अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का रास्ता साफ होने के बाद दिल्ली से लेकर यूपी तक हलचल बढ़ गई है। उम्मीद है कि अगले आम चुनाव यादि 2024 तक भव्य मंदिर का निर्माण हो चुका होगा। श्रद्धालु बहुप्रतीक्षित अपने रामलला का दर्शन कर सकेंगे। ऐसा माना जा रहा है कि चुनाव के दिनों में इसकी शुरुआत से भाजपा को सियासी लाभ मिल सकता है। यूपी की योगी सरकार भी अपनी घोषित योजनाओं को आकार देने में जुट गई है। सरयू किनारे श्रीराम की प्रतिमा और म्यूजियम समेत संबंधित अन्य निर्माण के सिलसिले में सरकार 497 करोड़ रुपये मंजूर कर चुकी है। इसके पहले से एक अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा पर काम शुरू हो गया है। गुप्तार घाट जहां से श्रीराम ने अपनी लीला समेटने का काम किया था, उसके संवारने का काम चल रहा हैं इसके अलावा भी अन्य घाटों के सौन्दर्यीकरण पर मोदी सरकार ध्यान दे रही है।
वैसे भी सुप्रीम कोर्ट से आये अंतिम फैसले के बाद निजी क्षेत्र की भी निवेश हेतु चिजगी है। मोटे तौर पर जानकृारी सामने आई है कि तकरीबन एक दर्जन रिजाट्र्स और होटल खोले जाने के लिए अयोध्या के आसपास निजी क्षेत्र की निर्माण कंपनियां जगह चिन्हित कर रही हैं। स्वाभाविक है निकट भविष्य में अयोध्या यूपी में ही नहीं, देश के भीतर भी पर्यटन का बहुत बड़ा केन्द्र बनने वाला है। अयोध्या की चौरासी कोसी परिक्रमा परिक्षेत्र के अंतर्गत सिद्धोंए महापुरुषों और त्रेताकालीन स्मृति स्थलों के विकास पर भी आने वाले दिनों में ध्यान दिया जाने वाला है। इस परिक्रमा परिक्षेत्र में बाराबंकी, अंबेडकरनगर, गोण्डा और बस्ती शामिल है। अंदाजा लगाया जा सकता है कि संबंधित धार्मिक महत्व के स्थलों का विकास होने पर उसका पर्यटन की दृष्टि से कितना बड़ा रोल रोजगार के रूप में होगा।
सरकार पर इस व्यापक परिप्रेक्ष्य में भी आगे बढऩे की सोच रही है। विवाद के खात्मे के बाद विकास की लंबी लकीर खींची जाएगी, यह उम्मीद की जा सकती है। जहां तक संतुलित एवं न्यायपूर्ण फैसले पर भी अभी कुछ लोगों को आपत्ति है तो उसके अपने निहितार्थ हैं। मसलन मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड अपनी बैठक में यह फैसला करेगा कि सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के खिलाफ पुनर्विचार याचिका या क्यूरेटिव पिटीशन दाखिल की जानी है अन्यथा नहीं, क्योंकि फैसले के तत्काल बाद अपनी पहली प्रतिक्रिया में जफरयाब जिलानी ने नाखुशी जताई थी। हालांकि इस मामले में वो सुन्नी वक्फ बोर्ड की तरफ से वकील थे और बोर्ड के अध्यक्ष ने यह साफ कर दिया है कि उनकी तरफ से कोई पुनर्विचार याचिका दायर नहीं की जाएगी। जहां तक कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष को बाबरी मस्जिद के एवज में अयोध्या के भीतर कहीं पांच एकड़ जमीन दिये जाने का आदेश सरकार को दिया है तो उसे लेने में कोई हर्ज नहीं है।
इनकार करने का मतलब मुस्लिम हितों की ही अनदेखी करना है। यहां उल्लेखनीय है कि असुद्दीन ओवैसी ने ऐसी किसी पेशकश को खैरात बताया है तो उनकी राय में ठुकरा दिया जाना चाहिए। ऐसे ही एक पूर्व देश के मुख्य सूचना आयुक्त हैं, उन्हें भी फैसला तर्क संगत नहीं लगता। लेकिन इत्मिनान की बात है लगभग हर तबके ने फैसले को संतुलित बताया है। खुद मुस्लिम उलेमाओं ने इसी भाव से सोमवार को लखनऊ में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिलकर उन्हें शुक्रिया अदा किया था। ऐसे संवेदनशील मसले पर फैसले को लेकर जो अनिश्चितता थी उसे योगी सरकार की चाक-चौबंद निगरानी ने फिजूल साबित कर दिया। इस पर 2010 में फैसला आया था तब सुप्रीम कोर्ट का विकल्प था लेकिन 9 नवंबर को आये फैसले के बाद तो संभावना भी नहीं रही। इसीलिए आशंका थी। पर सब कुछ ठीक से गुजर गया। इसी के साथ अयोध्या अब विकास का केन्द्र बनने की तैयारी में है।