भौंसला से सीखे सारा देश जात-पात ही मिटा डाली

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हरियाणा में जींद के पास एक गांव है, भौंसला। इस गांव में आस-पास के 24 गांवों की एक पंचायत हुई। यह सर्वजातीय खेड़ा खाप पंचायत हुई। इसमें सभी गांवों के सरपंचों ने सर्वसम्मति से एक फैसला किया। यह फैसला ऐसा है, जो हमारी संसद को, सभी विधानसभाओं को और देश की सभी पंचायतों को भी करना चाहिए। आजादी के बाद इतना क्रांतिकारी फैसला भारत की किसी पंचायत ने शायद नहीं किया है। हमारे पड़ौस में कुछ बौद्ध और इस्लामी देश हैं, जो यह फैसला आसानी से कर सकते हैं लेकिन उनकी भी हिम्मत नहीं हुई।

क्या है, यह फैसला? यह है, अपने-अपने नाम के साथ इन गांवों के लोग अब अपना जातीय उपनाम और गौत्र उपनाम नहीं लगाएंगे। सिर्फ अपना पहला नाम लिखेंगे। जैसे सिर्फ बंसीलाल, सिर्फ भजनलाल, सिर्फ देवीलाल! वे अपने मकानों, दुकानों, वाहनों पर से भी जातीय उपनाम हटाएंगे। मैं कहता हूं कि पाठशालाओं, कालेजों, अस्पतालों, धर्मशालाओं, प्याऊओं आदि पर से जातीय नाम क्यों नहीं हटाए जाएं? जन्मना जातीय संगठनों पर भी प्रतिबंध लगना चाहिए।

जातीय भेदभाव खत्म करने के लिए अब सारे देश को तैयार होना होगा। कुछ वर्ष पहले जब मनमोहनसिंह सरकार ने जातीय जन-गणना शुरु करवाई तो मैंने ‘मेरी जाति हिंदुस्तानी’ आंदोलन चलाया था। देश की सभी पार्टियों ने इस आंदोलन का समर्थन किया था। स्वयं कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के हस्तक्षेप से वह जातीय जन-गणना रोक दी गई थी। यदि देश से जातीयता खत्म करनी है तो जातीय उपनाम आदि हटाना तो बस एक शुरुआत भर है। ज्यादा जरुरी है कि जातीय आधार पर नौकरियों में आरक्षण को तत्काल खत्म किया जाए।

आरक्षण जरुर दिया जाए लेकिन सिर्फ शिक्षा में और उन्हें जो आर्थिक दृष्टि से कमजोर हों। विवाह करते समय वर-वधू की जात देखना बंद करें, उनके गुण, कर्म और स्वभाव को ही कुंजी बनाएं। जाति-प्रथा ने भारत-जैसे महान राष्ट्र को पंगु बना दिया है। यह हिंदू समाज का सबसे भयंकर अभिशाप है। इस सर्प ने हमारे मुसलमानों, बौद्धों, ईसाइयों, सिखों और जैनियों को भी डस लिया है।

जातिवाद के विरुद्ध आर्यसमाज के प्रणेता महर्षि दयानंद ने जो मंत्र डेढ़ सौ साल पहले फूंका था, उसने हरियाणा में अपना रंग दिखाया है। मैं चाहता हूं कि इस मंत्र की प्रतिध्वनि सिर्फ भारत में ही नहीं, हमारे पड़ौसी देशों में भी हो। कुछ समाजसेवी, कुछ समाज सुधारक, कुछ साधु-संन्यासी और डा. लोहिया-जैसे कुछ महान नेता उठें और दक्षिण एशिया के इन पौने दो अरब लोगों की जिंदगी में नई जान फूंक दें।

डॉ. वेदप्रताप वैदिक
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं

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