श्रीहनुमद जन्म महोत्सव

0
967

‘रामदूत अतुलित बल धामा। अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।।’
श्रीहनुमद आराधना से होगी मनोकामना पूरी

‘अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता। अस बर दीन जानकी माता।।’ वानरराज केसरी और माता अंजनीदेवी के पुत्र भगवान श्री हनुमान जी का जन्म महोत्सव वर्ष में दो बार मनाने की पौराणिक मान्यता है। प्रथम चैत्र शुक्लपक्ष की पूर्णिमा तिथि तथा द्वितीय कार्तिक कृष्णपक्ष की चतुर्दशी तिथि के दिन मनाया जाता है। हनुमान जयन्ती के पर्व पर श्रीहनुमानजी की भक्तिभाव, श्रद्धा व आस्था के साथ पूजा-अर्चना करने का विधान है। प्रख्यात ज्योर्तिविद् श्री विमल जैन ने बताया कि इस बार चैत्र शुक्लपक्ष की पूर्णिमा तिथि गुरुवार, 18 अप्रैल को सांय 7 बजकर 27 मिनट पर लेगेगी, जो कि शुक्रवार, 19 अप्रैल को सायं 4 बजकर 42 मिनट तक रहेगी। स्नान-दान-व्रतादि की पूर्णिमा शुक्रवार, 19 अप्रैल को होगा।

पूजा का विधान- ज्योतिर्विद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि प्रातः ब्रह्मा मूहूर्त में अपने आराध्य देवी-देवता की पूजा-अर्चना करके व्रत का संकल्प लेना चाहिए तथा श्रीहनुमान जी के विग्रह को चमेली के तेल या शुद्ध देशी घी एवं सिन्दूर से श्रृंगारित करके विभिन्न पुष्पों व तुलसी दल की माला से सुशोभित करना चाहिए। नैवेद्य में बेसन व बूंदी का लड्डू, पेड़ा एवं अन्य मिष्ठान्न व भींगा हुआ चना, गुण तथा नारियल एवं ऋतुफल आदि अर्पित कर तत्पश्चात धूप-दीप के साथ उनकी विधि-विधानपूर्वक पूजा-अर्चना करके श्रीहनुमानजी की आरती करनी चाहिए। भगवान श्रीहनुमानजी की विशेष अनुकम्पा प्राप्त करने के लिए “ऊँ श्री हनुमते नमः” मन्त्र का जप तथा रात्रि जागरण करना चाहिए। उनकी महिमा में विभिन्न स्तुतियां, श्री हनुमान चालीसा, श्री सुंदरकांड, श्री हनुमत सहस्त्रनाम का पाठ तथा श्रीहनुमानजी से सम्बन्धित मंत्रों का जप अदि करना विशेष पुण्य फलदायी रहता है।

पौराणिक मान्यता – ज्योतिर्विद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि श्रीहनुमान जी के विराट स्वरूप में इन्द्रदेव, सूर्यदेव, यमदेव, ब्रह्मदेव, विश्वकर्मा जी एवं ब्रह्मा जी की शक्ति समाहित है। शिवमहापुराण के अनुसार पृथ्वी, जल, वायु, आकाश, सूर्य, चन्द्रमा, अग्नि व यजमान- ये आठ रूप शिवजी के प्रत्यक्ष रूप बतलाए गए हैं। श्रीहनुमान जी ब्रह्म स्वरूप भगवान शिव के ग्यारहवें अंश के रुद्रावतार भी माने गये हैं। श्रीहनुमान जी को अमरत्व का वरदान प्राप्त है। ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि एकाक्षर कोश के मतानुसार हनुमान शब्द का अर्थ है- ‘ह’ शिव, आनन्द, आकाश एवं जल। ‘न’ पूजन और प्रशंसा। ‘मां’ श्रीलक्ष्मी और श्रीविष्णु। ‘न’ बल और वीरता। भक्त शिरोमणि श्रीहनुमा जी अखण्ड जितेन्द्रियता, अतुलित बलधामता, ज्ञानियों में अग्रणी आदि अलौकिक गुणों से सम्पन्न होने के कारण देवकोटी में जाने जाते हैं।

विशेष – जिन्हें जन्मकुण्डली के अनुसार शनिग्रह की दशा, महादशा अथवा अन्तर्दशा का प्रभाव हो तथा शनिग्रह की अढ़ैया या साढ़ेसाती का प्रभाव हो, उन्हें आज के दिन व्रत रखकर श्रीहनुमानजी की विशेष पूजा-अर्चना करनी चाहिए। आज के दिन व्रत रखने से भगवान श्री हनुमान जी की विशेष कृपा तो मिलती ही है साथ ही रोगों से छुटकारा एवं संकटों का निवारण भी होता है। जैसे कि श्रीहनमान चालीसा में वर्णित है- संकट कटै मिटै सब पीरा। जो सुमिरै हनुमत बलवीरा।। ऐसी मान्यता है कि श्रीहनुमान जी अपने भक्तों को शुभ मंगलकल्याण व आशीर्वाद प्रदान करते हैं जिससे उनके जीवन में सुख-समृद्धि का सुयोग बना रहता है।।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here