दोनों स्थितियां किसानों समेत सभी के लिए चुनौती के साथ ही दृष्टि भी देती हैं। अभी नहीं चेते तो समस्या से पार पाना मुश्किल होगा। किसान जल संरक्षण की उपयोगिता को समझें और अपनायें। भूजल स्तर की महत्ता को समझें। तालाबोंए कुओं को पुनर्जीवित करें। ये सब वर्षा जल संरक्षण के तरीके रहे हैं। शहरों में भी हमें जल संरक्षण के महत्व को समझना होगा। भूजल के दोहन से बचना होगा। खत्म होते तालाबों पर अतिक्रमण के बजाय उसे फिर से बचाना होगा। सबके प्रयासों से ही नतीजे सामने आएंगे। मोदी सरकार ने निश्चित तौर पर आसन्न संकट को पहचानते हुए पहल की है।