कोरोना वायरस के आने के बाद से बार-बार कहा जा रहा है कि कोई भी देश ऐसी आपदा से निपटने के लिए तैयार नहीं था और इसका इतना अप्रत्याशित होना ही वह कारण है, जिसके चलते इतनी बड़ी संख्या में मौतें हो रही हैं। दूसरी तरफ कुछ लोग हॉलिवुड फिल्म कांटेजियन का भी हवाला दे रहे हैं कि वर्ष 2011 में ही ऐसी बीमारी की कल्पना हॉलिवुड ने कर ली थी। लेकिन क्या कल्पना हवा में होती है। क्या कल्पनाओं का कोई आधार नहीं होता? क्या ऐसी बीमारी फैलने का अंदाजा किसी को भी नहीं था? और था तो किसी ने इस बारे में कोई तैयारी क्यों नहीं की? ये ऐसे सवाल हैं जिनकी तह में जाने पर पता चलता है कि कैसे एक अमेरिकी राष्ट्रपति ने वक्त रहते एक बड़े खतरे को पहचाना था और उससे निपटने की तैयारी भी की थी, लेकिन सारी योजनाएं धरी की धरी रह गईं। किसी वायरस से लोगों की मौतें होने का परिदृश्य नया नहीं है। अब से पांच साल पहले, मार्च 2015 में टेड टॉक देते हुए बिल गेट्स ने कहा था कि अगले कुछ दशकों में अगर किसी एक घटना में दस लाख या उससे अधिक लोग मरते हैं तो वह किसी वायरस के कारण होगा, मिसाइलों के कारण नहीं। इसलिए दुनिया को इस दिशा में सोचना चाहिए। उनकी वह अविश्वसनीय बात ठीक पांच साल बाद सच साबित हो रही है और जाहिर है, इससे बिल गेट्स बहुत खुश नहीं हैं। गेट्स फाउंडेशन पिछले कई सालों से स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों पर काम कर रहा है और संभवत: इस क्षेत्र में उनकी जानकारी ने ही उन्हें इस तरह के परिदृश्य पर सोचने के लिए विवश किया होगा।
अब इससे पीछे चलते हैं। फिल्म कॉन्टेजियन 2011 में बनी थी और फिल्म में दिखाए गए हालात तकरीबन आज जैसे ही हैं लेकिन ऐसा नहीं है कि अमेरिका को पहले ऐसी स्थिति के बारे में कोई भान नहीं था। थोड़ा और पीछे चलकर हम पहुंचते हैं 2005 में, जब अमेरिका के राष्ट्रपति जॉर्ज डल्यू बुश गर्मियों की छुट्टियों में टैक्सस स्थित अपने रैंच में थे। उस दौरान आई एक किताब ‘द ग्रेट इंफ्लुएंजा’ की एक एडवांस प्रति राष्ट्रपति के पास पहुंची। किताब के लेखक थे इतिहासकार जॉन एम बैरी। 2004 में प्रकाशित यह किताब 1918 में दुनिया भर में फैले स्पैनिश फ्लू के बारे में थी, जिसमें लाखों लोग मारे गए थे। बुश ने पढऩा शुरू किया तो बिना खत्म किए रख नहीं पाए। जब वह वापस वॉशिंगटन लौटे तो आंतरिक सुरक्षा मामलों की शीर्ष सलाहकार फ्रैन टाउनसैंड को तलब किया और कहा कि उन्हें भी यह किताब पढऩी चाहिए। यहीं से शुरुआत हुई अमेरिका द्वारा किसी महामारी से निपटने की विस्तृत योजना के निर्माण की। आज जिन नियमों का पालन अमेरिका में किया जा रहा है उनकी जमीन पंद्रह साल पहले बुश के शासनकाल में तैयार की गई थी। अमेरिकी चैनल एबीसी न्यूज ने फ्रैन टाउनसैंड के हवाले से कहा है कि बुश किसी महामारी की आशंका को लेकर इतने गंभीर थे कि इस मुद्दे को उन्होंने खत्म नहीं होने दिया। बताते हैं कि बुश के कई सलाहकारों ने महामारी को लेकर बुश की राय को बहुत महत्व भी नहीं दिया था लेकिन बुश अड़े रहे और नवंबर के महीने में उन्होंने एक विस्तृत प्रस्ताव रखा।
इसकी तैयारियों के लिए उन्होंने सात अरब डॉलर की राशि अलग रखी और अपने सचिवों से इसको गंभीरता से लेने को कहा। उस समय बुश ने चेतावनी दी थी कि अगर हम महामारी का इंतजार करेंगे तो वह हमें तैयारी का समय नहीं देगी। ओबामा के शासनकाल में महामारी से निपटने के लिए एक प्लेबुक तैयार की गई थी कि महामारी फैले तो क्या-क्या कदम उठाए जाएं? महामारी के मामले को नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल से जोड़ा गया था और उसके लिए काउंसिल में हेल्थ यूनिट बनाई गई थी। यह प्लेबुक 2016 में इबोला महामारी के मद्देनजर तैयार की गई थी लेकिन पोलिटिको के अनुसार ट्रंप प्रशासन ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। इतना ही नहीं, 2018 में ट्रंप प्रशासन ने नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल की हेल्थ यूनिट को ही भंग कर दिया जिसकी जिमेदारी ऐसी किसी महामारी में लीड करने की थी। कुल मिलाकर, ओबामा के समय बनी इस प्लेबुक को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। 2019 में ट्रंप प्रशासन ने किसी ऐसी महामारी की आशंका को ध्यान में रखते हुए ट्रेनिंग का सिलसिला शुरू किया और न्यूयार्क टाइस के अनुसार इस ट्रेनिंग में कई परिदृश्य ऐसे थे जो आज बिल्कुल हूबहू अमेरिका के सामने हैं। कहते हैं कि उस समय कल्पना की गई थी कि वायरस चीन से आएगा और अमेरिका में मेडिकल सप्लाई की भारी कमी रहेगी। यह सब आज हम अपने सामने घटित होता हुआ देख रहे हैं। ऐसी तैयारियों के बावजूद कोरोना का कहर रत्ती भर भी थामा नहीं जा सका तो इसके लिए आलोचक ट्रंप को जि़मेदार ठहरा रहे हैं, जिन्होंने मार्च के पहले हफ्ते में कोरोना को डेमोक्रेटिक पार्टी का ‘होक्स’ करार दिया था। अब तक ट्रंप अपने व्यवहार में काफी बदले हैं लेकिन अमेरिका को इस बीच काफी नुकसान हो चुका है,
जे. सुशील
(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)