संयुक्तराष्ट्र संघ महासभा में नरेंद्र मोदी और इमरान खान के भाषण हो गए। मोदी सिर्फ 17 मिनिट बोले और इमरान लगभग 50 मिनिट खींच ले गए। यह खुशी की बात है कि उस विश्व-सभा में दोनों के बीच कोई वाग्युद्ध नहीं हुआ। मोदी ने अपनी बात कही और इमरान ने अपनी! मोदी ने एक बार भी कश्मीर या पाकिस्तान का नाम तक नहीं लिया, जैसे कि कश्मीर में कुछ हुआ ही नहीं है लेकिन इमरान ने कश्मीर का नाम 25 बार लिया और भारत का 17 बार !
क्यों नहीं लेते, वे इतनी बार ? किस पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के सामने कश्मीर इतनी बड़ी चुनौती बनकर कभी खड़ा हुआ? इमरान खान की बदकिस्मती है कि वे पहली बार प्रधानमंत्री बने और सिर मुंडाते ही ओले पड़ गए। उनकी अपनी राजनीति खटाई में पड़ गई। कई पाकिस्तानी अखबार और टीवी चैनल उनका मजाक उड़ा रहे हैं। उनके विरोधी उनकी पस्त हालत का मजा ले रहे हैं। खुद इमरान घबराए और पगलाए से लग रहे हैं।
वे विदेशियों के सामने ऐसी-ऐसी बातें बोल पड़ते हैं, जो कोई पाकिस्तानी प्रधानमंत्री कभी नहीं बोलना चाहेगा। उन्होंने यह कहने में कोई संकोच नहीं किया कि कश्मीर के सवाल पर दुनिया के देशों ने उनका साथ नहीं दिया। उन्होंने कह दिया कि पाकिस्तान में 30 हजार से ज्यादा आतंकवादी सक्रिय है। उन्होंने यह भी कह डाला कि उसामा बिन लादेन के मामले में अमेरिका से सहयोग करके पाकिस्तान ने भूल की। अलकायदा के आतंकियों को पाकिस्तानी फौज प्रशिक्षण दे रही थी।
उन्हें यह कहते भी कोई हिचक नहीं हुई कि यदि युद्ध हुआ तो पाकिस्तान को भारत हरा देगा। उन्होंने कहा हारने पर पाकिस्तान क्या करेगा? उसके पास परमाणु बम है। वह कब काम आएगा?
यदि इमरान यह सब नहीं कहते तो क्या कहते? सबको पता है कि यदि दोनों देशों के बीच परमाणु-युद्ध होगा तो किस देश का क्या हाल होगा? जहां तक कश्मीर का सवाल है, धारा 370 और 35 ए की वापसी के बारे में इमरान या किसी नेता या किसी देश ने एक शब्द भी नहीं कहा। याने वह कोई मुद्दा ही नहीं है।
अब सिर्फ एक ही मुद्दा है। वह यह कि कश्मीरियों पर से प्रतिबंध कब हटेंगे? उन पर से प्रतिबंध हटाने की मांग जितनी जोर से पाकिस्तान कर रहा है, उससे कहीं ज्यादा जोर से कई भारतीय पार्टियां कर रही हैं, अखबार कर रहे हैं, बौद्धिक लोग कर रहे हैं। खुद सरकार भी रोजाना दिलासा दे रही है। वह नहीं चाहती कि प्रतिबंध अचानक हटें और बेचारे निर्दोष कश्मीरी भाई-बहनों का खून बहने लगे, जैसा कि इमरान खान ने संयुक्तराष्ट्र संघ में दावा किया है।
अब संयुक्तराष्ट्र में बहस भी हो गई। इमरान का फर्ज भी अदा हो गया। अब सही समय है, जबकि कश्मीरियों पर से प्रतिबंध उठ सकते हैं और उनसे और उनके नेताओं से दिल खोलकर बात की जा सकती है। यदि अब इमरान थोड़ा संयम दिखाएं और ‘कश्मीरियों के राजदूत’ नहीं, बल्कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री की हैसियत में नरेंद्र मोदी से बात करें तो बात हो सकती है लेकिन जैसा कि उन्होंने पहले वादा किया था, वे आतंकवाद के खिलाफ ईमानदारी से अभियान चलाएं और अपनी फौज को भी अपने साथ ले लें तो एक नए दक्षिण एशिया का सूत्रपात हो सकता है।
डॉ. वेदप्रताप वैदिक
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं