मस्ती में बस भजन करो

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गुप्ताजी ने पूछा व्यासजी अब क्या होगा? मैंने कहा, शेयर बाजार (जिसमें वे रोजाना खेलते हैं) इतना तो उछल रहा है तब और क्या चाहिए? आप भी उछलिए। उनका जवाब था- वह झाग है। चंद लोगों का खेल है। सबकुछ दस-बीस खिलाड़ियों में सिमटा हुआ है। न मुंबई में भरोसा है, न कोलकत्ता में बिजनेस है और न चेन्नई, बेंगलूरू से लोग काम व प्रोजेक्ट के लिए फोन करते हैं। व्यासजी, गौशालाओं में गाएं खूब आ गई हैं। बाड़ों में भूसा खाते हुए जुगाली (टाइमपास) करती रहती हैं। तो बिजनेस भी जुगाली वाली दशा में है। बिजनेस वाले टाइमपास कर रहे हैं। आपको क्या लगता है बजट में कुछ होगा?

मैंने इतना भर कहा-इसमें जानने की भला क्या तुक है? जैसे पिछले पांच बजट थेवैसा छठा भी होगा। फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नया जुमला आ गया है कि अगले पांच साल में पांच हजार अरब डॉलर की आर्थिकी होगी और उसके जब आगे आंकड़े बनेंगे तो आप भी शेयर बाजार के बाड़े में सट्टे की जुगाली कीजिए। बम-बम हो कर सट्टा खेलिए! बावजूद इसके गुप्ताजी मुझसे सुनना चाहते थे कि मैं ऐसा कुछ बताऊं, जिससे उनको नया इनपुट मिले, उनकी जुगाली में जोश आए।

गुप्ताजी सचमुच मोदी के परम भक्त हिंदू हैं। गौ पूजा में धर्मादा देते हैं। हिसाब से उनमें जोश भरा हुआ होना चाहिए था। लेकिन वे मुझसे समझ नहीं आने का गिला कर रहे थे। उलटे गाय की जुगाली का सोचने वाला शब्द दिया।बात-बात में आगे राजस्थान और अपने झुंझुनू के इलाके का उदाहरण देते हुए बताया कि गाय सरंक्षित हुई हैं। गायों का जीवन सुरक्षित हुआ है। गौशालाएं खुल गई हैं और उनमें गाय है तो सड़कों पर भी वे बेफिक्री से घूमती-बैठी होती है। एकदम सुरक्षित और निश्चिंत!

तभी मेरी कल्पना में गोमाताओं से भरी-पूरी मां भारती की तस्वीर उभरी। परम प्रसन्न और गदगद इस भाव से कि भारत राष्ट्र-राज्य को नरेंद्र मोदी, अमित शाह के रूप में प्राप्त है गोपालकों की वह सरकार, जिससे पूरा देश गायों का सुरक्षित बाड़ा बन गया है। उन्हें परेशान, डराने वाले भेड़ियों को सांप सूंघ गया है। निंदक, आलोचकों, विधर्मियों का हल्ला मचाना बंद हो गया है। चौतरफा गौ वर्धन की छटा है। पृथ्वी के इस गौवर्धनीहिस्से में गौमाताओं, हनुमानजी के भक्त लंगूरों और भेड़-बकरियों की ऐसी सृष्टि रचना हुई है, जिससे सुकून है, शांति है तो घी-दूध की नदियां स्वंयस्फूर्त। और हां यहां के हिंदू ग्वालों का कर्मयोगी रूप, उनके जुमले, लंगूरों की उछलकूद, गायों-भेड़ों की उत्पादकता से शेयर बाजार भरपूर उछला हुआ है तो आर्थिकी पांच हजार अरब डॉलर के लक्ष्य की और बढ़ रही है।

तभी तो गौर कीजिए। 23 मई 2019 के बाद देश में सुकून है। ग्वाले, गड़ेरिए और उनके बनाए सुरक्षित बाड़ों में गाय और भेड़ें चैन से हैं। न ये उम्मीद में हैं और न चिंता में। अपना ठौर, अपना ठिकाना पा लियाहै। भेड़ियों ने, दुश्मनों ने, समझदारों ने भेड़ों, गायों को डराने, गुमराह करने, उनमें बुद्धि जगाने की जितनी जैसी कोशिशें की उस सबसे बच कर सुकून के साथ असली गोपालकों, ग़ड़ेरियों के हांकने पर जो भरोसा किया तो उससे सचमुच ऐसा ठौर मिला जहां सुकून, संतोष और जीवन जीने का भरोसा है।

तभी कोई कहे या पूछे कि अब क्या होगा तो न जवाब होना चाहिए और न सोचना चाहिए। समझदारों के लिए जवाब यहीं हो सकता है कि भारत राष्ट्र-राज्य को अर्से बाद, सदियों बाद फिर आस्था और भक्ति का युग प्राप्त हुआ है इसलिए बाड़े में बंद भक्ति के साथ मस्त रहो, भजन करो। और हां, भारत के इतिहास का यह सत्य जरूर जाने रखे कि गुलामी के मध्यकाल के भक्ति युग में गौ पूजा का, अपने बाड़े में जीवन जीने का सर्वाधिक पोषण हिंदुओं के बीच ही हुआ था। हिंदू के लिए बाड़े का जीवन ही जीवन का मूल्य है फिर भले वह गया गुजरा, आश्रित और घिघियाता हुआ हो और जिंदादिलीव ज्ञान-बुद्धि-कर्म युग से कोसों दूर!

हरिशंकर व्यास
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं

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