जब अजीत जोगी के इस दुनिया में न रहने की खबर पढ़ी तो बढ़ा अजीब सा लगा क्योंकि दिल्ली आने पर मैंने नेताओं के लिए जो राजनीतिबाज शब्द इस्तेमाल करना सीखा था वे उसकी प्रतिकृति कहे जा सकते थे। उन्होंने अपने जीवन में अच्छा व बुरा दोनों ही समय देखा व उसे खुलकर जिया। संबंध बनाने व उनका लाभ उठाने के मामले में वे लाजवाब थे। कांग्रेस के प्रवक्ता रहे इस नेता का हिंदी व अंग्रेजी दोनों ही भाषाओं पर अधिकार था। समय ने उन्हें इतनी ताकत दी कि वे देश के एक समय सबसे मजबूत व शक्तिशाली घराने कांग्रेस के इतने करीब हो गए कि वे छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री तक बन बैठे। पहले लगता था कि उन्होंने भी वक्त को समझ पीछे हटना नहीं सीखा था। हालांकि अस्पताल में 20 दिनों तक भर्ती रहे तो लगा कि 74 साल का यह नेता ठीक होकर ही बाहर निकलेगा।
उन्होंने मैकेनिक इंजीनियरिंग में गोल्ड मैडल हासिल किया था वे कंपीटिशन में बैठ कर आईएएस बने हालांकि उनका अनुसूचित जाति के होने का दावा विवादास्पद रहा। छत्तीसगढ़ की राजनीति में पूरी तरह से हावी रहने के बावजूद अजीत जोगी व उनका बेटा अमित राकांपा नेता राम अवतार जग्गी की हत्या के अपराध में अभियुक्त घोषित किए गए मगर बाद में पर्याप्त सबूतो के अभाव में बरी हो गए। वह खुद को प्रदेश का अकेला ऐसा आदिवासी कांग्रेसी नेता मानते थे जिसका 10 जनपथ में जनाधार था। मगर दुखों ने कभी उनका पीछा नहीं छोड़ा। उनकी इकलौती बेटी ने आत्महत्या कर ली व वे खुद एक कार दुर्घटना में लकवे का शिकार हो गए। मगर जीवन के संघर्ष की लालसा के चलते वे पहिए वाली कुर्सी पर ही बैठकर राजनीति करने लगे और हाईकमान तक से टकराव ले लिया।
एक आधुनिक सफल भारतीय नेता में जो विशेषताएं होनी चाहिए अजीत जोगी तो मानो उनकी खान थे। वे खुद को अनुसूचित जाति व ईसाई होने का दावा करते थे। उन्हें लंबे अरसे तक खुद को ‘सतनामी’ साबित करने के लिए मुकदमा लडऩा पड़ा। उन्होंने जाति,धर्म का पूरा लाभ उठाया। वे आईएएस में भर्ती हुए व इंदौर के कलेक्टर बने जब राजीव गांधी कांग्रेस के महासचिव के रुप में पहली बार इंदौर गए तो उन्होंने कलेक्टर रहते हुए उनकी जमकर सेवा करके उनका व उनके परिवार का दिल जीता। फिर उनका नाम भोपाल में खुलने वाले एक केंद्र से जुड़ गया। बताते है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी इतनी नाराज हुई कि उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह को उनके खिलाफ कार्रवाई करने के आदेश दे डाले थे मगर तब तक अजीत जोगी अर्जुनसिंह के खास बन चुके थे।
उन्होंने सोनिया गांधी के निजी सचिव वी जार्ज से निकटता बढ़ाई व ईसाई होने का फायदा उठाते हुए उनके करीब पहुंच गए। अर्जुन सिंह उनके जरिए दिग्विजय सिंह को निपटाना चाहते थे। एक दिन जब मध्यप्रदेश के कुछ पत्रकार तत्कालीन मध्यप्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष राधा कृष्ण मालवीय के घर में बैठे थे तो मालवीय ने एक किस्सा सुनाते हुए एक महिला का नाम लेते हुए कहा कि अजीत जोगी कह रहे थे कि छोटी महारानी टिकट लेने के लिए आयी हुई है। बताते हैं कि दिग्विजय सिंह की पत्नी को वे बड़ी महारानी कहते थे। हालांकि अजीत जोगी पत्रकारों से बातचीत में कहते थे कि दिग्गी कहीं के राजा नहीं है वे तो ठिकानेदार है यह रूतबा अंग्रेज अपने भारतीय चमचों को बश देते थे।
बाद में एक युवा पत्रकार ने दिग्विजय सिंह को अजीत जोगी की इस तरह की बातों की जानकारी दी और कहते है वे काफी नाराज हो गए व राधाकृष्ण मालवीय के घर जाकर उन्होंने इस पत्रकार व अजीत जोगी को बुलवा लिया। उन्होंने उस पत्रकार को अजीत जोगी के आगे कर के कहा कि बताए कि मालवीयजी के मुताबिक यह क्या कह रहे थे। उसने सारी बात की पुष्टि कर दी व दिग्गी राजा ने जोगी से दूरी बनाना शुरु कर दी। सोनिया गांधी से निकटता के कारण अजीत जोगी न केवल पार्टी के प्रवक्ता बने बल्कि जब प्रदेश का विभाजन हुआ तो विद्याचरण शुक्ल, नंद कुमार पटेल सरीखे वरिष्ठ नेताओं के मुख्यमंत्री पद की दौड़ में शामिल होने के बावजदू सोनिया गांधी के चाहने से पहले मुख्यमंत्री बन गए। उनके नाम को लेकर जब दिल्ली की केंद्रीय टीम में शामिल दिग्विजय सिंह व गुलाम नबी आजाद ने विद्याचरण शुक्ला के सामने ऐलान किया तो वहां मौजूद एक पत्रकार के मुताबिक शुक्ला इतना नाराज हो गए कि उन्होंने दोनों नेताओं को धकमपेल में धकिया दिया।
सोनिया गांधी उन्हें ईसाई होने के कारण बहुत पसंद करती थी। उनकी बेटी ने इंदौर में शादी के मुद्दे पर नाराज होकर आत्महत्या कर ली। उनके बेटा अमित एक युवा की हत्या के मामले में फंसा। जब सुकमा में कांग्रेस के विद्याचरण शुक्ल सरीखे प्रदेश के जाने माने पार्टी नेता नक्सलियों के हमले में मारे गए तो दबी जबान में इसके लिए उन पर भी आरोप लगाए जाने लगे क्योंकि उन्होंने हमले से कुछ मिनट पहले ही वह जगह छोड़ी थी। बाद में बाप-बेटा कांग्रेस से अलग हो गए व उन्होंने अपना क्षेत्रीय दल बना लिया। एक सड़क दुर्घटना में वे बहुत बुरी तरह घायल हो गए व पीठ के नीचे उन्हें लकवा मार गया व उनका चलना फिरना बंद हो गया व वे पहिए वाली कुरसी पर बैठकर आने-जानें लगे। जो हो उन्होंने जीवित रहते हुए अर्जुनसिंह से लेकर माधव राव सिंधिया, विद्याचरण शुक्ल, दिग्विजय सिंह सरीखे नेताओं को हाशिए पर ला दिया था। मगर ईश्वर ने, वक्त ने उन्हें अपने पैरों पर खड़ा रहने के लायक भी नहीं छोड़ा।
विवेक सक्सेना
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)