शिक्षा जगत में देखते ही देखते एक बड़ा बदलाव आया है। धीर-धीरे पढऩ-पढ़ाने के तरीके नया रूप ले लेंगे। अब शिक्षक यह नहीं कह पाएगा कि मेरा काम केवल कक्षा में जाकर पढ़ाना या पुस्तकालय में बैठकर पढऩा है। अब तो शिक्षक को भी प्रबंधक होना पड़ेगा। पिछले दिनों एक प्रोफेसर ने मुझसे कहा, अब हम शिक्षा की मार्केटिंग कर रहे हैं। हमें अपन
संस्थान के लिए विद्यार्थियों को लाना पड़ता है। मतलब यह शिक्षा की भी मार्केटिंग का युग है। रामजी ने अपना सैद्धांतिक ज्ञान वशिष्ठ जी के गुरुकुल में जाकर प्राप्त किया था। फिर विश्वामित्र खुद आए और राम-लक्ष्मण को ले गए। अब शिक्षकों को विश्वामित्र की ही भूमिका में लगना पड़ेगा कि जाकर अपने विद्यार्थी को लाओ। विश्वामित्र ने राम-लक्ष्मण को शस्त्र विद्या सिखाई थी। आज के समय ये ही शस्त्र यंत्र बनकर विद्यार्थियों के भीतर उतारना पड़ेंगे। मनुष्य के शरीर में दो यंत्र होते हैं। एक हमारे कंट्रोल में है, हमारी इच्छा से चलता है। दूसरा अपनी इच्छा से चलता है, जो है मन। जब यह चलता है तो हमारा स्वयं पर से ही नियंत्रण चला जाता है। तो अपनी शिक्षा में इस बात का भी ज्ञान रखें कि मन नाम का यह यंत्र कितना हमसे चलता है और कितना हमें चलाता है। तब जाकर पढऩे और पढ़ाने वालों को अपना लक्ष्य प्राप्त हो पाएगा।