मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोरा ने 25-30 साल बाद टी.एन. शेषन की याद ताजा कर दी। शेषन ने उस समय के उम्मीदवारों पर जबर्दस्त लगाम लगाने का काम किया था। वे उम्मीदवारों के आपत्तिजनक भाषणों को रेकार्ड करके प्रचारित करते थे और यह धमकी भी देते रहते थे कि वे उन्हें चुनाव लड़ने से रोक देंगे लेकिन अरोरा ने वह किया है, जो आज तक उनके पहले के 22 मुख्य चुनाव आयुक्तों ने नहीं किया।
उन्होंने चार नेताओं- योगी आदित्यनाथ, आजम खान, मायावती और मेनका के चुनाव-प्रचार पर तीन दिन और दो दिन का प्रतिबंध लगा दिया है। ये चारों उम्मीदवार अब उक्त अवधि में न तो सभा कर सकेंगे, न जुलूस निकाल सकेंगे, न टीवी चैनलों और अखबारों को इंटरव्यू या बयान दे सकेंगे और न ही सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर सकेंगे।
चुनाव अभियान के दौरान हर उम्मीदवार चाहता है कि उसके हर मिनिट का इस्तेमाल प्रचार के लिए हो। उस पर दो और तीन दिन का प्रतिबंध तो अपने आप में सजा है और उसके प्रतिद्वंदी को अचानक मिला इनाम है। इसके अलावा बेलगाम और अश्लील बातें कहने से उनकी छवि भी खराब होती है। यह भी सजा है। यहां किस उम्मीदवार ने क्या कहकर ‘आदर्श आचार संहिता’ का उल्लंघन किया है, यह बताने की जरुरत नहीं है। उसकी काफी खबरें बन चुकी हैं। इसी तरह सर्वोच्च न्यायालय ने राहुल गांधी से भी सफाई मांगी है कि उन्होंने यह झूठ क्यों बोला कि अदालत ने भी चौकीदार (मोदी) को चोर करार दिया है।
वास्तव में चुनाव आयोग को चाहिए था कि राहुल पर महिने भर पहले ही प्रतिबंध लगा देता। सर्वोच्च न्यायालय और संसद को चाहिए कि वह चुनाव आयोग को यह अधिकार भी दे कि वह किसी भी उम्मीदवार को, यदि वह आचार संहिता का गंभीर उल्लंघन करे तो उसे वह चुनाव-दंगल से बाहर कर सके और भविष्य में भी उस पर प्रतिबंध लगा सके। इस तरह के प्रतिबंध 1987 में सर्वोच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र के रमेश प्रभु और बाल ठाकरे पर लगाए थे लेकिन उसमें आठ साल लग गए थे। ऐसे मामलों का फैसला तत्काल होना चाहिए ताकि बड़े से बड़ा नेता भी मर्यादा-भंग न कर सके।
डॉ. वेद प्रताप वैदिक
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं