होली का पावन पर्व

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होगा होलिका दहन 20 मार्च, बुधवार को भद्रा के पश्चात
होलिका विभूति धारण से मिलता है आरोग्य के साथ सुख-समृद्धि भी
धुरड्डी : 21 मार्च, गरुवार को

होली का पावन पर्व पाल्गुन शुक्लपक्ष की पूर्णिमा तथि के दिन हर्ष, उमंग व उल्लास के साथ समाने की परम्परा है। प्रख्यात ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि इस बार पूर्णिमा तिथि 20 मार्च, बुधवार को दिन में 10 बजकर 45 मिनट पर लगेगी, जो कि मार्च 21 मार्च, गुरुवार को दिन में 7 बजकर 13 मिनटन तक रहेगी। व्रत की फाल्गुनी पूर्मिणा 20 मार्च, बुधवार को जबकि स्नान-दान की पूर्णिमा 21 मार्च, गुरुवार को रहेगी। पूर्णिमा तिथि की रात्रि में होलिकादहन करने का विधान है। भद्रा में होलिकादहन वर्जित है। भद्रा 20 मार्च, बुधवार को दिन में 10 बजकर 45 मिनट से रात्रि 8 बजकर 59 मिनट तक रहेगी। भद्रा के पश्चात् शुभ मूहूर्त में होलिका दहन किया जाएगा। 13 मार्च, बुधवार से प्रारम्भ होलाष्टक आज 21 मार्च, गुरुवार को समाप्त हो जाएगा। इस दिन रंगोत्सव का रंगारंग पर्व धुरड्डी विधि-विधानपूर्वक मनाया जाएगा। इस दिन एक-दूसरे के लोग अबीर-गुलाल भी लगाएंगे। काशी में चौसट्टी घाट पर विराजमान चौसट्टी देवी का दर्शन करने की विशेष महिमा है। चैत्र कृष्णपक्ष की प्रतिपदा तिथि 21 मार्च, गुरुवार को दिन में 7 बजकर 13 मिनट से प्रारम्भ हो जाएगी।।

होलिका पूजन का विधान – प्रख्यत ज्योतिषविद् श्री विमल जैन ने बताया कि पूर्व स्थापित की गई होलिका की विधि-विधानपूर्वक पूजन की जाती है। होलिका पूजन में रोली, अक्षत, पुष्प, साबूत हल्दी गांठ, नारियल, बतासा, कच्चा सूत, गोबर के उपले एवं पूजन की अन्य सामग्री रहती है। होलिकादहन के समय होलिका की परिक्रमा करने का विधान है। होलिका की भस्म अत्यन्त ही चमत्कारिक मानी गई है। ऐसी मान्यता है कि होलिका दहन के पश्चात होलिका की भस्म मस्तक पर लगाने पर लगाने से आरोग्य लाभ के साथ सुख-समृद्धि व खुशहाली में भी अभिविद्धि होती है। फाल्गुन शुक्लपक्ष की पूर्णिमा तिथि को ही श्री चैतन्य महाप्रभु की जयन्ती भी मनाई जाती है।

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