मूंछ-भत्ता और पूंछ-भत्ता

0
311

आज सुबह-सुबह जैसे ही बरामदे में खड़े गुनगुने पानी से मुंह धो रहे थे तो कमर में फेंटा, सिर पर चूनड़ी का साफा बांधे, अंगरखे और चूड़ीदार पायजामे में घुसी हुई एक पांच फुटा मानवाकृति बरामदे के पास आकर रुकी और मूंछें ऐंठते हुए बोली- ठाकुर रमेश सिंह जी हैं?

आवाज तो कुछ जानी-पहचानी-सी लगी लेकिन इतने शाही मेकअप ने हमें कन्फ्यूज कर दिया, कहा- घणी खम्मा बापजी, नाम तो हमारा भी रमेश ही है लेकिन इस ‘ठाकुर’ और ‘सिंह’ से हमारा कोई वास्ता नहीं है। फिर शेर/सिंह के तो आपकी तरह बड़ी-बड़ी मुड़ी हुई मूंछें होती हैं। हम तो सफाचट हैं।

तभी उस आकृति ने झट से अपनी मूंछे उतारकर हमारी हथेली पर रखते हुए कहा- कोई बात नहीं, ये लगा ले। हम दस रुपए में दूसरी ले लेंगे।

गज़ब! यह तो तोताराम निकला।

हमने कहा- तोताराम यह क्या नाटक है?

बोला- नाटक क्या मैं ही करता हूं? सारे देश और दुनिया के सेवक नाटक ही तो कर रहे हैं।

हमने कहा- करते होंगे लेकिन वे नकली मूंछे तो नहीं लगाते। जब वीरता क्षीण होती है तो व्यक्ति मूंछों से काम चलाता है। राम और कृष्ण तो मूंछें नहीं रखते थे लेकिन वीरता में किससे कम थे? दुनिया के बड़े-बड़े जनरल भी क्लीन शेव्ड रहे हैं। वीरता के ठेकेदार केवल मूंछों पर ताव दे रहे हैं और बड़े बोल बोल रहे हैं। नीची जाति वालों की मूंछें रखने पर पिटाई करते हैं। तुझे पता है मूंछ-प्रजाति वाले एक अधिकारी ने अपने एक मातहत को इसलिए सस्पेंड कर दिया कि उसने मूंछें रखी थीं और अपनी मूंछों पर ताव दे रहा था।

बोला- कुछ प्रोटोकॉल भी तो होता है।

एक बार छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमनसिंह मोदी जी की अगवानी करने के लिए बस्तर के कलेक्टर अमित कटारिया के साथ हवाई अड्डे पहुंचे। युवा कलेक्टर धूप का चश्मा लगाए हुए थे। कोई खुद हमसे स्मार्ट लगे यह किसी को कैसे बर्दाश्त हो सकता और विशेषरूप से खुद को ओवर स्मार्ट समझने वाले व्यक्ति के लिए। इसी सिद्धांत के आधार पर कभी भी नायिका से अधिक सुन्दर अभिनेत्री को सहायक नायिका नहीं बनाया जाता। तो मोदी जी ने उस कलेक्टर से पूछा- ‘मिस्टर दबंग कलेक्टर, आप कैसे हैं’? और फिर मुख्यमंत्री के लिए अपने सुरक्षित भविष्य को ध्यान में रखते हुए उस युवा अधिकारी को कम से कम चेतावनी देना तो जरूरी हो जाता है। सो उन्होंने वही किया।

हमने कहा- लेकिन तुझे हमारे सामने प्रोटोकॉल का यह उल्लंघन क्यों किया? हालांकि हम तुझसे कोई स्पष्टीकरण नहीं मांगेंगे फिर भी इतना तो जानने की इच्छा है ही कि आज मूंछों का यह शौक तुझे कैसे चर्राया?

बोला- भाई साहब, सब मोदी जी और रमन सिंह जैसे नहीं होते। कुछ लोग बबलू कुमार जैसे भी होते हैं।

हमने पूछा- यह बबलू कुमार कौन है?

बोला- ये आगरा के एसएसपी हैं जिन्होंने अपने हलके के एक दारोगा हरेंद्रपाल सिंह की मूछों से प्रभावित होकर उनके लिए एक सौ रुपया ‘मूंछ-भत्ता’ स्वीकृत कर दिया।

हमने कहा- लेकिन तुझे मोदी जी कुछ नहीं देने वाले। हां, यदि तू पूंछ रख ले तो शायद किसी भत्ते या लाभ की उम्मीद हो सकती है। यह समय मूंछ ऐंठने का नहीं, पूंछ हिलाने का है।

बोला- लेकिन आदमी की पूंछ तो कभी की झड़ चुकी। जब मूंछ की जरूरत नहीं होगी तो वह भी झड़ जाएगी।

हमने कहा- आजकल पूंछ और मूंछ साक्षात कम और प्रतीकात्मक अधिक होती हैं। जैसे किसी नेता की अनावश्यक हां में हां मिलाना, जय-जयकार करना, उसके हर चुटकुले पर लोटपोट हो जाना, उसके हर कार्यक्रम को जनहितकारी बताना पूंछ हिलाना नहीं तो क्या है? और किसी भी ऐरे-गैरे को किसी भी पद पर बैठा दिया जाना पूंछ हिलाने का पुरस्कार नहीं तो क्या है?

बोला- तब तो मेरी यह नकली मूंछ ही सही है। जब जिनपिंग से मिलूंगा तो उतार लूंगा और इमरान खान से मिलूंगा तो लगा लूँगा। यदि संयोग से कोई बबलू कुमार जैसा दिलवाला मिल गया तो कुछ उपलब्धि भी हो सकती है।

हमने कहा- तो फिर अबकी बार जब बाजार जाए तो दो-चार ‘पृथ्वीराज कट मूंछें’ हमारे लिए भी ले आना।

    
रमेश जोशी
लेखक देश के वरिष्ठ व्यंग्यकार और ‘विश्वा’ (अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी समिति, अमरीका) के संपादक हैं। ये उनके निजी विचार हैं। मोबाइल – 9460155700
blog – jhoothasach.blogspot.com
Mail – joshikavirai@gmail.com

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here