वहां के सांड व मुर्गे भी नियंत्रण में

0
440

जब भी तोताराम सामान्य नहीं होता तो हमें ‘मास्टर’ की जगह ‘भाई साहब’ या ‘आदरणीय’ संबोधित करता है। हम भी उसका यह संबोधन सुनते ही सावधान हो जाते हैं जैसे कि ‘भाइयों, बहनों’ सुनते ही श्रोतागण। आते ही ब्रेकिंग न्यूज़ लीक करते हुए बोला- भाई साहब, गुड न्यूज! हमने भी बनावटी उत्सुकता दिखाते हुए पूछा- क्या जन्मभूमि की पूरी ज़मीन राम-जन्मभूमि न्यास को मिल गई? बोला- यह भी कोई न्यूज है। यह तो अब चंद दिनों का मामला बचा है। तीन तलाक और धारा 370 के बाद अब इसी का नंबर है। बस, कश्मीर में हालात सामान्य हुए, संसद बैठी और घोषणा हुई ही समझो। अब तो हमारी उत्सुकता वास्तव में ही बढ़ गई, पूछा- तो क्या सरकार ने अति संवेदनशीलता दिखाते हुए हमारे विलंब से दिए एरियर पर ब्याज की घोषणा कर दी ? बोला- मास्टर, तू भी मोदी जी तरह हर बात में कांग्रेस को कुचरने का मौका निकालने की तरह हर महान विचार की हवा निकालने में माहिर है। अच्छा भले मूड का सत्यानाश कर देता है। बात को सीधे आसमान से धरती पर ला पटकता है।

कहां तो मैं लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की बात करने वाला था और कहां एरियर के ब्याज जैसी तुच्छ बात ले आया। हमने कहा-ठीक है, अब आप हमें अपनी गुड न्यूज से हमें लाभान्वित करें।बोला- यह है यूरोप का लोक तंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का जलवा। तुझे याद है, दो महीने पहले फ्रांस में मोरिस नाम के एक मुर्गे पर उसके पड़ोस में रहने वाले एक व्यक्ति ने ध्वनि-प्रदूषण का केस दायर कर दिया गया था? हजारों लोग मोरिस की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पक्ष में लामबंद हो गए। जज ने फैसला दे दिया है कि मोरिस को अपने सुर में गाने का पूरा अधिकार है। बांग देने का पूरा हक है। मतलब कि अब उसके बांग देने पर कोई रोक नहीं लगाई जा सकती। मुर्गे मोरिस पर मुक़दमा करने वाले लुई से मोरिस के मालिक को परेशान करने के एवज में 100 डॉलर का हरजाना भी दिलवाया गया।

हमने कहा- इसमें क्या बड़ी बात है? उन्होंने तो एक मुर्गे को अपने सुर में गाने का अधिकार दिया है जबकि हमारे यहां तो सबको यह अधिकार है कि वह अपने सुर में गा ही नहीं, लाउडस्पीकर और डी.जे. लगाकर कभी भी, किसी भी समय, कहीं भी और किसी के भी स्वर में फुल वॉल्यूम में बजा सकता है। चाहे तो सपना चौधरी के नृत्य पर वन्देमातरम गा सकता है। यह तो केवल लोकतंत्र और अभिव्यक्ति का मामला ही है। हमारे यहां तो उसमें आस्था, धर्म, संस्कृति, समाज, उत्सव, त्यौहार, राष्ट्र और गर्व जैसे और भी कई अघोषित और अव्याख्यायित आधार और तर्क भी शामिल हैं जिनके नाम पर किसी की भी नींद हराम कर सकते हो। हमारे यहां तो जागरण करने वाले का ऊंचा स्वर ही भक्ति का प्रमाण और स्वर्ग की गारंटी है। आस्था के नाम पर कोई भी सांड सडक़ से संसद तक किसी को भी डरा और घायल कर सकता है। यहां तक की जान से मार सकता है। बोला-लेकिन विकसित देशों में चाहे सांड हों या मुर्गे सब नियंत्रण में हैं।

हमने कहा- उसका कारण है कि वहां कोई भी अवध्य नहीं है, न ही कोई दैवीय और अलौकिक। न ही कोई जानवर वोट बैंक बनाने और किसी और डराने के काम आता है। इसलिए वहां कोई भी समाज के लिए संकट और समस्या नहीं बनता। यहां भी देख लो भैंस, बकरी और गधे तक सडक़ों पर आवारागर्दी करते नहीं फिरते क्योंकि उन्हें कोई आस्थागत संरक्षण प्राप्त नहीं है। काम के न रहने पर कटने के लिए बेचे जा सकते हैं। बोला-हां, तुम्हारी इस बात में दम है। जानवरों की समस्या की तरह ध्वनि प्रदूषण के लिए भी डी.जे. और लाउड स्पीकर सब पर प्रतिबन्ध होना चाहिए। जिसे भी खुश होना है, जिसे भी गर्व का दौरा पड़े वह अपना कैसेट जेब में रखे, कान में उसका तार ठूंस ले और मटकाता रहे बीच सडक पर अपनी कमर। किसी को भी, किसी को चिढ़ाने और परेशान करने के लिए जानबूझकर कोई ख़ास नारा लगाने का, अधिकार भी नहीं होना चाहिए। मैं तो कहता हूँ यदि इस देश में लाउड स्पीकर पर प्रतिबन्ध लगा दिया जाए तो बहुत से समस्याएं हल हो जाएंगी। ये सब आस्था के ए.के . 47 हैं। हमने कहा- यह तो ठीक है लेकिन तब आस्था का आतंक फैलाकर चुनाव जीतने की रणनीति का क्या होगा? इससे तो एक साथ ही धर्म और लोक तंत्र दोनों खतरे में पड़ जाएंगे।

रमेश जोशी
(लेखक वरिष्ठ व्यंगकार हैं ये उनके निजी विचार हैं )

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here