विगत दिवस जबलपुर में एक महिला ने अपने पति की बैट से इस बेरहमी से पिटाई की कि बेचारे को भयग्रस्त व लहुलुहान अवस्था में दर्दे जिगर ‘हिम्मते मर्दानी ब्रांड पत्नी’ की शिकायत करने थाने की शरण में जाना पड़ा। असल में इन दोनों ने प्रेम विवाह किया था, लेकिन बाद में यह विवाह रिश्तों की आह में बदल गया और दोनों एक ही मकान में बेगाने से अलग-अलग ऊपर नीचे रहने लगे। ऊपर पति तो नीचे पत्नी लेकिन पिटाई में पत्नी ऊपर हो गई और पति बेचारा नीचे ! नहीं तो अमूमन इसका उल्टा होता आया है कि पति ही पत्नी को पीटता है!
पति की पिटाई भी क्रिकेट के बल्ले से हुई? क्रिकेट खेलने के शौकीन होने से बैट-बॉल सुलभता से घर में ही उपलब्ध रहने का एक निगेटिव पहलू ये भी है! वैसे आजकल बल्ले से तो नेता भी अधिकारियों की पिटाई कर बल्ले-बल्ले करने में लगे हैं। लेकिन पति महाशय गलती कर गये। पत्नी से अनबन होने के बाद उन्हे सतर्क हो जाना था तो आज यह दुर्दशा नहीं हुई होती? वैसे बैट नहीं होता तो बेलन कहा जाता! वैसे गंगू को पति से सहानुभूति तो है कि उसके साथ ज्यादती हुई है। उसे हर ज्यादती वाले से सहानुभूति रहती है चाहे वह मॉब लिचिंग का शिकार कोई शख्स हो, कोई कथित नीची जाति का हो जिसकी सरेआम पिटाई कर दी गई हो या दलित जाति का कोई दूल्हा जो घोड़ी पर बारात ले जा रहा हो, को दबंगों ने उतार दिया हो या कोई स्त्री हो जिसके साथ दरिंदों ने ज्यादती की हो उसे सबसे सहानुभूति है। उसके अलावा वह कर क्या सकता है?
पति की बैट से जो पिटाई हुई है वह जेनरिक रूप से सही हुआ है। इससे पुरूष वर्ग में एक संदेश जायेगा कि भारत वर्ष में पिटने का विशेषाधिकार केवल पत्नी का नहीं है। उनका भी नम्बर आ सकता है। वैसे स्त्री सशक्तिकरण के इस युग में यह एक सही दिशा में देर से उठाया गया कदम है! जिस देश में रात-दिन क्रिकेट के बारे में ही बात होती है खेल की कम और खेल में हो रहे फिक्सिंग के महाखेल की ज्यादा! अखबारों में भी खबरें छायी रहती हैं कि सचिन के या धोनी के बल्ले ने विप़क्षी टीम को धोया, पानी पिलाया। तो पत्नी ने भी यदि पति परमेश्वर की बल्ले से पिटाई कर धोया या पानी पिला दिया तो ज्यादा चिंता की बात नहीं है! अरे भाई यही घटना यदि अमेरिका की होती तो बल्ले की जगह बेसबॉल का मुस्तंडा बैट होता?
पति की बल्ले से पिटाई होने से नारी सशक्तिकरण की वकालत करने वाले संगठन जरूर खुश हैं। उनकी तो बल्ले-बल्ले हो रही है कि जो काम वे सालों मंे नहीं कर पाये। वह एक नेक पत्नी ने पलक झपकते कर दी। ऐसी धुलाई कि पड़ोसी भी दहल गये। वहां सारे के सारे पड़ोसी अपनी पत्नियों से बड़े अच्छे से पेश आ रहे होंगे! यह तो ‘सौ सुनार की तो एक लुहार की’ वाली कहावत सिद्ध हो गई है। ‘मार के आगे तो भूत भी भागते हैं’ नहीं ‘पति भी भागते हंै’ अब कहावत को ऐसे बदल लेना चाहिये? दुनिया के पतियों अब आपके संगठित होने का समय आ गया है! नहीं तो अभी तक तो आप सचिन या धोनी के बल्ले से धुलाई करने के समाचार सुनकर ही बल्ले-बल्ले होते थे। खतरा है कि अब कहीं जबलपुर वाली जैसी धुलाई के समाचार चाहे जब न पढ़ने मिलने लगे? हे भगवान! पति अबल पर आई पत्नी सबला की बला दूर करे!
सुदर्शन कुमार सोनी
लेखक व्यंगकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं