अंग्रेस भी फैलाते थे फेक न्यूज

0
186

हाउडी मोदी के कार्यक्रम में एक सीनेटर द्वारा गांधीजी एवं नेहरूजी की प्रशंसा में जो वक्तव्य दिया गया है उसने एक बार फिर यह विचार करने पर मजबूर किया है कि डेढ़ सौ बरस बाद भी दुनिया गांधी की तरफ क्यों देख रही है? गांधी का व्यक्तित्व आज भी पूरी दुनिया को एक संदेश क्यों दे रहा है? जबकि भारत के अंदर ही उनकी आलोचना को विस्तार देने वाले लोग मौजूद हैं यह उचित ही होगा कि मोदी के सामने अगर अंतर्राष्ट्रीय हस्तियां गांधी और नेहरू को भारत का प्रतीक पुरुष मानती हैं तो भारत में उनके दर्शन और व्यक्तित्व पर पुनरावलोकन करने का यही अवसर है।

गांधीजी की लोकप्रियता से समूचा यूरोप परेशान था। यूरोप में भी उनकी अहिंसा के सिद्धांत के प्रति जागृति होती जा रही थी। यूरोप का बौद्धिक जगत गांधी से प्रभावित हो रहा था। रोमा रोलां के निमंत्रण पर जब गांधी जी के स्विट्ज़रलैंड पहुंचने की खबर फैली तो स्विट्जरलैंड में उत्साह की लहर दौड़ गई। लेमन नगर के दूध वालों की सिंडिकेट ने रोमा रोलां को टेलीफोन से सूचना दी कि वह भारत के इस राजसंत के लिए तब तक दूध भेजना चाहते हैं जब तक वे स्विट्जरलैंड में रहें। एक जापानी कलाकार उनके चित्र बनाने के लिए पेरिस से भागे चले आए और गांधी जहां ठहरे थे एक युवा वादक रोज उनकी खिड़की के नीचे खड़े होकर दिलरुबा बजाया करता था।

इटली के लोगों ने इस भारतीय संत के लिये प्रार्थनायें कीं। पाठशाला में पढ़ने वाले बच्चे रोज फल लेकर आते थे। गांधीजी रास्ते में एक दिन रोम भी जाना चाहते थे किंतु रोमा रोलां ने वहां फासिस्टों से संभल कर रहने की सलाह दी और एक बहुत ही विश्वसनीय मित्र के यहां उनके रहने का इंतजाम कर दिया। रोम में गांधीजी ईसा मसीह के अनुयाइयों से संबंधित चित्र प्रदर्शनी को देखने गए सिस्टिन चैपल में तो वे ठगे से रह गए। पोप ने उनसे मिलने की मांग को अस्वीकार कर दिया किंतु मुसोलिनी ने उनसे भेंट की। रोमांरोलां ने कहा था, यह वह व्यक्ति है, जिसने 30 करोड़ लोगों को क्रांति के लिये प्रेरणा दी, जिसने ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिला दी। जिसने मानव राजनीति में दो हजार वर्षों की सबसे शक्तिशाली धार्मिक भावना को स्थान दिया। उनका यह कथन आज भी गुजरात के साबरमती आश्रम में अंकित है।

इतालवी जहाज पिल्सना पर सवार होकर ब्रेंडिस की ओर जाते गांधीजी को पता लगा कि इटली के अखबार ज्योर्नेल द इतालिया में उनकी एक मुलाकात के बारे में छापा गया है जिसमें उन्होंने बताया है कि वे भारत लौटते ही सविनय अवज्ञा आंदोलन को फिर से शुरू करेंगे जबकि गांधी ने ऐसी कोई मुलाकात दी ही नहीं थी गांधी ने तार के द्वारा यह सूचना लंदन भेज दी कि ज्योर्नेल द इतालिया में छपी हुई खबर बिल्कुल झूठी है लेकिन गुलामी के दिनों में भी फर्जी खबरों के माध्यम से आंदोलन को कुचलने का षडयंत्र जारी था। फेक न्यूज़ से गांधीजी का यह रोजमर्रा का सामना था। फासिस्टों के अखबार के इस समाचार ने अंग्रेजों को तो जैसे मुंह मांगी मुराद दे दी और कांग्रेस को कुचलने की योजनायें फिर से बलवती होने लगीं जो इर्विन समझौते के बाद थोड़ी शिथिल हुईं थीं।

फासिस्टों के अखबार में छपी इस खबर को आधार बनाकर इंग्लैंड के खुर्राट राजनेताओं ने गांधी इरविन समझौते को नष्ट करने के लिए तैयारियां शुरू कर दीं तथा गांधी के भारत पहुंचने के पहले ही सविनय अवज्ञा आंदोलन से उत्पन्न स्थितियों का मुकाबला करने की तैयारी कर ली। एक पत्र में तो गवर्नर को लिखा गया था कि अगर भारत सरकार गांधी को गिरफ्तार करके भारत में ही रखना चाहती है तो कोयंबटूर सबसे बढ़िया जगह होगी गवर्नर साहब की राय है इस बार गांधी जी की गिरफ्तारी का नैतिक प्रभाव पहले से कहीं ज्यादा होगा साथ ही उनका यह भी सोचना है कि गांधीजी की गिरफ्तारी से सविनय अवज्ञा आंदोलन को कुचलने का सरकार का इरादा भी जनता में संदेश के रूप में पहुंचेगा। गिरफ्तारी के बाद गांधी को अंडमान में या हो सके तो अदन में रखना बेहतर होगा। यह पत्र दर्शाता है कि गांधी कितने लोकप्रिय थे इसीलिए गांधी के भारत पहुंचने के हफ्तों पहले इस तरह के नियम कानून बनाए गए। गांधी 28 दिसंबर 1931 को जब मुंबई पहुंचे तो उन्हें तत्काल गिरफ्तार कर लिया गया।

गांधीजी 4 महीने की विदेश यात्रा के बाद भारत पहुंचे थे तब उन्होंने नहीं सोचा था कि राजनीतिक संकट इतना गहरा हो जाएगा। संयुक्त प्रांत में जवाहरलाल नेहरू और अब्दुल गफ्फार खान को गिरफ्तार किया जा चुका था। तब गांधी जी ने मुंबई की एक सभा में कहा था कि मैं समझता हूं यह ऑर्डिनेंस हमारे ईसाई वाईसराय लॉर्ड विलिंग्टन साहब की ओर से हमें क्रिसमस का उपहार है। जिस तरह से उन्होंने सरकारी बल का हिंसक परीक्षण करने का फैसला किया है। इससे सविनय अवज्ञा आंदोलन को फिर से शुरू करना ही सही सही जवाब होगा।

वॉइस राय उनके इस बयान से झल्ला उठे और उन्होंने परिणामों के लिए कांग्रेस को तैयार रहने के लिए चेतावनी दी किंतु गांधी की अहिंसा, गांधी की व्यापकता इस चेतावनी को स्वीकार करने के लिए तैयार थी। यही गांधी का दर्शन है कि वे जिससे न्याय की अपेक्षा करते थे उसे यह सिद्ध करने का कि वह न्याय भी कर सकता है पूरा अवसर भी देते थे। ब्रिटिश हुकूमत, गांधी की इस नैतिकता के कारण ही बार-बार कदम पीछे हटाती थी और बार-बार भारतीयों के स्वाभिमान पर हमला करती थी। किंतु भारत की सहनशीलता ने ही अंततः उन्हें हथियार डालने पर मजबूर किया। यही गांधी का वाद है यही गांधी की सहजता है, यही गांधी का अनुकूलन है जिसे अपनाने का भारत के पास आज सही अवसर है।

भूपेंद्र गुप्ता
लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here