प्रशांत भूषण को सुप्रीम कोर्ट ने अदालत की अवमानना मामले में एक रुपये जुर्माना लगाया है और जुर्माने की रकम न देने पर तीन महीने कैद और तीन साल के लिए लाइसेंस सस्पेंड करने की बात कही गई है। मौजूदा और रिटायर चीफ जस्टिस के खिलाफ प्रशांत के ट्वीट को अवमानना माना गया और उन्हें दोषी करार दिया गया। सुप्रीम कोर्ट ने एक रुपये का जो जुर्माना लगाया, इससे यह बहस तेज हो गई कि आखिर इस सजा के मायने क्या हैं। सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट प्रशांत भूषण ने जून के आखिरी हफ्ते में दो ट्वीट किए थे। एक में प्रशांत ने मौजूदा चीफ जस्टिस के बाइक पर बैठने को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणी की थी तो दूसरे में लोकतंत्र को नष्ट करने की बात कहते हुए चार पूर्व चीफ जस्टिस के खिलाफ आपत्तिजनक आरोप लगाए थे। दोनों ही ट्वीट्स पर सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान लिया था और प्रशांत भूषण को कंटेप्ट का दोषी करार दिया था। हालांकि सजा पर बहस के दौरान अटॉर्नी जनरल ने कोर्ट को बताया कि प्रशांत भूषण के ट्वीट को सूचनात्मक तरीके से लेना चाहिए। ट्वीट की सत्यता की जांच किए बगैर उसमें लिखी बात के लिए कैसे सजा दी जा सकती है?
प्रशांत ने जो कुछ भी कहा है, वैसे बयान सुप्रीम कोर्ट के कई रिटायर्ड जजों ने भी दिए हैं। ऐसे में प्रशांत को चेतावनी देकर छोड़ा जाना चाहिए। सजा पर बहस के दौरान प्रशांत भूषण ने कहा कि उन्होंने जो कहा है, उस पर वे अडिग हैं। उन्होंने कहा कि वे माफी मांगते हैं तो वह निष्ठाहीन माफीनामा होगा और वह उनकी अंतरात्मा के साथ अवमानना हो जाएगी। महात्मा गांधी का उद्धरण कोट करते हुए उन्होंने कहा कि न उन्हें दया चाहिए और न ही वे इसकी मांग कर रहे हैं, बल्कि सजा के लिए वे खुशी-खुशी तैयार हैं। प्रशांत भूषण के वकील राजीव धवन ने सवाल उठाया कि कई रिटायर्ड और सिटिंग जजों ने भी इस तरह के बयान दिए हैं। सिटिंग जजों ने तो प्रेस कॉन्फ्रेंस कर ज्यूडिशरी में लोकतंत्र के दांव पर होने की बात कह दी थी। पर सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि प्रशांत के बयान की प्रेस कॉन्फ्रेंस से तुलना ठीक नहीं है। समानता का सिद्धांत वहां लागू नहीं होता, जहां दूसरे का काम परमिशेबल न हो। लेकिन एक सवाल अभी भी कायम है कि कोई भी शख्स अगर जज पर आरोप लगाता है, तो क्या वह पब्लिक डोमेन में जा सकता है।
इसकी प्रक्रिया या प्रोटोकॉल क्या हो? प्रशांत भूषण के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने खुद कहा है कि ये बड़ा सवाल सामने आया है। इसका परीक्षण चीफ जस्टिस द्वारा गठित की जाने वाली बेंच करेगी। अभिव्यक्ति की आजादी की सीमाओं के बारे में अदालत ने कहा, प्रशांत भूषण ने पूरे सुप्रीम कोर्ट की कार्यप्रणाली पर अटैक किया है। इसे सख्ती से डील नहीं किया जाता है तो राष्टÑीय प्रतिष्ठा और ख्याति प्रभावित होगी। स्वस्थ आलोचना गलत नहीं है, लेकिन अभिव्यक्ति की आजादी की सीमाएं हैं और उसे लांघकर संस्थान को बदनाम करने की इजाजत नहीं दी जा सकती है। अभिव्यक्ति की आजादी संविधान के अनुच्छेद-19 (1)(ए) में है और हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि अनुच्छेद-19 (2) में वाजिब रिस्ट्रिक्शन की बात भी है।
बहरहाल, प्रशांत को सजा पर सोशल मीडिया में एक शोर मचा कि आखिर एक रुपये का जुर्माना क्यों किया गया? यह तो हल्की सजा है। इसे समझने की जरूरत है। दरअसल क्रिमिनल कंटेप्ट ऑफ कोर्ट में अधिकतम 2 हजार रुपये जुर्माना या छह महीने तक कैद या फिर दोनों हो सकती है। ऐसे में ये कहना कि एक रुपये की सजा कम है तो क्या अधिकतम दो हजार रुपये की सजा काफी होगी? प्रशांत भूषण के बारे में खुद अटॉर्नी जनरल ने कहा कि जनहित के तमाम मामले प्रशांत भूषण सुप्रीम कोर्ट लाए। ऐसे में तमाम पहलुओं को ध्यान में रखते हुए अदालत ने उन पर सजा के तौर पर एक रुपये का जुर्माना लगाया। सख्त सजा देने के बजाय सुप्रीम कोर्ट ने उदारवादी रवैया दिखाया और संकेत दिया कि सुप्रीम कोर्ट का सम्मान जरूरी है, चाहे सामने वाला कोई भी हो।
राजेश चौधरी
(लेखक एक स्तंभकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)