मुखर जेटली का मौन होना

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मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में वित्त मंत्री रहे अरुण जेटली का शनिवार को लम्बी बीमारी के बाद निधन हो गया और रविवार को निगम बोध घाट पर अंतिम संस्कार हुआ। सुषमा स्वराज के बाद यह भाजपा के लिए बड़ी क्षति है। पार्टी के रणनीतिकार के तौर पर वो खास चेहरा थे। विद्यार्थी परिषद् से शुरू हुआ उनका करियर डीयूयसयू के अध्यक्ष पद से होते, एमरजेंसी में 19 महीने जेल रहे फिर अटल आडवाणी के मार्गदर्शन में मंत्री बने। 2004 से लेकर 2013 तक राज्य सभा में बतौर नेता विपक्ष भाजपा के लिए एक एसेट थे, इसमें दो राय नहीं। यूपीए की सरकार में उनकी मुखरता लाजवाब थी। गुजरात दंगों से जुड़े मामलों में नरेंद्र मोदी के लिए संकटमोचक भी थे। 2014 में सरकार बनी तो अरुण जेटली मोदी कैबिनेट का बड़ा चेहरा बनकर उभरे।

नोटबंदी, जीएसटी और जनधन योजना जैसे महत्वपूर्ण फैसलों में उनके अहम् योगदान को जरूर याद रखा जाएगा।वो हरदिल अजीज थे। सदन में विरोधियों को बेजोड़ तर्कों से निरुत्तर कर देते थे लेकिन सेशन के बाद जब सेन्ट्रल हाल में होते तब सभी के साथ हंसी मजाक में मुब्तला हो जाते ऐसी मिलनसार शख्सियत थी उनकी। जहां तक उनकी विद्वता का सवाल है तो कानूनी मामलों में उनकी विशेषज्ञता के साथ हिंदी और अंग्रेजी भाषा पर समान पकड़ भाजपा के लिए एसेट के तौर पर थी। प्रधानमंत्री से लेकर दूसरी पार्टियों के नेताओं तक सभी ने उन्हें खुले दिल से याद किया ओर श्रद्धांजलि दी। इसलिए कि अरुण जेटली सभी के लिए बतौर व्यक्ति सहज सुलभ और पसंदीदा थे। विषय पर उनकी पकड़ विरोधियों को भी अचंभित कर देती थी।

पेशे से वकील जेटली प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पहले कार्यकाल में उनकी कैबिनेट का महत्वपूर्ण हिस्सा थे। उनके पास वित्त और रक्षा मंत्रालय का प्रभार था और सरकीर के लिए वह संकटमोचक की भूमिका में रहे। खराब स्वास्थ्य के कारण जेटली ने 2019 का लोकसभा चुनाव नहीं लड़ा। पिछले साल 14 मई को एम्स में उनके गुर्दे का प्रत्यारोपण हुआ था। उस समय रेल मंत्री पीयूष गोयल को उनके वित्त मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई थी। पिछले साल अप्रैल की शुरुआत से ही वह कार्यालय नहीं आ रहे थे और वापस 23 अगस्त 2018 को वित्त मंत्रालय आए। लंबे समय तक मधुमेह रहने से वजन बढऩे के कारण सितंबर 2014 में उन्होंने बैरिएट्रिक सर्जरी कराई थी। पीएम नरेंद्र मोदी के लिए वे बेहद अहम मौकों पर संक टमोचक बनकर उभरे।

शायद यही वजह थी कि एक बार उन्होंने अरुण जेटली को अनमोल हीरा करार दिया था। हालांकि 4 दशक का उनके सुनहरे राजनीतिक करियर पर खराब सेहत के चलते विराम लग गया। नरेंद्र मोदी को 2014 लोक सभा चुनाव के लिए जब पीएम कैंडिडेट घोषित किया गया था तो पार्टी के भीतर असहमतियों को थामने के लिए जेटली कई महीने तक पर्दे के पीछे ऐक्टिव रहे। कहा जाता है कि राजनाथ सिंह, शिवराज सिंह चौहान और नितिन गडकरी जैसे बड़े नेताओं को उन्होंने ही मोदी के नाम पर राजी करने का काम किया। पेशे से वकील अरुण जेटली अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में भी मंत्री रहे थे, लेकिन मोदी सरकार में उन्हें वित्त और रक्षा मंत्रालय कई महीनों तक एक साथ संभालने पड़े। शायद इसकी वजह पीएम मोदी का उन पर अटूट भरोसा था।

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