अगले जन्म मोहे बिटिया ही दीजौ

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नारी सृष्टि की जननी होती है। घर, परिवार संसार एक महिला ही भलीभांति संभाल सकती है। जबकि पुरूष बाहर का खिलाड़ी यानी कमाने वाला होता है। जब यह बात कटु सत्य है तो फिर भी हमारे समाज में पुरूषों की अपेक्षा महिलाओं पर ही अत्याचार क्यों होते हैं। जबकि सभी के परिवार में मां, बहन, बेटी, बहु किसी न किसी रूप में साक्षत लक्ष्मी होती है। परंतु देश के अधिकांश बड़े महानगरों में सरकार की नाक के नीचे आलीशान चिकित्सा सेंटरों पर धड़ल्ले से भ्रूण जांच हो रही है। इससे भी शर्मनाक बात यह है कि दिल्ली में एक ऐसा सेंटर हैं जहां जांच होती ही हैं बल्कि यहां संपन्न परिवार की अब पिछले कई सालों से लगभग छह लाख परिवार विदेश में लड़का की चाह में सिंगापुर, इंडोनेशिया, सउदी में जा रहे हैं और यह सब हो रहा है गारंटी के साथ कि लड़का ही होगा। इसका लाभ लेने के लिए अब तक करीब करीब छह लाख भारतीय हैं जो संपन्न तो हैं ही और वैसे भी सिंगापुर जैसे शहर में कोई गरीब परिवार तो जा नहीं सकता वहां कम से कम करोड़पति ही जा सकता है और वह परिवार अशिक्षित तो हो ही नहीं सकता क्योंकि आज भी गरीब परिवारों में कन्या भू्रण हत्या को अभिशाप समझते हैं। परंतु देश के अमीर घराना में ही ऐसी घिनौनी घटनाएं हो रही हैं।

वहीं सिंगापुर में लड़का होने की शर्त पर साढ़े आठ लाख से लेकर दस लाख रूपये तक की मोठी फीस ली जाती हैं ऐसी बात सामने आई हैं। हमारे देश में यदि कोई चिकित्सक या कोई महिला या परिवार कन्याभू्रण हत्या के मामले में पकड़ा जाता है भारतीय दंड संहिता के अनुसार उसे तीन साल या ज्यादा से ज्यादा पांच साल की सजा का प्रावधान है। और वैसे भी हमारे देश में सरकार की महत्वकांक्षी योजनाएं काफी फलीभूत हो रही है और वह हैं बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ। यह स्लोगन हमारे देश में अमूमन ट्रक, बस या रेलगाड़ी पर जरूर छपा होगा जिससे देशवासियों में जागरूकता आये। यहां गौर करने वाली बात यह है कि यह सब उस देश में हो रहा है जहां साल में दो बार मां की अराधना करने के लिए नवरात्रि में किसी देवी या कन्या की पूजा हम सब कर रहे हैं और ठीक इसके विपरीत यह कलंक हमारे ऊपर लग रहा है कि कन्याभू्रण हत्या का। सरकारी आंकड़ों में मुताबिक आज दिल्ली जैसे शहर में 1000 पुरूषों की अपेक्षा महिलाओं की संख्या 850 रह गई हैं। वहीं दूसरी ओर हरियाणा, पंजाब जैसे राज्यों में यह आंकड़े और भी चैंकाने वाले हो सकते हैं। अब जरा सोचिये एक तरफ तो हमारी सरकारें बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओं के नारे लगवाती हैं तो वहीं दूसरी और लाखों कन्याभू्रण हत्या हो जाती हैं। इसमें उस कन्या का कसूर हैं जिसे धरती पर आने से पहले ही मार दिया जाता है।

हैरत की बात तो ये है कि पिछले दो दशकों में एक करोड़ कन्याभू्रण हत्याएं की जा चुकी हैं लेकिन अभी तक परंतु आज तक देश में कानून के तहत एक भी व्यक्ति को सजा नहीं मिली है। इससे हमारी संघीय कानून व्यवस्था के पूरी तरह निष्प्रभावी होने का बोध होता है! साफ है कि चैबीस साल पहले कानून भी बन चुका है और अल्ट्रासोनोग्राफी तकनीक से एक करोड़ कन्याभू्रण हत्याओं के षड़यंतकारी भी बेखौफ हैं। कई राज्यों में तो ऐसी भी सरकारी नीति घोषित है कि तीसरी संतान के रूप में भले कन्याभू्रण कोख में पल रहा हो, उसको जन्म न देना नौकरी पेशा मां की मजबूरी बना दी गई है। श्लांसेट, में प्रकाशित एक शोध के मुताबिक तकनीक के कारण ही पिछले दो दशक में अकेले भारत में ही एक करोड़ कन्याभू्रण कोख में ही मार दिए गए। भारत में कन्याभू्रण हत्या और गिरते लिंगानुपात को रोकने के लिए सख्त कानून है। इस अधिनियम से प्रसव पूर्व लिंग निर्धारण पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। ऐसे में अल्ट्रासाउंड या अल्ट्रासोनोग्राफी कराने वाले जोड़े या करने वाले डॉक्टर, लैब कर्मी को तीन से पांच साल तक की सजा और 10 हजार से एक लाख रुपए तक का जुर्माना हो सकता है।

इस कानून में प्रावधान किया गया है कि गर्भ में पल रहे बच्चे के लिंग की जांच करना या करवाना, शब्दों या इशारों में इस संबंध में कुछ बताना या जानकारी करना, इसकी जांच का विज्ञापन देना, गर्भवती महिला को इसके बारे में जानने के लिए उकसाना, इसके लिए अल्ट्रसाउंड इत्यादि मशीनों का इस्तेमाल करना जुर्म है। जांच केंद्र के मुख्य स्थान पर यह लिखवाना अनिवार्य है कि यहां पर भ्रूण के लिंग की जांच नहीं की जाती है। कोई भी व्यक्ति अपने घर पर भू्रण के लिंग की जांच के लिए किसी भी तकनीक का प्रयोग नहीं कर सकता है। पहली बार कानून का उल्लंघन करने पर तीन साल की कैद और 50 हजार रुपए तक जुर्माना, दूसरी बार पकड़े जाने पर पांच साल की कैद और एक लाख रुपए तक जुर्माना हो सकता है। देश के जनसंख्या आयुक्त और महापंजीयक जेके भाठिया के मुताबिक वर्ष 1981 में लड़कियों की संख्या एक हजार लड़कों के मुकाबले 960 थी, जिसमें बड़ा मामूली सा परिवर्तन आया है। इसमें सबसे ज्यादा पंजाब के हाथ खून से रंगे हैं। दिल्ली के अपोलो अस्पताल के डॉक्टर पुनीत बेदी के मुताबिक भारत में लगभग 30,000 डॉक्टर दौलत के लालच में तकनीक का दुरूपयोग कर रहे हैं।

अगर पहली सन्तान बेटा है तो दूसरी सन्तान के लिंग अनुपात में गिरावट नहीं देखी गई है। पहली संतान बेटी होने पर दूसरे बच्चे की लिंग जांच करवाकर परिवार ये सुनिश्चित करना चाहते हैं कि उनका एक बेटा तो जरूर हो। ज्यादातर शिक्षित और समृद्ध परिवारों में ऐसा हो रहा है। कुछ विद्वानों का ऐसा भी मानना है कि शिक्षा की दर, संपत्ति, जाति अथवा समुदाय किसी एक पैमाने पर नहीं, बल्कि सभी तरह के परिवारों में कोख में ही लिंग का चुनाव कर लेना अब आम बात हो चुकी है। अनब्याही मांओं की बदनामी का मसला भी इससे जुड़ा है। कुल मिलाकर लिंगभेदी मानसिकता और जागरूकता के अभाव से भी हमारे देश में बेखौफ कन्याभू्रण हत्याएं हो रही हैं। पुलिस कन्याओं के भू्रण बरामद करने के बावजूद कानून को निष्प्रभावी रहने देती है। हां, पकड़े जाने पर ले-देकर जरूर मामला रफा-दफा कर लिया जाता है। इस तरह यह डॉक्टरों के साथ ही पुलिस के लिए भी कमाई का एक और जरिया हो गया है। पिछले साल ही सांगली (महाराष्ट्र) के गांव महसाल में एक नाले से 19 कन्या भ्रूण बरामद हुए थे, क्या हुआ, कुछ नहीं। अल्ट्रासाउंड मशीनों की पहुंच छोटे शहरों, कस्बों तक हो गई है। देश के लगभग हर शहर-कस्बे में कन्याओं को कोख में मारने का कत्लेआम चल रहा है। फिर भी कानून इतना लाचार क्यों है? सरकारी आकड़ों की बेशर्मी के बारे में तो कुछ न ही कहा जाए। बीते वर्षों में तो लड़कियों से अधिक लड़कों की कन्याभू्रण के मामले दर्ज हुए। यह सब घटनाएं मानव जगत पर कलंक है।

– सुदेश वर्मा
यह लेखक का निजी विचार हैं

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