सुरक्षा में सेंध और सियासत

0
197

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी के घर की सुरक्षा में सेंध का मामला उस वक्त उजागर हुआ जब राज्यसभा में एसपीजी संशोधन बिल पर चर्चा हो रही रथी। सियासी गरमी के बीच बिल तो कांग्रेस के वाक आउट के चलते पास हो गया लेकिन इस पूरे प्रकरण ने सवाल जरूर कई खड़े कर दिए। वैसे विशिष्ट जनों की हाईटेक सुरक्षा में सेंध का मामला गंभीर बात है, इसकी पूरी कैफियत सार्वजनिक की जानी चाहिए। हालांकि गृहमंत्री अमित शाह ने मामले की जांच के आदेश दिए हैं और अफसरों को निलम्बित भी कर दिया है। इस सबके बीच सुरक्षा में चूक का मामला इसलिए और गंभीर हो जाता है कि अभी हाल ही में मोदी सरकार ने वीआईपी सुरक्षा की समीक्षा की थी, जिसमें एसपीजी कवर प्राप्त गांधी परिवार को जेड सिक्योरिटी देने का निर्णय किया गया था। इसी के बाद से सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा की सुरक्षा सीआरपीएफ के हवाले धीरे-धीरे की जाने लगी थी। इसे राजनीतिक समीक्षा भी कांग्रेस की तरफ से कहा गया था। पर यह भी तथ्य इस परिवार से जुड़ा हुआ है कि आतंकी हमलों में इस परिवार ने इंदिरा गांधी और राजीव गांधी को खोया है।

इस लिहाज से भी सुरक्षा के सवाल पर समझौता नहीं किया जा सकता। इसी तथ्य को लेकर कांग्रेस हमलावर रही है। पर जो इस मामले में खटकने वाली बात है वो यह है कि क्या कोई बिना पूर्व सूचना के हाईप्रोफाइल सुरक्षा के घेरे में रहने वाले गांधी परिवार के किसी सदस्य से बिना किसी जांच प्रक्रिया से गुजरे मिल सकता है? क्या सीआरपीएफ इतनी गैर जिम्मेदार हो सकती है कि बिना किसी निर्देश के किसी को भीतर जाने की अनुमति प्रदान कर दे? ये सवाल इसलिए भी उठ रहे हैं कि यही सीआरपीएफ सिक्योरिटी कवर देश राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, रक्षामंत्री और गृहमंत्री को भी प्राप्त है। इन विशिष्ट जनों की सुरक्षा में सेंध के मामले अब तक सामने नहीं आये। तो क्या यह सिर्फ संयोग है? और यदि है भी तो इसकी जांच होनी चाहिए। सवाल यह भी अहम है कि जिसे बिना जांच पड़ताल के प्रियंका वाड्रा के घर में जाने दिया गया वो तो कांग्रेस का ही पुराना वर्कर है। तो क्या बिना पूर्व सूचना के पार्टी कार्यकर्ता भी सिक्योरिटी कवर प्राप्त गांधी परिवार के किसी सदस्य से मिल सकते हैं? शायद नहीं।

तो क्या यह कहीं से पूर्व नियोजित था? एक हफ्ते पहले यह मुलाकात मेरठ की पार्टी कार्यकर्ता की प्रियंका वाड्रा से हुई थी और वहां महासचिव के साथ सेल्फी ली गई थी। पर मामले का खुलासा ठीक एक दिन पहले हुआ और दूसरे दिन राज्यसभा में एसपीजी संशोधन बिल को पारित होना था। यह सिर्फ संयोग था या और कुछ? गृहमंत्री का यह कहना जायज है यदि वाकई सुरक्षा में चूक हुई भी थी तो इस बारे में उन्हें पत्र लिखा जा सकता था। मीडिया में मामले को ले जाने का क्या मतलब? संशोधन बिल के विरोध में कांग्रेसियों ने तो सदन से वाक आउट कर दिया लेकिन इसी के साथ देश के भीतर भी सुरक्षा को लेकर सार्वजनिक हुए घटनाक्रमों से सियासी गरिमा गिरी है। एसपीजी, यकीनन किसी के लिए भी स्टेटस सिंबल नहीं हो सकता? वैसे भी गांधी परिवार ने देश से बाहर रहने पर सैकड़ों बार एसपीजी कवर से परहेज किया है, जिसको लेकर हालांकि खूब सियासत भी हुई है। बहरहाल, सुरक्षा समीक्षा के बाद कोई निष्कर्ष सामने आता है और उस पर अमल होता है तो उसके परिणाम की भी तो जिम्मेदारी सरकार की ही होती हैं। इसलिए अच्छा होता अपनी सुरक्षा व्यवस्था में बदलाव को लेकर खामोश रहा जाता। तो बेवजह यह चर्चा का विषय नहीं बनता।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here