महिलाओं के सशक्तिकरण की सिर्फ बातें ही होती हैं

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महिलाओं के सशक्तिकरण की सिर्फ बातें ही होती हैंए हकीकत कुछ और है। भारत में नारी को देवी का दर्जा दिया गया है मगर वर्तमान में यह बातें सिर्फ किताबों तक सीमित रह गई हैं। आये दिन महिलाओं पर अत्याचार की घटनायें होना आम बात हो गई है। निर्भया के गुनहगारों को गत आठ वर्षों बाद भी अभी तक फांसी नहीं दी जा सकी है। महिलाओं के हित में कुछ अच्छी व कुछ बुरी खबरें आ रही हैं। अच्छी खबर यह है कि संसद में महिला सांसदों की संख्या बढ़ी है। वहीं सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं को सेना में स्थाई कमीशन देने का रास्ता साफ कर दिया है। अपने एक फैसले में देश की शीर्ष अदालत ने महिलाओं को सेना में स्थाई कमीशन देने का आदेश दिया है। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस अजय रस्तोगी की बेंच ने फैसला सुनाते हुए कहा कि सेना में महिला अधिकारियों की नियुक्ति विकासवादी प्रक्रिया है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सभी नागरिकों को अवसर की समानता, लैंगिक न्याय सेना में महिलाओं की भागीदारी का मार्गदर्शन करेगा। महिलाओं की शारीरिक विशेषताओं पर केंद्र के विचारों को कोर्ट ने खारिज किया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केंद्र दृष्टिकोण और मानसिकता में बदलाव करे। सेना में सही मायने में समानता लानी होगी। केंद्र सरकार पर नाराजगी जाहिर करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि स्थाई कमीशन देने से इंकार स्टीरियोटाइप पूर्वाग्रहों का प्रतिनिधित्व करते हैं। आज हर क्षेत्र में महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रही हैं।

इसी दौरान महिलाओं को शर्मसार करने वाली कुछ बातें भी सामने आई हैं। गुजरात के सूरत में महिला प्रशिक्षु लर्कों के साथ अभद्रता की घटना सामने आयी है। जिससे सभ्य माने जाने वाले समाज का सिर शर्म से झुक गया है। सूरत नगर निगम में प्रशिक्षु लर्कों की शारीरिक जांच के नाम पर उन्हें निर्वस्त्र कर घंटों कतार में खड़ा रहने के लिए मजबूर किया गया। इतना ही नहीं उस दौरान ना तो उनकी निजता का ख्याल रखा गया और ना ही उनके साथ संवेदनशीलता दिखाई गई। उनसे आपत्तिजनक सवाल किए गए। प्रशिक्षु लर्कों को मेडिकल टेस्ट के लिए अस्पताल के प्रसूति विभाग में ले जाया गया।

रमेश सर्राफधमोरा
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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